18 जुलाई 2021 से पेगासस प्रोजेक्ट के तहत एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम, जिसमें द वायर सहित विश्व के 17 मीडिया संगठन शामिल थे, ने ऐसे मोबाइल नंबरों के बारे में बताया था, जिनकी पेगासस स्पायवेयर के ज़रिये निगरानी की गई या वे संभावित सर्विलांस के लक्ष्य थे. इसमें कई भारतीय भी थे. सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसकी जांच के लिए गठित समिति द्वारा अंतिम रिपोर्ट दिया जाना बाक़ी है.
पिछले आठ महीनों में पेगासस जांच समिति का काम तीन अलग-अलग दिशाओं में हुआ है. ये हैं:
1. डिजिटल फॉरेंसिक्स: तकनीकी समिति ने विश्लेषण के लिए 29 स्मार्टफोन एकत्र किए हैं. ये डिवाइस ज्यादातर उन लोगों के हैं जिन्हें पेगासस के जरिये संभावित निशाना बनाया गया था. समिति ने पेगासस का लक्ष्य बने या पेगासस से प्रभावित फोन की संभवतः फॉरेंसिक जांच करवाई है.
2. बयान दर्ज करना: पैनल ने कई विशेषज्ञ गवाहों, सांसदों और पेगासस का लक्ष्य रहे लोगों का साक्षात्कार लिया है. कमेटी की वेबसाइट के मुताबिक, तकनीकी विशेषज्ञ आनंद वी. और संदीप शुक्ला समेत 13 लोगों ने गवाही दी है. जिन अन्य लोगों ने बयान दर्ज करवाए हैं, उनमें द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और प्रोफेसर डेविड काये शामिल हैं. डेविड साल 2020 तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रचार और संरक्षण पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत थे.
3. राज्य सरकारों से संपर्क: मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि पैनल ने विभिन्न राज्य सरकारों से भी संपर्क किया था. मसलन, अप्रैल 2022 में समिति ने सभी राज्यों के ‘पुलिस महानिदेशकों’ से यह पूछा था कि क्या उन्होंने एनएसओ समूह से स्पायवेयर खरीदा था.
सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल ने तकनीकी समिति के सवालों का हवाला देते हुए सभी डीजीपी से पूछा, ‘क्या किसी राज्य, राज्य पुलिस, राज्य की इंटेलिजेंस या किसी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश की एजेंसी, जिसके पास पेगासस स्पायवेयर था, ने भारत के किसी भी नागरिक पर इसका इस्तेमाल किया है? यदि हां, तो क्या इस तरह के उपयोग के लिए कोई अनुमति या स्वीकृति प्राप्त की गई थी. यदि हां, तो किससे.’
पेगासस जांच समिति की वेबसाइट पर खासे पारदर्शी तरीके से कुछ क्षेत्रों में हुई प्रगति को दर्ज किया गया है, हालांकि जनता को कुछ अन्य पहलुओं के बारे में कम जानकारी मिलती है, विशेष तौर पर समिति द्वारा नरेंद्र मोदी सरकार के साथ बातचीत के संबंध में.
यह स्पष्ट नहीं है कि गृह मंत्रालय, खुफिया एजेंसियों और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के कार्यालय के साथ काम करने वाले नौकरशाहों को गवाही के लिए बुलाया गया या बयान देने के लिए कहा गया है. यदि ऐसा हुआ, तो समिति की वेबसाइट पर इसे दर्ज क्यों नहीं किया गया, जबकि नागरिक समाज के सभी हितधारकों के बयान स्पष्ट रूप से यहां नजर आते हैं.
इसके साथ ही यह भी अस्पष्ट है कि एनएसओ ग्रुप या सिटिज़न लैब (जिसने 2018 में भारत में पेगासस गतिविधि का पहला विश्लेषण प्रकाशित किया था) जैसे संगठनों का साक्षात्कार लिया गया है या उन्होंने साक्ष्य देने में सहयोग किया. यह बिंदु विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि हम उस सटीक कार्यप्रणाली को नहीं जानते हैं जिसका इस्तेमाल इस तकनीकी समिति द्वारा एकत्र किए गए फोनों के फॉरेंसिक विश्लेषण के लिए किया जा रहा है.
समिति की वेबसाइट का कहना है कि यह एमनेस्टी इंटरनेशनल के एमवीटी टूलकिट का उपयोग कर सकता है, लेकिन फिर भी यह इस बात की पूरी जानकारी नहीं देती कि वे कैसे तय करेंगे कि किसी डिवाइस को स्पायवेयर से निशाना बनाया गया या उसमें पेगासस डाला गया है.
अंत में, 2021 में शीर्ष अदालत की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इशारा किया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के चलते मोदी सरकार सार्वजनिक रूप से यह खुलासा नहीं कर सकती कि उसने पेगासस को खरीदा है या नहीं. हालांकि उनका कहना था कि सरकार समिति के समक्ष सभी विवरणों को साझा करेगी.
जनवरी 2022 में न्यूयॉर्क टाइम्स ने सालभर की पड़ताल के बाद एक रिपोर्ट में कहा कि भारत सरकार ने साल 2017 में हथियारों की ख़रीद के लिए इज़रायल के साथ हुए दो अरब डॉलर के रक्षा सौदे के तहत पेगासस खरीदा था. रिपोर्ट में कहा गया था कि इज़रायली रक्षा मंत्रालय ने नए सौदों के तहत पोलैंड, हंगरी, भारत समेत कई देशों को पेगासस बेचा था.
यह स्पष्ट नहीं है कि यदि केंद्र सवालों के जवाब नहीं देता है तो समिति क्या करेगी, क्योंकि इस बारे में साफ जानकारी नहीं है कि क्या जांच समिति के पास दस्तावेज या रिकॉर्ड समन करने की विशिष्ट शक्तियां हैं या नहीं.