तिरुवनंतपुरम- केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेतृत्व वाली वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार ने लोकायुक्त अधिनियम में संशोधन संबंधी अपने फैसले को सही ठहराते हुए मंगलवार को कहा कि यह कदम नैसर्गिक न्याय सुनिश्चित करने और इसे संविधान, लोकपाल और अन्य राज्यों में इसी तरह के कानूनों के और अधिक अनुरूप बनाने के लिए उठाया गया है.
वहीं, दूसरी ओर राज्य में विपक्षी दल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लोकायुक्त अधिनियम में संशोधन संबंधी वाम सरकार के फैसले का विरोध किया और कहा कि यह लोकायुक्त की शक्तियों को ‘कमजोर’ करने और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए है.
एलडीएफ सरकार में दूसरी सबसे बड़ी सहयोगी भाकपा के राज्य सचिव कनम राजेंद्रन ने कहा कि संशोधन के लिए अध्यादेश लाने के कदम पर एलडीएफ में कोई राजनीतिक परामर्श नहीं किया गया था.
अध्यादेश पर भाकपा की अस्वीकृति व्यक्त करते हुए, राजेंद्रन ने कहा, ‘लोग अध्यादेश के पीछे की तात्कालिकता के बारे में आश्वस्त नहीं हैं. सरकार अगले महीने होने वाले विधानसभा सत्र में प्रस्तावित संशोधन के लिए एक विधेयक पेश कर सकती थी. यदि विधानसभा में संशोधन के उद्देश्य से कोई विधेयक पेश किया जाता, तो सभी को अपनी राय व्यक्त करने का अवसर मिलता. अध्यादेश ने उस अवसर से इनकार कर दिया है.’
एलडीएफ सरकार में भाकपा के चार मंत्री हैं और कैबिनेट बैठक, जिसमें विवादास्पद अध्यादेश पर फैसला हुआ था, में भाकपा के मंत्रियों ने भी भाग लिया था.
हालांकि, राज्य के कानून मंत्री पी. राजीव ने कहा कि अध्यादेश लाए जाने का कदम अचानक नहीं उठाया गया है, जैसा कि विपक्ष ने आरोप लगाया है और यह प्रक्रिया पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान पिछले अप्रैल में शुरू हुई थी.
उन्होंने कहा कि सरकार ने उच्च न्यायालय के दो फैसलों के मद्देनजर एक नए कानून के सुझाव पर विचार किया, जिनमें कहा गया था कि लोकायुक्त के पास अनिवार्य क्षेत्राधिकार नहीं है, बल्कि केवल अनुशंसात्मक अधिकार क्षेत्र है.
उन्होंने कहा कि महाधिवक्ता (एजी) ने भी कानूनी राय दी कि अधिनियम की धारा 14 संविधान के अनुच्छेद 163,164 का उल्लंघन है और देश में मौजूदा कानूनों के अनुसार इसे और अधिक अनुरूप बनाने के लिए इसे संशोधित करने का सुझाव दिया.
राजीव ने कहा कि सरकार भ्रष्टाचार से कभी भी समझौता नहीं करेगी. उन्होंने विपक्षी दल कांग्रेस और भाजपा के इन आरोपों को भी खारिज कर दिया कि यह निर्णय इसलिए लिया गया है, क्योंकि एजेंसी मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और उच्च शिक्षा मंत्री आर. बिंदु के खिलाफ शिकायतों पर विचार करने वाली थी.
इस बीच, कांग्रेस ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से इस संबंध में अध्यादेश पर हस्ताक्षर नहीं करने का आग्रह किया है.
दोनों विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि माकपा नीत सरकार ऐसे समय में एक अध्यादेश लाकर लोकायुक्त की शक्तियों पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रही है, जब सरकार की कई अनियमितताओं की शिकायतें उनके समक्ष लंबित हैं.
मंत्रिमंडल की पिछली बैठक के दौरान अध्यादेश को कथित तौर पर मंजूरी दी गई थी, लेकिन बाद में सरकार द्वारा बैठक के संबंध में दी गई जानकारी में इसका कोई जिक्र नहीं था.
राज्यपाल से अध्यादेश को मंजूरी नहीं देने की अपील करते हुए विपक्ष के नेता वीडी सतीसन ने उन्हें एक पत्र भेजकर कहा कि यह कदम लोकायुक्त की शक्तियों को कम करने के लिए उठाया गया है.
केरल लोकायुक्त अधिनियम, 1999 की धारा 3 का उल्लेख करते हुए, सतीसन ने बताया कि एक व्यक्ति को केवल तभी लोकायुक्त के रूप में नियुक्त किया जा सकता है जब उन्होंने पहले उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किया हो.
कांग्रेस नेता ने पत्र में कहा कि उच्च न्यायालय के किसी भी पूर्व न्यायाधीश को पद ग्रहण करने की अनुमति देने के लिए इस प्रावधान को कमजोर करने से राज्य के सबसे महत्वपूर्ण संस्थान का दर्जा कम हो जायेगा. उन्होंने राज्यपाल से जनहित को ध्यान में रखते हुए अध्यादेश को मंजूरी नहीं देने का अनुरोध किया.
पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रमेश चेन्नीथला ने भी इस कथित कदम पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसे समय में जब राज्य विधानसभा का सत्र अगले महीने आयोजित किया जाना है, तो किस आपात स्थिति में उन्हें अध्यादेश लाना पड़ा.
इस बीच, भाजपा की राज्य इकाई के प्रमुख के. सुरेंद्रन ने आरोप लगाया कि सरकार ने जल्दबाजी में फैसला लिया क्योंकि लोकायुक्त सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के कुछ बड़े घोटालों पर विचार कर रहा था.
उन्होंने कहा कि यह कदम सभी संवैधानिक संस्थानों पर नियंत्रण करने के लिए वाम सरकार का नया उदाहरण है.