नई दिल्ली: कर्नाटक के शिवमोगा में वीरशैव-लिंगायत समुदाय के मतदाताओं की एक सभा को संबोधित करते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता केएस ईश्वरप्पा ने कहा है कि आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी को ‘एक भी मुस्लिम वोट की आवश्यकता नहीं होगी’.
केएस ईश्वरप्पा को अप्रैल 2022 में तब कर्नाटक के ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था, जब ठेकेदार संतोष पाटिल ने बेलगावी में सार्वजनिक कार्यों पर भारी कमीशन लेने का आरोप लगाकर आत्महत्या कर ली थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि उन्होंने हाल ही में भाजपा के केंद्रीय अधिकारियों से कहा था कि वह अपने लिए टिकट नहीं चाहते थे, बल्कि वह चाहते है कि पार्टी उनके बेटे केई कांतेश को टिकट दे, हालांकि, शिवमोगा से भाजपा का टिकट लिंगायत नेता चन्नबसप्पा के पास गया.
पीटीआई के अनुसार, इस अपमान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कथित तौर पर ईश्वरप्पा को फोन किया और चुनावी टिकट नहीं दिए जाने के बावजूद बगावत न करने के लिए उन्हें ‘बधाई’ दी.
इसके बाद ईश्वरप्पा फिर से सुर्खियों में हैं और भाजपा के दिग्गज नेता बीएस येदियुरप्पा का गढ़ माने जाने वाले शिवमोगा में एक रैली में के दौरान कहा कि पार्टी को मुस्लिम वोटों की जरूरत नहीं है.
द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, केएस ईश्वरप्पा ने कहा:
‘(शिवमोगा) शहर में कुछ 60,000 से 65,000 (मुस्लिम) मतदाता हैं. मैं आपको सीधे तौर पर बताना चाहता हूं कि हमें एक भी मुस्लिम वोट की जरूरत नहीं होगी. बेशक, ऐसे मुसलमान हैं जिन्हें हमारी मदद मिली और वे हमें वोट देंगे. राष्ट्रवादी मुसलमान निश्चित रूप से भाजपा को वोट देंगे.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह टिप्पणी येदियुरप्पा के हालिया दावे के विपरीत है कि मोदी ने पार्टी को मुसलमानों तक पहुंचने की सलाह दी है.
कर्नाटक में 10 मई को होने वाले चुनाव के लिए भाजपा ने किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा है. वहीं राज्य की 224 सीटों में से कांग्रेस ने 14 मुसलमानों को और जनता दल (एस) ने 23 मुसलमानों को टिकट दिया है. 2011 में पिछली जनगणना के अनुसार कर्नाटक में लगभग 13 प्रतिशत मुसलमान हैं.
कर्नाटक की भाजपा सरकार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीते 27 मार्च के एक आदेश में मुस्लिम समुदाय को पिछड़ा वर्ग आरक्षण की पात्रता से बाहर कर दिया था. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा था कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के आरक्षण के लिए संविधान के तहत कोई प्रावधान नहीं है.
भाजपा सरकार ने विवादास्पद रूप से राज्य में मुसलमानों के लिए अब तक 4 प्रतिशत आरक्षण को हटाते हुए इसे राज्य के प्रभावशाली समुदायों – लिंगायत और वोक्कालिगा – के बीच समान रूप से बांट दिया था.
वोक्कालिगा के लिए कोटा 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया गया है. पंचमसालियों, वीरशैवों और लिंगायतों वाली अन्य श्रेणी के लिए कोटा भी 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया गया है.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक सरकार को बैकफुट पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि शीर्ष अदालत ने पाया कि यह निर्णय प्रथमदृष्टया ‘भ्रामक धारणा पर आधारित था और यह एक आयोग की अंतरिम रिपोर्ट पर आधारित था’.
बीते 25 अप्रैल को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक बार फिर शीर्ष अदालत को आश्वासन दिया था कि कर्नाटक सरकार संबंधित आदेश को तब तक लागू नहीं करेगी, जब तक कि इस मामले पर अदालत का फैसला नहीं हो जाता.
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि सॉलिसिटर जनरल के आश्वासन के अनुसार कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी और किसी भी विवाद के लिए कोई पूर्वाग्रह नहीं होगा.
बीते 18 अप्रैल को हुई पिछली सुनवाई में भी मेहता ने अदालत के सामने इसी तरह का आश्वासन दिया था और हलफनामा दाखिल करने के लिए राज्य सरकार की ओर से और समय मांगा था.
इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि राज्य में अल्पसंख्यकों को दिया गया आरक्षण संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं है. बीते 26 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे ‘साहसिक निर्णय’ बताते हुए राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को बधाई दी थी.
अमित शाह ने कहा था कि अल्पसंख्यक को प्रदान किया गया आरक्षण संविधान के अनुसार नहीं था. संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण देने का कोई प्रावधान नहीं है.
उन्होंने 23 अप्रैल को तेलंगाना में एक रैली में भी कहा था कि अगर भाजपा उस राज्य में सत्ता में आई तो मुसलमानों के लिए कोटा खत्म कर देगी.