ज्योतिषशास्त्र में मांगलिक योग और ग्रहण योग की तरह कालसर्प योग को भी अशुभ योग की श्रेणी में रखा गया है। कालसर्प योग के विषय में कहा गया है कि यह योग जिनकी कुण्डली में होता है उन्हें बार-बार चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
ऐसे व्यक्ति अगर सफलता के शिखर पर भी पहुंच जाएं तो उन्हें एक दिन जमीन का धूल चाटनी पड़ती है।
कुण्डली में राहु और केतु के बीच जब सभी ग्रह आ जाते हैं तब यह योग बनता है। जिनकी कुण्डली में यह योग मौजूद होता है उन्हें राहु और केतु की दशा में विशेष परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
ऐसे व्यक्तियों को अक्सर सपने में सांप नजर आते हैं। व्यक्ति खुद को पानी में डूबता या ऊंचाई से गिरता हुआ देखता है। इस योग के विषय में कहा जाता है कि जो लोग पूर्व जन्म में सांप की हत्या किये होते हैं अथवा पिता एवं गुरू का अपमान करते हैं उनकी कुण्डली में यह योग बनता है।
कालसर्प दोष से मुक्ति
ज्योतिषशास्त्री चन्द्रप्रभा बताती हैं कि यह योग जिनकी कुण्डली में मौजूद है उन्हें सावन के महीने में भगवान शिव का नियमित जलाभिषेक करना चाहिए। सावन मास शिव का मास है और शिव नागों के देवता हैं। इसलिए सावन मास इस योग के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए उत्तम है।
शिव के प्रसन्न होने से इस दोष का कुप्रभाव कम हो जाता है। सावन महीने में ही नागपंचमी का त्योहार आता है। इसदिन तांबे का नाग बनवाकर शिवलिंग पर चढ़ाने से कालसर्प दोष की शांति होती है। प्रतिदिन शिवलिंग की पूजा के बाद महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से भी इस योग का दोष दूर होता है।