गुड़गांव। गुड़गांव व मेवात सीमा पर स्थित गांव बाघनकी के शिव मंदिर में इस साल भी कांवड़ नहीं चढ़ेगी। न तो अभी तक कोई कांवड़ लेने के लिए हरिद्वार गया है न जाने की उम्मीद है।
यहां के लोग 28 जुलाई 2010 को हुई घटना को नहीं भूल सके हैं। गांव के 22 लड़के तथा दो हलवाई दूसरे गांव के यहां से गांव से कैंटर में सवार होकर बाबा बर्फानी के गुणगान करते गंगोत्री कांवड़ लेने गये थे। अगले दिन शाम उनका कैंटर करीब सौ मीटर गहरी खाई में गिर गया था। जिसके चलते कोई नहीं जिंदा बचा था। सेना के जवानों को दो दिन शव निकालने में लग गये थे। बीस जवान छोरों के एक साथ शव देख गांव बाघनकी में हाहाकार मच गया। मृतकों की मां और व नव विवाहिता पत्नी तो होशोहवास (एक माह शादी के हुए थे)ही खो बैठी थी। पोते की मौत की खबर सुन गांव के पूर्व सरपंच व एक बुजुर्ग महिला भी गबरू पोते का शव देखते ही सांस तोड़ थी। तीन तो सगे भाई भी हादसे में मारे गये थे।
मृतकों के पिता, भाई व सगे संबधी भी बिलख उठे थे करीब तीस से अधिक महिलाएं व पुरूष बेहोश हो गए थे जिन्हें होश में लाने के लिए डाक्टरों को अथक प्रयास करने पड़े थे। शव यात्रा में शामिल होने आए आसपास व दूरदराज से आए करीब डेढ़ लाख लोग, नेता व प्रशासनिक अधिकारी भी उनकी हालत देख आंसू नहीं रोक पाए, उनके मुंह से यही निकल रहा था कि गांव की युवा शक्ति क्षीण हो गई थी।