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जिसकी वजह से भारत में दंगे हुए, हिंदू मुसलमान एक दूसरे के खिलाफ हो गए, दशकों के मतभेद के बाद अब उसी जमीन के स्वामित्व का फैसला सुप्रीम कोर्ट सुनाने वाली है.
यह विवादित जमीन अयोध्या की है जिसे मंदिरों का भी शहर कहते हैं और जो धार्मिक आस्थाओं वाले समुदायों के लिए पवित्र भूमि है. यह शहर दो समुदायों के बीच बढ़ते विवादों का भी प्रतीक रहा है जो मंदिरों और दूसरे धार्मिक संस्थाओं पर अपना अपना हक जताते हैं. अयोध्या की विवादित 2.77 एकड़ जमीन किसे मिलेगी यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से तय हो जाएगा लेकिन धार्मिक संपत्ति से जुड़े ऐसे हजारों मामले देश की निचली अदालतों में फैसले का इंतजार कर रहे हैं.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, एजुकेशन एंड रिसर्च की मीरा नंदा कहती हैं कि इस तरह की और लड़ाइयों की आशंका है क्योंकि भगवान जमीन पर “अपनी ताकत दिखा” रहे हैं. प्रोफेसर नंदा का कहना है, “मंदिर के देवताओं के अधिकार की बात हो तो भारत सरकार असहाय नजर आती है. क्योंकि इसे पवित्र संपत्ति माना जाता है जिसका स्वामित्व उस भगवान के पास है जिनकी छवि वहां विराजित है. यह जमीन खरीदी या बेची नहीं जा सकती. यह संपत्ति सरकार के भी अधिकार के बाहर है इसलिए वह उसे छू भी नहीं सकती.”
भारत की 1.3 अरब आबादी में 80 फीसदी हिंदू हैं और देश में लाखों मंदिर हैं. इनमें सड़क किनारे बने छोटे मंदिरों से लेकर विशाल परिसरों वाले मंदिर शामिल हैं जहां हर रोज लाखों लोगों की भीड़ जमा होती है. इनमें बहुत से मंदिरों के पास काफी ज्यादा जमीन है. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश में जमीन पर दबाव बढ़ रहा है, तो बहुत से जमीन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता और विकास विशेषज्ञ मानते हैं कि इन जमीनों का इस्तेमाल अब लोगों की भलाई के लिए होना चाहिए.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में डेवलपमेंट स्टडीज की एसोसिएट प्रोफेसर निकिता सूद कहती हैं,”घरों की भारी कमी के साथ ही कृषि और औद्योगिक जमीन के लिए संघर्ष को देखते हुए यह अनुचित नहीं है कि मंदिरों की जमीन के नियंत्रण पर सवाल उठाए जाएं.” प्रोफेसर सूद के मुताबिक, “दूसरी जमीनों की तरह मंदिर की जमीन भी ताकत के एक भंडार जैसा है जिसके साथ राजनीतिक और आर्थिक संघर्ष जुड़ा है, अयोध्या में लंबे समय से चला आ रहा सत्ता संघर्ष इसका एक उदाहरण है.”
किसकी जमीन?
भारत में कभी मंदिर समाज का प्रमुख केंद्र हुआ करते थे, सिर्फ पूजा के लिए ही नहीं बल्कि शिक्षा और सामाजिकता के भी. औपनिवेशिक दौर में कई बड़े मंदिरों का प्रशासन मठों या फिर स्थानीय धार्मिक व्यवस्थाओं को सौंप दिए गए.1947 में भारत की आजादी के बाद सरकार के नियुक्त बोर्डों ने कई धर्मस्थलों की व्यवस्था देखनी शुरू की. कई राज्यों में मंदिर की संपत्ति की व्यवस्था के लिए कानून बनाए जिसका मंदिरों के ट्रस्टों ने विरोध किया.
प्रोफेसर नंदा का कहना है कि ऐसे मामलों में भावनाएं भी खूब भरी जाती हैं क्योंकि “भारी पैसा” दांव पर होता है. छोटे छोटे मंदिरों में भी श्रद्धालु खास मौकों या त्यौहारों पर लाखों रुपये या दूसरी कीमती चीजों का दान करते हैं. प्रोफेसर नंदा ने कहा बड़े मंदिर तो “धन के अकूत भंडार” पर बैठे हैं जिनमें जमीन भी शामिल है.
भारतीय कानून में ईश्वर को एक “कानूनी इंसान” माना गया है जो संपत्ति का मालिक हो सकता है और दावा कर सकता है. अयोध्या के मामले में भी विवादित जगह को एक कानूनी इंसान माना गया है. हिंदू मानते हैं कि यह जगह उनके आराध्य भगवान राम की जन्मभूमि है और वहां 1528 में मस्जिद बनाए जाने से पहले एक मंदिर था. 1992 में इस मस्जिद को हिंदुओं की भीड़ ने गिरा दिया. अब इस जमीन पर एक हिंदू संगठन निर्मोही अखाड़ा, मुस्लिम सुन्नी वक्फ बोर्ड और रामलला ने दावा किया है. हिंदू संगठनों की मांग है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रवादी पार्टी अयोध्या में मंदिर बनवाए.
धर्म में सरकार का दखल
भारत आधिकारिक रूप से एक धर्मनिरपेक्ष देश है जिसमें धार्मिक अधिकारों की रक्षा की जाती है. बहुत से हिंदुओं की शिकायत है कि सरकार धर्म में दखल देती है. उदाहरण के लिए दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में 44,000 मंदिर हैं और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उनके पास 5 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन है. टेंपल वरशिपर्स सोसायटी से जुड़े टीआर रमेश का कहना है कि मंदिरों को इस संपत्ति से होने वाली आमदनी का कुछ ही हिस्सा मिलता है क्योंकि इन जमीनों पर अवैध दुकानों और बस्तियों का कब्जा है. हिंदुओं के हक की बात करने वाले संगठन से जुड़े रमेश कहते हैं, “मंदिर की इतनी अधिक जमीन हड़प ली गई है कि हमारे लिए पूजा और शिक्षा की जगह घट गई है. इसके साथ ही स्कूल, अस्पताल या समामसेवी कामों के लिए जगह ही नहीं है. धीरे धीरे हिंदुओं की जमीन कम होती जा रही है”
तमिलनाडु सरकार ने पारदर्शिता के लिए मंदिरों की जमीन के रिकॉर्ड को डिजिटलाइज कर है. हिंदू रिलिजियस चैरिटेबल एनडावमेंट डिपार्टमेंट के संयुक्त आयुक्त सी लक्ष्मणन का कहना है, “जब भी अतिक्रमण का पता चलता है हम उसे हटाने के लिए तत्काल कार्रवाई करते हैं.” इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि 10 में से एक मंदिर ही ऐसा है जो अपनी आमदनी से चलता है बाकि मंदिर सरकारी धन से चलते हैं.
कौन संभाले जमीन?
दुनिया के दूसरे देशों में पवित्र जमीनों का अलग तरीके से इस्तेमाल किया जाता है. अणेरिका और केन्या में चर्च की अतिरिक्त जमीन को सस्ते घरों, सामुदायिक केंद्रों और खेती के लिए बेचा या फिर किराए पर दिया जाता है. पिछले साल भारत में महाराष्ट्र राज्य ने कानून में बदलाव कर हजारों मंदिर ट्रस्टों की जमीन को सार्वजनिक कामों के लिए बेचने या फिर उनका स्वामित्व सौंपने की व्यवस्था बनाई.
तमिलनाडु में मंदिरों की व्यवस्था को चुनौती देने वाले वकील एस वेंकटरमानी का कहना है कि दूसरी जगहों के मंदिर ट्रस्ट भी जमीनों के वैकल्पिक इस्तेमाल के बारे में सोंचेगे अगर उसका स्वामित्व उनके पास रहे और उन्हें उससे उचित आमदनी हो. उन्होंने कहा, “मंदिर की संपत्तियों को मंदिर ट्रस्टों को सौंपा जाए और तब जमीन के इस्तेमाल के समकालीन सिद्धांतों को लागू किया जाए, और हम ऐसे उपाय ढूंढ लेंगे जिससे आमदनी भी हो. हमें मंदिर की संपत्तियों की व्यवस्था आस्था और आध्यात्म के नजरिए से करनी चाहिए, सरकार का इस काम को करना गलत है.”
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए हैं. इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने कुप्रबंधन और चोरियों की खबरों का हवाला देते हुए सरकार से पूछा कि वह क्यों मंदिरों का प्रबंधन कर रही है. इसके साथ ही कोर्ट ने अवैध धार्मिक ढांचों पर भी रोक लगाई है जो आजकल जगह जगह सड़कों के किनारे, पार्कों और दूसरे सार्वजनिक जगहों पर नजर आते हैं. प्रशासन इसके लिए हाइवे के विस्तार या ट्रेन लाइन के निर्माण का सहारा लेकर आलोचकों का मुंह बंद करता है क्योंकि इस तरह के ढांचों को ढहाने का मतलब विरोध प्रदर्शनों को न्यौता देना है.1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद सांप्रदायिक दंगों में 2000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले प्रशासन ने अयोध्या में धारा 144 लागू कर दी है जिसके तहत चार से ज्यादा लोगों के सार्वजनिक रूप से एक जगह इकट्ठा होने पर रोक है. प्रोफेसर सूद कहती हैं कि यह याद दिलाता है कि मंदिर और उसकी संपत्ति भारत में धर्म से कहीं ज्यादा है. उन्होंने कहा, “ये सब ना सिर्फ सांस्कृतिक और धार्मिक बल्कि राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जिंदगी में गुंथे हुए हैं. हालांकि फिर भी धर्म समाज और कानून से ऊपर नहीं है.”