भगवान शिव को सोने, चांदी अथवा हीरे मोती नहीं बल्कि रूद्राक्ष सबसे प्रिय है। भगवान शिव इसे अपने सभी अंगों पर धारण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति रूद्राक्ष धारण करता है उस पर भगवान शिव की कृपा बनी रहती है। यही कारण है कि लोग रूद्राक्ष धारण करना चाहते हैं।
हालांकि बहुत से लोगों को शिकायत रहती है कि रूद्राक्ष पहनने पर भी उन्हें अनुकूल लाभ नहीं मिल रहा। इसका कारण यह है कि हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग रूद्राक्ष निर्धारित किए गए हैं। अगर अपने लिए योग्य रूद्राक्ष का चुनाव नहीं करेंगे तो रूद्राक्ष पूर्ण फल नहीं दे पाएगा।
शिव पुराण में भगवान शिव पार्वती से कहते हैं कि मेरे आंसुओं से रूद्राक्ष का जन्म हुआ है। आकार और बनावट के आधार पर रूद्राक्ष के अलग-अलग नाम और प्रकार हैं।
आंवले के आकार का रूद्राक्ष उत्तम होता है। बेर के आकार का रूद्राक्ष मध्यम श्रेणी का और चने के आकार का रूद्राक्ष निम्न श्रेणी का होता है।
असली रूद्राक्ष की पहचान कैसे करें
हालांकि लाभ की बात करें तो रूद्राक्ष जितना छोटा होता है उसका भौतिक लाभ उतना ही अधिक होता है। बेर के आकार का रूद्राक्ष सुख और सौभाग्य प्रदान करने वाला होता है। आंवले के आकार का रूद्राक्ष बाधाओं को दुःखों को दूर करने वाला� और गुंजाफल के समान छोटा रूद्राक्ष सभी मनोरथों को पूरा करने वाला माना गया है।
कैसा रूद्राक्ष पहनें
जिस रूद्राक्ष में अपने आप धागा पिरोने योग्य छेद हो जाता है वह उत्तम होता है।
जिस रूद्राक्ष में धागा पिरोने के लिए छेद किया जाता है वह मध्यम श्रेणी का होता है।
उभरे हुए दानों वाले रूद्राक्ष धारण करना चाहिए।
रूद्राक्ष धारण करने के नियम
शिव पुराण के अनुसार रूद्राक्ष धारण करने वाले को मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज, लिसोड़ा के सेवन से परहेज रखना चाहिए। परनिंदा, झूठ, चोरी एवं व्यभिचार से दूर रहना चाहिए।
ऐसे रूद्राक्ष से बचें
ऐसा रूद्राक्ष कभी भी धारण न करें जिसे कीड़े ने खाया हो। टूटे फूटे रूद्राक्ष भी धारण नहीं करने चाहिए। जो पूरी तरह गोल न हो वह रूद्राक्ष निम्न कोटि का होता है।