लगता है कि मनुष्य की आंखों को स्वार्थ के पर्दे ने ढ़क-सा लिया है। हर चीज को लाभ के दृष्टिकोण से देखा जाता है। इस मानसिकता ने सूक्ष्म संसार तक को नहीं छोड़ा। वहां भी प्रयास यही रहता है कि किस तरह लाभ हो सकता है।
गणेश के लिए समझा जाता है कि उनका स्वरूप हाथी का है, जिसकी पूजा से सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। धन संपदा के भंडार भर जाएंगे। इसलिए आज प्रत्येक घर, दफ्तर, वाहन में गणेश जी की मूर्ति विराजमान रहती है।
गणेश कोई हाथी नहीं है। वह भौतिक संसार के देवता हैं और सूक्ष्म संसार के द्वारपाल हैं। नकारात्मकता के इस समय में उन्हें यह दायित्व दिया गया है कि वे केवल सच्चे साधक को ही सूक्ष्म संसार में प्रवेश करने दें। स्वार्थी लोगों को माया जाल में उलझा कर रखें ताकि वे सूक्ष्म संसार में प्रवेश न कर सकें।
इस माया जाल से छूटने का केवल एक ही मार्ग है और वह है-गुरु के सानिध्य में योग। गुरु की खोज तभी करें जब आप वास्तव में सृष्टि की सकारात्मक शक्तियों को अपना योगदान देना चाहते हैं। गणेश चतुर्थी को मनुष्य गणेश की शक्ति से संपर्क स्थापित करना अति सुगम होता है।
वैसे हर महीने की दोनों चतुर्थियां गणेश के लिए सुरक्षित हैं पर भाद्रपद में कृष्ण पक्ष के चौथे दिन का विशेष महत्व है। यह अत्यंत ही शक्तिशाली दिन है। इसे योग साधनाओं के लिए समर्पित करना चाहिए।
इस दिन सृष्टि के कार्यों में अपना योगदान देने के लिए व सर्वसाधारण के हित हेतु गुरु के मार्गदर्शन में किया गया हवन गणेश की शक्ति से संपर्क साधने में सहायक होता है, सूक्ष्म जगत के द्वार खोलता है व आपकी छिपी हुई क्षमताओं को अनावरित करता है।