देहरादून। सिख एवं हिंदुओं की सांझी विरासत है हेमकुंड-लोकपाल। संस्कृत में हेम बर्फ को कहते हैं, जबकि कुंड का तात्पर्य है कटोरा। इसी तरह लोकपाल विश्व के रक्षक को कहा गया है। लोकपाल वही जगह है, जहां लक्ष्मणजी, अपनी पसंदीदा जगह होने के कारण ध्यान पर बैठ गए थे। इस जगह को सिखों के 10वें गुरु, गोविंद सिंह महाराज के साथ भी संबद्ध किया गया है।
कहा जाता है कि गोविंद सिंह महाराज ध्यान के लिए यहां आए थे। समुद्रतल से 4630 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सिखों का पवित्र तीर्थ हेमकुंड साहिब और उसी के पास मौजूद झील चारों तरफ बर्फ से ढकी सात पहाड़ियों से घिरे हुए हैं। झील के चट्टानी किनारे वर्ष के अधिकांश समय बर्फ से ढके रहते हैं, लेकिन बर्फ पिघलने पर यहां पौराणिक पीले-हरे ब्रह्मकमल चट्टानों पर उग आते हैं। यह स्थान अपनी अदम्य सुंदरता के लिए जाना जाता है और सिखों के सबसे महत्वपूर्ण गुरुद्वारों में से एक है। इस पवित्र स्थल को गुरु गोविंद सिंह महाराज के यहां आने से पहले लोकपाल यानी विश्व का रक्षक कहा जाता था। गोविंद सिंह महाराज अपनी आत्मकथा च्विचित्र नाटक में लिखते हैं, जब मैं गहरे ध्यान में लीन था, तब भगवान ने मुझे इस दुनिया में भेजा। सात चोटियों के साथ लग रहा एक बहुत प्रभावशाली हेमकुंड नाम का पहाड़ है, जहां पांडवों ने प्रचलित योग किया था। वहां मैंने ध्यानलीन होकर तपस्या की और महाकाल व काली की आराधना की। इस तरह मेरा ध्यान अपने चरम पर पहुंच गया और मैं भगवान के साथ एकाकार हो गया।
हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा के पास ही एक सरोवर है, जिसे अमृत सरोवर कहा जाता है। 400 गज लंबा और 200 गज चौड़ा यह सरोवर चौतरफा हिमालय की सात चोटियों से घिरा है। इन चोटियों का रंग वायुमंडलीय स्थितियों के अनुसार अपने आप बदल जाता है। कभी वह बर्फ सी सफेद, कभी सुनहरे रंग व लाल रंग की तो कभी-कभी भूरे-नीले रंग की नजर आती हैं।
सिख एवं हिंदुओं की सांझी संस्कृति के प्रतीक हेमकुंड-लोकपाल के कपाट खुलने से इस घाटी में संपूर्ण भारत समा जाता है। बद्रिकाश्रम क्षेत्र में पांडुकेश्वर नामक स्थान को पांडवों का निवास मानते हुए उल्लेख किया गया है कि यहां से लगभग ईशानकोण पर स्थित हेमकुंड ही वह कुंड है, जहां से महाबलि भीम द्रौपदी के लिए ब्रह्मकमल लाए थे। यहां लक्ष्मणजी का प्राचीन मंदिर भी है। प्रतिवर्ष लाखों तीर्थयात्री दर्शनार्थ इस पवित्र स्थल पर पहुंचते हैं। हेमकुंड के कपाट जून में खुल कर अक्टूबर में बंद हो जाते हैं।
मौसम- ग्रीष्मकाल में जून से अगस्त तक दिन के समय मनोरम व रात में ठंडा। सितंबर से अक्टूबर में मंदिर के कपाट बंद होने तक तेज सर्दी।
पहनावा- जून से अगस्त तक हल्के ऊनी वस्त्र। इसके बाद भारी ऊनी वस्त्र।
यात्री सुविधा- सभी प्रमुख स्थानों पर श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के यात्री विश्राम गृह, जीएमवीएन के विश्राम गृह, निजी विश्राम गृह व धर्मशाला।
वायुमार्ग- देहरादून स्थित जौलीग्रांट हवाई अड्डा।
रेल मार्ग- अंतिम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश व कोटद्वार।
सड़क मार्ग- हरिद्वार व ऋषिकेश के अलावा देहरादून व कोटद्वार से भी यहां पहुंचा जा सकता है।
कपाट खुलने की तिथि- 25 मई