हमारी तपस्या में ही कमी रही; पीएम मोदी ने किया तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान … किसानों की स्थिति को सुधारने के इसी महाअभियान में देश में तीन कृषि कानून लाए गए थे। मकसद ये था कि देश के किसानों को, खासकर छोटे किसानों को, और ताकत मिले, उन्हें अपनी उपज की सही कीमत और उपज बेचने के लिए ज्यादा से ज्यादा विकल्प मिले।
तीनों काले-कानून जो देश की जनता समझ रही थी ,किसान समझ रहे थे और सरकार भी समझ रही थी लेकिन अड़ियल सरकार या कहें सिर्फ मोदी सरकार इसे लागू कर चुकी थी और इसे वापस लेने को तैयार नहीं थी क्योंकि उसके नजदीकी व्यापारियों को नुकसान हो रहा था.
हम किसानों को समझा नहीं पाए…कृषि कानूनों को वापस करते वक्त भारी मन से पीएम मोदी ने कहा
मोदी का यह वाक्य स्पष्ट इशारा है की मोदी ने सिर्फ चुनावों में हो रही हार के चलते यह समझौता किया है मोदी का मन इन कानूनों को वापस लेने का कतई नहीं था लेकिन संघ द्वारा भारतवर्ष में किये सर्वे से यह स्पष्ट हो रहा था की आगामी चुनावों में भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पडेगा इसका दबाव पीएम मोदी पर पड़ा और न चाहते हुए भी मोदी को तीनों कानून वापसी की घोषणा करनी पड़ गयी.यदि ये फैसला पहले ही ले लिया जाता तो 700 किसानों की मौत ना होती और लाखों किसान संडक पर बैठने पे मजबूर ना होते।
भाजपा की डर्टी सेल ने इस आंदोलन को ख़त्म करने के लिए क्या -क्या गन्दगी नहीं परोसी ? किसानों को खालिस्तानी,आतंकवादी और जाने क्या-क्या न कहा,साजिशें रचीं लेकिन सत्य एकजुटता के आगे सफल नहीं हुए ,फर्जी राष्ट्रवाद की पेंगें बढ़ाती संघ और भाजपा की जुगलबंदी ने पिछले सात वर्षों में जो अनाचार देश की जनता पर किया है उसका एक प्रतिरोध है इन कानूनों की वापसी।
इन कानूनों को लेकर कहा गया की यह कुछ ही किसानों का आंदोलन है एक क्षेत्र विशेष के पूरे राष्ट्र का नहीं लेकिन जब गला फंसा तो ये पलटी मार गए ,सत्ता जाने के भय से ये काले कानून वापस ले लिए गए.
वहीँ किसान नेता राकेश टिकैत ने एलान किया है की उन्हें मोदी के बयान भरोसा नहीं है जब तक कानून वापस नहीं हो जाता आंदोलन जारी रहेगा,मोदी ने वादा तो 15 लाख देने का भी किया था.
अब देखना है उन असंख्य कानूनों का जिन्हें रात के अँधेरे में पास करवा लिया गया है को लेकर देश की जनता का नजरिया क्या सामने आता है ? क्या पुलवामा हत्याकांड का सच सामने आएग? राफेल घोटाला ,नोटबंदी घोटाला ,पेगासस जासूसी,संघ के लोगों की सरकारी नौकरियों में नियुक्तियों का घोटाला जैसे असंख्य राष्ट्रविरोधी कार्यों की सच्चाई क्या जनता और उसके संगठन सामने ले आने में सफल होंगे ? इन कानूनों की वापसी ने एक सनकी और अमानवीय अलोकतांत्रिक तानाशाह के हार का पथ प्रशस्त किया है.
अनिल कुमार सिंह “धर्मपथ के लिए”