आप ऐसा न समझें कि उच्च-रक्तदाब सिर्फ बूढ़ों की ही बीमारी है। यह तो एक अजीब सी अज्ञानता है। आज के समय में यह बीमारी सब से ज़्यादा 20 से 40 साल के व्यक्तियों को हो रही है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि 100 में से 90 प्रतिशत मामलों में ब्लडप्रेशर का कोई लक्षण भी नहीं दिखता है।
होता क्या है कि, कभी किसी दिन ब्लड प्रेशर नापा जाए और वह सामान्य से ज़्यादा हो और संजोग से उस दिन आपका सिर भी दुःख रहा हो, तो आप उसका कनेक्शन ब्लडप्रेशर के साथ बना लेते हो कि, इसी कारण मेरा सिर दुःख रहा है।
जबकि सिर दुखने के कोई और कारण भी हो सकते हैं। जैसे माइग्रेन होने से या रात को ठीक से नींद न आने से और सब से बड़ा कारण है चिंता। किसी ने तुम्हारे अहंकार को चोट पहुँचायी, तो तुम अंदर ही अंदर कुलबुला जाते हो। इस कुलबुलाहट का नतीजा है सिर दुखना।
क्या आप यह जानते हैं कि अगर आपको कब्ज़ हो, तब भी सिर-दर्द होता है? अब तुम कहोगे कि भला सिर-दर्द का कब्ज़ से क्या लेना-देना? जबकि कब्ज का इससे बड़ा गहरा लेना-देना है। अगर आपकी आंतों में मल फंसा हुआ है तो… जैसे तुम्हारी किचन के कूड़ेदान में तुम कूड़ा डालते जाओ और उसे बाहर नहीं फेंको, तो गरमी की वजह से अगले दिन उसमें से सड़ांध उठनी शुरू हो जाती है।
अब आप ज़रा सोचिए! सड़ांध आ रही हो और फिर भी आप कूड़ा बाहर न फेंको, तो बदबू बढ़ जाने से बंदा बेहोश हो कर गिर भी सकता है। तुमने सुना होगा कि म्युनिसिपालिटी के कुछ-एक कर्मचारियों ने सीवरेज का ढक्कन खोला और खोलते ही उसमें से निकल रही भयंकर गैस के कारण वे कर्मचारी मर गये। सीवरेज-लाइन में मनुष्यों की विष्ठा के कारण ऐसी ज़हरीली गैसें बनती जाती हैं, जिससे आदमी मर सकता है।
यही काम हमारे शरीर में भी होता है। मल जब आंतों में पड़ा-पड़ा सड़ जाता है, तो अंदर से सड़ांध उठती है। इसी सड़ांध से सिर दुःखता है, जी घबराता है, दिल कच्चा होता है, वमन की भावना होने लगती है। मैंने ऐसे भी कई लोग देखे हैं, जिनको शौच न लगे, तो भी कोई फिक्र नहीं लगती। दो दिन नहीं होगी, तो भी कहते ‘कोई बात नहीं, चलता है।’ तीसरे दिन भी न हो, तो कहते ‘चलो, अब कुछ ले ही लें।’ जो खाया-पीया है, वही अभी बाहर नहीं निकला, ऊपर से और खाते जाते हैं।
उनका खाने का प्रोग्राम तो चलता ही रहता है, वह तो बंद होता नहीं। हर 4 घण्टे में भूख लग जाती है। हर 6 घण्टे में चाय-कॉफी चाहिये। अगर आपके शरीर का सिस्टम ठीक नहीं है, तो चाय आपको और भी कब्ज़ कर देगी। माने तुम कब्ज़ को और पक्का कर रहे होते हो। चाय पीकर तुम उस पर सीमेंट लगा लेते हो कि ‘बाहर आना ही मत, अंदर ही बैठे रहना!’ जो मल तुम्हारी आंतों में फंसा रहता है, वह जितना सड़ता जाता है, उतनी पेट में ज़हरीली गैस बनती जाती है।
इसी गैस के कारण पूरा पाचन तंत्र ख़राब हो जाता है। डकारें आने लगती हैं, सिर दुखने लगता है। बहुत बार इसी को तुम कहते हो कि मुझे ज़रूर ब्लडप्रेशर है। ब्लडप्रेशर का और सिर दुखने का कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। ब्लडप्रेशर से सिर तो चकरा सकता है, पर सिर दुख नहीं सकता। सिर चकराने के भी और दस कारण हो सकते हैं। लेकिन ब्लडप्रेशर के उतार-चढ़ाव के अपने कोई विशेष लक्षण नहीं होते हैं।
इसलिए ब्लडप्रेशर की जांच तो होती रहनी चाहिए, हालांकि सुबह-शाम ब्लडप्रेशर नापने की मशीन लेकर बैठना भी उचित नहीं है। अपने शरीर के सिस्टम को समझना यह आपकी मुख्य जि़म्मेदारी होनी चाहिये। आपके शरीर में जो कुछ दिक्कतें आ रही हो, उन दिक्कतों को आप ख़ुद ही कैसे ठीक कर सकते हैं इसका ज्ञान होना भी ज़रूरी है।