एक गुरु के पास आपको न केवल आपके जीवन के कष्टों से अपितु स्वयं से भी परे ले जाने की अद्भुत क्षमता होती है। वैदिक ज्ञान के अनुसार गुरुशक्ति को सर्वोच्च स्थान और आदर दिया गया है। गुरु का अस्तित्व भौतिक शरीर तक सिमटा नहीं है, बल्कि वह एक शक्ति है जिसे दिव्य चेतना परब्रह्म से भी उच्च माना गया है।
प्रथम गुरु अथवा आदिगुरु स्वयं भगवान शिव हैं। वह शक्ति सभी विद्यमान स्वरुपों के विघटन व परिवर्तन के लिए उत्तरदायी है। एक साधक के लिए गुरु भगवान का रूप है। गुरु की शक्ति सीमित नहीं है। यह शक्ति अनंत है, अखंड है। शिष्य को गुरु द्वारा बोले शब्द को मंत्र समझना चाहिए।
प्राचीन ऋषियों ने कहा भी है कि गुरु की छवि वह मूल है जहां से ध्यान आता है, साधक के द्वारा की गई पूजा अथवा किसी भी प्रकार का तप गुरु के चरण कमल से आते हैं, मंत्र का मूल गुरु के द्वारा कहे गए शब्द हैं और मोक्ष का मूल केवल गुरु की कृपा ही है।
केवल सौभाग्यशाली व्यक्ति ही सीमित इंद्रियों के अंहकारी अनुभव के परे देख सकते हैं और इस शक्ति तक पहुंचने के लिए अपने मस्तिष्क का प्रयोग नहीं करते क्योंकि जो असीम है उसे सीमित दिमाग से नहीं समझा जा सकता।