श्री कृष्ण आज भी जीवित हैं और धरती पर रहने वाले मनुष्य की तरह उनकी भी दिनचर्या है। अगर आप जगन्नाथ पुरी जाएँ तो आपको कुछ ऐसा ही अनुभव होगा। उड़ीसा में भगवान श्री कृष्ण जगन्नाथ रूप में पूजे जाते हैं।
प्रत्येक वर्ष आषाढ शुक्ल द्वितीया को भगवान जगन्नाथ बहन सुभद्रा और दाऊ बलराम के साथ रथ यात्रा पर निकलते हैं। भगवान का रथ तीन किलोमीटर की यात्रा करके गुंडिचा मंदिर पहुंचता है।
माना जाता है कि यहां जगन्नाथ जी की मौसी का निवास है। यहीं पर लकड़ी से जगन्नाथ जी की प्रतिमा विश्वकर्मा ने बनायी थी। मौसी के यहां एक हफ्ता बिताने के बाद जगन्नाथ जी वापस लौट आते हैं।
यात्रा से 15 दिन पहले जगन्नाथ मंदिर का द्वार भक्तों के लिए बंद कर दिया जाता है। मान्यता है कि स्नान पूर्णिमा के दिन अधिक स्नान करने से जगन्नाथ जी को बुखार हो जाता है। इसलिए 15 दिनों तक जड़ी-बूटियों का भोग लगाया जाता है। जड़ी-बूटियों के उपचार से जगन्नाथ जी स्वस्थ्य होते हैं इसके बाद इनकी रथ यात्रा निकलती है।
रथ यात्रा के विषय में ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति जगन्नाथ जी के रथ को खींचता है उसे मोक्ष मिल जाता है और पुनः जन्म लेकर धरती का सुख-दुःख नहीं भोगना पड़ता है। इसी मान्यता के कारण रथ यात्रा के दौरान भक्तगण रथ को खींचने का सौभाग्य पाना चाहते हैं।