गीता जयंती 2020: द्धापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद् गीता (Srimad Bhagavad Gita) का उपदेश दिया था. इस दिन को गीता जयंती (Gita Jayanti) के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि भगवद् गीता का जन्म श्री कृष्ण (Sri Krishna) के मुख से कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ था. कलयुग के प्रारंभ होने के 30 साल पहले कुरुक्षेत्र के मैदान में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था वह श्रीमद्भगवद् गीता के नाम से प्रसिद्ध है. श्रीमद्भगवद्गीता के 18 अध्यायों में से पहले 6 अध्यायों में कर्मयोग, फिर अगले 6 अध्यायों में ज्ञानयोग और अंतिम 6 अध्यायों में भक्तियोग का उपदेश है. गीता जयंती के दिन ही मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) भी पड़ती है. मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य के मृतक पूर्वजों के लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं. कहते हैं कि जो भी व्यक्ति मोक्ष पाने की इच्छा रखता है उसे इस एकादशी (Ekadashi) पर व्रत रखना चाहिए.
गीता जयंती कब होती है ?
हिन्दू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल नवंबर या दिसंबर के महीने में आती है. इस बार गीता जयंती 25 दिसंबर को है.
गीता जयंती कब होती है ?
हिन्दू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल नवंबर या दिसंबर के महीने में आती है. इस बार गीता जयंती 25 दिसंबर को है.
श्रीमद्भगवद् गीता का जन्म
भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी गीता जयंती धूमधाम के साथ मनाई जाती है. गीता जयंती हमें याद उस पावन उपदेश की याद दिलाती है जो श्रीकृष्ण ने मोह में फंसे हुए अर्जुन को दिया था. गीता के उपदेश सिर्फ उपदेश नहीं बल्कि यह हमें जीवन जीने का तरीका सिखाते हैं. मान्यता के अनुसार, कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन अपने विपक्ष में परिवार के लोगों और सगे-संबंधियों को देखकर बुरी तरह भयभीत हो गए. साहस और विश्वास से भरे अर्जुन महायुद्ध का आरम्भ होने से पहले ही युद्ध स्थगित कर रथ पर बैठ जाते हैं. वो श्री कृष्ण से कहते हैं, ‘मैं युद्ध नहीं करूंगा. मैं पूज्य गुरुजनों तथा संबंधियों को मार कर राज्य का सुख नहीं चाहता, भिक्षान्न खाकर जीवन धारण करना श्रेयस्कर मानता हूं.’ ऐसा सुनकर सारथी बने भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उनके कर्तव्य और कर्म के बारें में बताया. उन्होंने आत्मा-परमात्मा से लेकर धर्म-कर्म से जुड़ी अर्जुन की हर शंका का निदान किया.
भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ यह संवाद ही श्रीमद्भगवद गीता है. इस उपदेश के दौरान ही भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को अपना विराट रूप दिखलाकर जीवन की वास्तविकता से उनका साक्षात्कार करवाते हैं. तब से लेकर अब तक गीता के इस उपदेश की सार्थकता बनी हुई है. श्रीकृष्ण के उपदेशों के बाद अर्जुन का मोह भंग हो गया और उन्होंने गांडीव धारण कर शत्रुओं का नाश करने के बाद फिर से धर्म की स्थापना की. जिस दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया उस दिन मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी थी. इस एकदाशी को मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है. मोक्षदा एकादशी के दिन ही गीता जयंती मनाई जाती है.
श्रीमद्भगवद् गीता का महत्व
श्रीमद्भगवद् गीता हिंदुओं का पवित्र ग्रंथ है. यह विश्व का इकलौता ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है. गीता मनुष्य का परिचय जीवन की वास्तविकता से कराकर बिना स्वार्थ कर्म करने के लए प्रेरित करती है. गीता अज्ञान, दुख, मोह, क्रोध,काम और लोभ जैसी सांससरिक चीजों से मुक्ति का मार्ग बताती है. इसके अध्ययन, श्रवण, मनन-चिंतन से जीवन में श्रेष्ठता का भाव आता है.
कैसे मनाई जाती है गीता जयंती ?
– गीता जयंती के दिन श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ किया जाता है.
– देश भर के मंदिरों विशेषकर इस्कॉन मंदिर में भगवान कृष्ण और गीता की पूजा की जाती है.
– गीता जयंती के मौके पर कई लोग उपावस रखते हैं.
– गीता के उपदेश पढ़े और सुने जाते हैं.