भोपाल – मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने शुक्रवार को प्रेसवार्ता में कोरोना को लेकर एक चौंकाने वाली बात कहीं है। उन्होंने कहा कि प्रदेश मे कोरोना महामारी से लगभग एक लाख लोगों की मृत्यु हुई हैं। मृत्यु का ऐसा आंकड़ा अभी तक कहीं से नहीं आया है। यह आंकड़ा प्रदेश और देश को हिलाने के लिए काफी है। उनका तर्क भी ठीक है कि मृत्यु का वास्तविक आंकड़ा श्मशान घाट और कब्रिस्तान से लिया जाए। कमलनाथ मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। देश के काफी वरिष्ठ एवं जिम्मेदार नेता हैं। उनकी बातों में वजन होता है। निश्चित ही उन्होंने कुछ सोचकर ही बोला होगा। इस पर प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का बयान भी आ गया। उन्होंने कहा कि अगर कमलनाथ साबित कर दें कि प्रदेश में करीब एक लाख मृत्यु हुई है तो वह राजनीति छोड़ देंगे और इस्तीफा दे देंगे। निश्चित तौर पर नरोत्तम मिश्रा सरकार की ही भाषा का इस्तेमाल कर कमलनाथ के आंकड़े को झूठा साबित करने पर तुले हैं। उन्होंने न तो WHO की रिपोर्ट (जो 21 मई को जारी हुई है) का अध्ययन किया होगा और न ही मीडिया में चल रहे आंकड़ों पर गौर फरमाया होगा। कुल मिलाकर उन्होंने तो वास्तविकता से पल्ला झाड़ने की कोशिश की है। लेकिन इससे सच्चाई पर पर्दा नहीं डाला जा सकता है।
इसी तारतम्य में दिनांक 21 मई 2021 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी विश्व स्वास्थ्य आंकड़े की वार्षिक रिपोर्ट-2021 (https://www.who.int/data/gho/publications/world-health-statistics) दी, जिसमें इस रिपोर्ट में अंकित किया गया कि कई देशों ने अपने आंकड़े छुपाए एवं स्वास्थ्य मामले में थोडे कमजोर इंफ्रा वाले देशों में इस बीमारी से करीब 80 लाख लोग मरे हैं। महामारी से विश्व के कुल संक्रमितों की संख्या 166,466,762 (https://www.worldometers.info/coronavirus/) में से भारत में संक्रमितों की संख्या 26,285,069 है, जो कि विश्व का 16% है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की विश्व स्वास्थ्य आंकड़े की वार्षिक रिपोर्ट-2021 के 80 लाख मृत्यु के 16% के हिसाब से भारत में करीब 13 लाख लोगों की मृत्यु कोरोना महामारी से हुई है। अब देश की कुल आबादी जो कि 135 करोड़ है, उसमें मध्यप्रदेश की कुल आबादी 8.6 करोड़ है। जिसका अनुपात प्रतिशत 6.37% है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुमानित मृत्यु के आंकड़े जो कि भारत में 13 लाख के लगभग है। उसमें आबादी प्रतिशत के आधार से मध्यप्रदेश में करीब 82,810 लोगों की मृत्यु हुई है। इस रिपोर्ट में प्रदेश के गांवों में हुई मृत्यु को नहीं जोड़ा गया है। यदि गांवों में हुईं मृत्यु को जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा लाखों के पार हो जाएगा। WHO की रिपोर्ट के आधार पर कमलनाथ के बयान को देखा जाए तो उन्होंने जो कहा है वह सही ही कहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर संदेह इसलिए भी नहीं किया जा सकता क्योंकि भारत के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन वर्तमान समय में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एग्जीक्यूटिव बोर्ड के चैयरमेन हैं।
हम जानते हैं कि पिछले डेढ़ महीने से देश के तमाम राज्य कोरोना महामारी का संकट झेल रहे हैं। मध्यप्रदेश भी इस महामारी से अछूता नहीं है। मध्यप्रदेश में इस महामारी ने बहुत ही तांडव मचाया है। कह सकते हैं कि मध्यप्रदेश महाराष्ट्र के बाद कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य है। इस बीमारी ने जो तांडव दिखाया उससे हम सभी दहशत में आ गए हैं। कोरोना की पहली लहर के बाद सब कुछ सामान्य सा हो गया था। हम सब भूल ही गए थे कि कोरोना नाम की बीमारी भी है। निश्चिंतता का एहसास तो यहां तक हो गया कि देश के प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ने तो करोना के खिलाफ की जंग में भारत को जीता दिखा दिया था। पिछले कुछ समय से हमारे साथ हमारी सरकारें भी लाचार दिखी। पर एक चीज़ समझ नहीं आयी कि सरकार वास्तविकता से दूर क्यों रही। इन डेढ़ महीने में कोरोना महामारी में जो मृत्यु के आंकड़े सरकारें दे रही हैं वो वास्तविकता से मेल नहीं खा रहे हैं। मध्यप्रदेश में भी जो आंकड़े सरकार दे रही है वह वास्तविकता से काफी दूर हैं। ऐसा इसलिए भी कि मैंने खुद फील्ड पर रहकर यह महसूस किया कि सरकारी आंकड़े से काफी ज्यादा लोग इस बीमारी से मरे हैं। इस थोड़े समय में हमने अपने प्रियजनों को खोया है। हमारे बहुत सारे पत्रकार साथी हमसे बिछड़ गए। ऐसे समय में सरकारी आंकड़ों को मीडिया ने अपनी रिपोर्टों से गलत साबित कर दिया है। यहां तक देश के एक अग्रणी अखबारों, न्यूज चैनलों ने तो सरकारी आंकड़ों की कलई खोल के रख दी। श्मशान घाटों से जो वास्तविक कवरेज दिया, ऐसा कुछ कवरेज मैंने 1984 के बाद नहीं देखा। पता नहीं राज्य सरकारें या केंद्र सरकार वास्तविक मृत्यु के आंकड़ों को क्यों छुपा रही हैं? इस असाधारण दौर में देशभर में जलती चिताओं के बीच पब्लिक रिलेशन का कोई भी प्रयास असंवेदनशील माना जाएगा। अब तो पॉजिटिविटी रेट कम करने के लिए टेस्टिंग ही कम हो गई हैं और जो हो भी रही है उसमें 60% से 70% रैपिड एंटीजन टेस्ट हो रहे हैं। कहीं सरकारें वास्तविक आंकड़े छुपाकर देश या प्रदेश का बहुत बड़ा नुकसान तो नहीं करने जा रही हैं।
दरसअल कोई भी वैज्ञानिक अनुसंधान का पहला पाया डाटा होता है। अब आपका वास्तविक डाटा ही गलत होगा तो इस बीमारी की तीसरी, चौथी, पांचवी लहर की तैयारी कैसे कर पाएंगे। वास्तविक तैयारी के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान होना बहुत आवश्यक है।
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