वन विभाग के बजट प्रावधान में विगत 9 वर्ष के दौरान 400 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 9वीं पंचवर्षीय योजना में वनों का आयोजना बजट जहाँ 665 करोड़ था वह 12वी पंचवर्षीय योजना में बढ़कर 4222 करोड़ हो गया है। इसी तरह वर्ष 2003-04 में जो आयोजना बजट रुपये 240.16 करोड़ था वह वर्ष 2013-14 में बढ़कर 942.60 करोड़ रुपये हो गया। प्रदेश में वर्ष 2004 से वनों की सुरक्षा एवं संवर्द्धन पर विशेष ध्यान दिया गया है ताकि स्थानीय लोगों के जीवन-स्तर में गुणात्मक सुधार के साथ ही पर्यावरण का संरक्षण भी हो।
लोक वानिकी एवं रोपणियों में पौध तैयारी योजना में वर्ष 2003-04 में 163 लाख 20 हजार का बजट था, वह वर्ष 2013-14 में 4000 लाख हो गया। वर्ष 2003-04 की तुलना में यह 2350 प्रतिशत की वृद्धि है। प्रदेश में वार्षिक वन राजस्व 2002-03 में 509 करोड़ 96 लाख था, जो वर्ष 2012-13 में बढ़कर रुपये 989 करोड़ हो गया। वनवासियों को वन संरक्षण एवं वन संवर्द्धन से जोड़ने के लिये वनोपज (काष्ठ एवं बाँस) से मिलने वाला लाभांश वर्ष 2002-03 में 3 करोड़ 93 लाख रुपये था, जो वर्ष 2012-13 में बढ़कर 33 करोड़ 45 लाख हो गया।
जनभागीदारी आधारित संयुक्त वन प्रबंधन के तहत 15 हजार 288 वन समितियाँ गठित की गई हैं। समितियों के माध्यम से 68 हजार 874 किलोमीटर वन क्षेत्रों का प्रबंधन किया जा रहा है। समितियों को 9 वर्ष के दौरान 90 करोड़ 97 लाख का लाभांश वितरित किया गया। वर्ष 2002 में तेन्दूपत्ता संग्राहकों को मात्र 8 करोड़ 25 लाख की प्रोत्साहन राशि प्राप्त होती थी जो नीति परिवर्तन के फलस्वरूप वर्ष 2011 में बढ़कर 98 करोड़ 22 लाख हो गई। वर्ष 2012 में संग्राहकों को प्रोत्साहन पारिश्रमिक की राशि 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 70 प्रतिशत की गई। इससे इस वर्ष तेन्दूपत्ता संग्राहकों को 250 करोड़ प्रोत्साहन राशि मिलने की संभावना है।