फूड सिक्योरिटी बिल को संसद में लाने में हुई देरी और विपक्ष के भारी विरोध के बीच कई राज्य पहले ही प्रपोज्ड बिल की खासियतों को लागू कर चुके हैं। प्लैनिंग कमिशन के सदस्य अभिजीत सेन से योगिमा सेठ शर्मा और माधवी शैली ने बातचीत की। सेन मॉनसून सत्र में भी इस बिल के पास करने को लेकर आशंकित हैं:
क्या आप मानते हैं कि फूड सिक्योरिटी बिल मॉनसून सत्र में पास हो जाएगा?
मैं मॉनसून सत्र में भी इसको लेकर कॉन्फिडेंट नहीं हूं। इस बिल को रखने के लिए मॉनसून सत्र सबसे अंतिम सत्र होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ, तब उसे अगली सरकार का इंतजार करना पड़ेगा। हमें इस बिल को संसद में लाने में चार साल लग गए। बिल पर भारी मतभेद हैं। यह सरकार के भीतर और विपक्ष, दोनों तरफ से हैं। ये मतभेद अचानक खत्म नहीं हो जाएंगे।
क्या बिल में फूडग्रेन के दुरुपयोग खत्म करने और क्वॉलिटी फूड की सप्लाई की समस्या को हल किया गया है?
सिर्फ बिल पास करने से फूडग्रेन के दुरुपयोग या क्वॉलिटी फूड तक पहुंच बढ़ाने की बात पूरी नहीं हो जाएगी। मेरी समझ से इस बिल को बहुत पहले आना चाहिए था। कई राज्यों में पहले से ही बिल में प्रपोज्ड कीमत से कम दाम पर अधिकतर लोगों को अनाज मिल रहा है। उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में ऐसा हो रहा है। इन राज्यों में प्रपोज्ड बिल के मुकाबले कहीं अधिक लोगों को खाद्य सुरक्षा के दायरे में लाया गया है। इसलिए बिल से इन राज्यों के लोगों को बहुत फायदा नहीं होगा। हां, उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल और गुजरात के लोगों को इस बिल का फायदा होगा।
क्या यह बिल अभी ही अपना महत्व खो चुका है?
कई राज्यों ने इस बिल की अच्छाइयों को लागू कर दिया है। उन राज्यों ने केंद्र के बिल का इंतजार करने के बजाए उचित कदम उठाने का फैसला किया। फिर, केंद्र के बिल में देरी की एक बड़ी वजह विपक्ष की तरफ से जबरदस्त बाधा भी है।
फूड मिनिस्ट्री ने डिस्काउंट प्राइस पर गेहूं का स्टॉक नहीं बेचने का फैसला किया है?
फूड सिक्योरिटी बिल के तुरंत पास करने से यह स्टॉक काम आ जाता। एक मनोवैज्ञानिक सोच है कि बिल आने वाला है और उसके लिए बड़े पैमाने पर स्टॉक की जरूरत होगी। गेहूं को डिस्काउंट प्राइस पर नहीं बेचने का फैसला बहुत ही बेहूदा तर्क है। आप पहले खरीदने के लिए पैसा खर्च करते हैं, उसके बाद आप स्टॉक करने के लिए खर्च कर कर रहे हैं। हमें सिर्फ स्टॉक पर 3-5 रुपए प्रति किलोग्राम तक खर्च करना पड़ता है। दुनिया भर में गेहूं की कीमतें कम हो रही हैं। घरेलू मार्केट में डिमांड है, लेकिन कोई फ्रेश गेहूं की जगह एमएसपी पर स्टॉक गेहूं क्यों खरीदेगा?