शरीर शास्त्रियों के अनुसार शरीर को स्वस्थ और पुष्ट रखने के लिए संपूर्ण अर्थात जरूरी विटामिन और खनिज युक्त ऐसा भोजन चाहिए जो उसे पर्याप्त ऊर्जा या ऊष्मा दे सके। पर अध्यात्मविदों का कहना है कि ठोस आहार केवल ज्यादा से ज्यादा ईंधन प्रदान करने का काम काम करता है। असली पोषण तो ईथर से ही मिलता है। ईथर यानी चारों और फैला आकाश और उसमे व्याप्त विद्युत तरंगें।
इस मान्यता के कारण ही दुनिया के सभी धर्मों में उपवास का महत्व है। समझा जाता है कि इससे शरीर, मन और चेतना का परिमार्जन होता है और व्यक्ति सूक्ष्म शक्तियों के सान्निध्य में पहुंचता है। विज्ञान अभी इस नतीजे तक तो नहीं पहुंचा है पर यह जरूर मानने लगा है कि स्वस्थ रहने के लिए पेट भरकर खाने से खाली पेट रहना ज्यादा अच्छा है।
बीमार होने पर तो उपवास को सबसे अच्छा इलाज माना गया है। धार्मिक मान्यताओं से परे भी यह निर्विवाद है कि उपवास से शरीर स्वस्थ रहता है। विरोध का चरम प्रतीक-उपवास वास्तव में अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए सबसे असरदार अमृत हो सकता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि बार-बार सामान्य से हल्का भोजन करना अच्छा होता है।
एडिलेड यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने पाया है कि रुक-रुक कर उपवास करने से कोलेस्ट्रॉल और फैटी ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर कम होता है। सिडनी के गार्विन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार उपवास हृदय रोग और मधुमेह के खिलाफ आपके प्रतिरोध को बढ़ा सकता है। नियमित रूप से नपा-तुला भोजन लंबी डाइटिंग से बेहतर साबित हो सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उपवास मानव इतिहास में हमेशा भोजन के तौर-तरीके का हिस्सा रहा है।
योगमार्ग के अनुयायियों के अनुसार उपवास का लाभ शरीर को स्वस्थ रखने से ज्यादा उसे और चित्त को निर्मल करने के रूप में ज्यादा मिलता है। कहा भी गया है- मन चंगा तो कठौती में गंगा। बिना भोजन के पैंतीस से चालीस दिन तक रहा जा सकता है पर अति या अनियमित अशुद्ध भोजन आठ दस दिन में ही गड़बड़ कर देता है।