Divorce Case: बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने तलाक से जुड़े एक मामले में अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि कोई भी व्यक्ति हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत इस आधार पर तलाक नहीं मांग सकता है कि उसके जीवनसाथी को मिर्गी की बीमारी है. जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस एसए मेनेजेस की डिवीजन ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. फैमिली ने पति को तलाक की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. पति ने इस आधार पर तलाक मांगी थी कि उसकी पत्नी मिर्गी से पीड़ित है. ये एक लाइलाज बीमारी है. मानसिक रूप से अस्वस्थ भी है.
पति ने आरोप लगाया था कि मिर्गी के कारण उसकी पत्नी असामान्य व्यवहार करती थी और आत्महत्या करने की धमकी भी देती थी, जिसके कारण शादी टूट गई. हालांकि, उच्च न्यायालय इन आरोपों से सहमत नहीं था.
अदालत ने कहा,
“‘मिर्गी’ न तो लाइलाज बीमारी है और न ही इसे हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(iii) के तहत आधार बनाते हुए मानसिक विकार या मनोरोगी विकार माना जा सकता है.”
अदालत ने रघुनाथ गोपाल दफ्तरदार बनाम विजया रघुनाथ दफ्तरदार मामले में सिंगल जज के फैसले पर भरोसा जताया. ने आगे कहा कि इस बात के प्रचुर मात्रा में चिकित्सीय साक्ष्य हैं कि ऐसी चिकित्सीय स्थिति पति-पत्नी के एक साथ रहने में बाधा नहीं बनेगी.
कोर्ट ने कहा कि इस आधार पर, हम मानते हैं कि पति यह साबित करने में विफल रहा है कि पत्नी मिर्गी से पीड़ित थी या यहां तक कि, यदि वह ऐसी स्थिति से पीड़ित थी, तो इसे धारा 13(1)(iii) के तहत एक आधार माना जा सकता है.