राजा स्वयं भयभीत है ,कोरोना के प्रथम काल में भोपाल की गलियों में घूम कोरोना फ्रंट वारियर्स को उत्साह देने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस कोरोना के इस दूसरे आक्रमण में स्वयं भयभीत हो रास्तों पर नहीं निकले , घनघोर संक्रमण काल में वे डिजिटल माध्यम से ही सम्बोधित करते रहे,शिवराज सिंह चौहान स्वास्थ्य आग्रह के बाद अपने निवास और कार्यालय में ही रहे रास्तों पर नहीं निकले.
मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाएँ पहले भी ठीक नहीं थीं लेकिन बात दबाये दबी थी,यदा-कदा कोई गंभीर घटना होने पर अखबार एक छोटी सी खबर छाप शांत हो जाते थे न उस पर कोई चर्चा होती थी ,न सम्पादकीय लिखे जाते थे और न ही उस खबर की बाद में समीक्षा ही होती थी ,एक कमेटी बन जाती थी और उसमें भी अधिकांशतः फर्जीवाड़े के जिम्मेदार लोगो को भर लिया जाता था और मामला शांत हो जाता था, सरकार प्रसन्न थी की सब चंगा है जी ,अधिकारी प्रसन्न थे की सब चंगा है जी और जनता हमेशा की तरह अपना रोष प्रगट कर अपने रास्ते चल देती की सब चंगा है जी.
कोरोना की पहली लहर आते ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मप्र की गद्दी पर वापस आना हुआ उन्होंने करोना मैनेजमेंट में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और कोरोना वारियर्स के समर्थन में सड़कों पर उतरते भी नजर आये और बाकायदा उसकी तस्वीरें मीडिया में प्रसारित करवाई गयीं तब शिवराज सिंह को भी कोरोना की भयावहता का इतना अंदाजा नहीं था क्योंकि दूसरी लहर के अपनी विकरालता दिखाते ही शिवराज सिंह चौहान सड़कों पर उतरना भूल गए वे भयवश जनता के बीच नहीं आये जबकि बंगाल चुनाव से दमोह चुनाव तक वे भीड़ में पाए जाते रहे. इन चुनावों ने भाजपा एवं कांग्रेस के कई नेताओं सहित सैकड़ों लोगों की बलि ले ली.
ख़ैर हम बात कर रहे हैं कोरोना की द्वितीय लहर ने मप्र में स्वास्थ्य सुविधाओं के दावों की धज्जियाँ उड़ा कर रख दीं जब लहार की आक्रामकता बढ़ी तब सैरकारी डाक्टरों एवं मेडिकल कर्मियों ने सीमित संसाधनों एवं दिशाहीन नेतृत्व के बावजूद युद्धस्तर पर कार्य किया,न जिला अस्पताल के डाक्टरों को पता था क्या करना है और न मंत्रालय में बैठे नीति-निर्देशक अफसरों को पता था क्या किया जाय,वातानुकूलित कमरों में अर्दलियों को आदेश देते ये अधिकारी अमानवीय हो गए थे वे अपने आप को सुरक्षित रकने में व्यस्त थे जनता की जनता जाने नतीजा कोरोना के दुसरे काल के पहले पखवाड़े मौत का नंगा नाच कोरोना ने इस धरती पर दिखाया।
झोला छाप डाक्टरों का कुचक्र मप्र ही नहीं सम्पूर्ण भारत में फैला हुआ है और ये सरकार की लचर व्यवस्था का भरपूर फायदा उठाने में निपुण हैं,ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली खबरें और उन क्षेत्रों में काम करने वाले और वहां से लगातार संपर्क रखने वाले डॉक्टर बता रहे हैं कि समुचित स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाओं के अभाव में लोग बीमार होने पर इन झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाने को मजबूर हैं. ग्रामीण इलाकों में ऐसे कई कथित डॉक्टर हैं जिन्होंने दो-दो चार-चार बेड का जुगाड़ कर कोरोना मरीजों का अपने हिसाब से इलाज करना शुरू कर दिया है.मध्यप्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं में उच्च पद पर रहे एक सेवानिवृत्त अधिकारी जो स्वयं डॉक्टर हैं, ने बताया कि सबसे गंभीर बात ये है कि ये फर्जी डॉक्टर इलाज के नाम पर लोगों को ग्लूकोज की बोतलें चढ़ाने और स्टेराइड देने का काम कर रहे हैं. जबकि ये दोनों ही चीजें बगैर विशेषज्ञ डॉक्टर की निगरानी के, किसी भी मरीज को नहीं दी जानी चाहिए. कोरोना के शुरुआती लक्षण दिखने पर ही मरीजों को कामचलाऊ तरीके से तैयार किए गए बेड पर भरती कर उन्हें धड़ल्ले से स्टेराइड देने का काम किया जा रहा है. स्टेराइड के असर के चलते मरीज तात्कालिक तौर पर बेहतर महसूस करने लगता है और मान लेता है डॉक्टर ने उसकी बीमारी ठीक कर दी. जबकि उसे पता ही नहीं होता कि आगे चलकर यह स्टेराइड उसके शरीर को कितना नुकसान पहुंचा सकता है.
दूसरे कोरोना के मरीजों को बहुतायत में ग्लूकोज चढ़ाया जा रहा है जबकि फेफड़ों के संक्रमण का शिकार हुए मरीजों और खासतौर से डायबिटीज के मरीजों के लिए ग्लूकोज जानलेवा तक हो सकता है. इससे संक्रमण के और अधिक फैलने और मरीज की हालत आगे चलकर गंभीर होने की आशंका होती ही है. लेकिन बगैर फेफड़ों के संक्रमण का पता किए और बगैर मरीज की शुगर की जांच आदि करवाए, आंख मूंद कर ग्लूकोज चढ़ाया जा रहा है. चूंकि ग्लूकोज का चढ़ाया जाना आज भी ग्रामीण इलाकों में एक तरह से इलाज का अहम हिस्सा माना जाता है इसलिए मरीज भी मान लेते हैं कि उनका प्रभावी तरीके से इलाज हो रहा है. डॉक्टरों के अनुसार ग्रामीण इलाकों की दवा दुकानों से इन दिनों स्टेराइड और ग्लूकोज की बोतलों की भारी खरीद हो रही है.
झोलाछाप या फर्जी डॉक्टरों पर कार्रवाई करने या उन्हें हतोत्साहित करने के बजाय उनका यह कहकर समर्थन किया जा रहा है कि सरकारी इंतजाम न होने पर कम से कम ये डॉक्टर (?) मरीजों का इलाज तो कर रहे हैं. पिछले दिनों आगर मालवा जिले की सुसनेर तहसील के धनियाखेड़ी गांव में एक झोलाछाप डॉक्टर द्वारा संतरे के बगीचे में जमीन पर मरीजों को दरी और कार्डबोर्ड पर लिटाकर उनका इलाज किया जा रहा था. इसका एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिसमें दिख रहा था कि मरीज जमीन पर लेटे हैं और पेड़ की डालियों पर टंगी ग्लूकोज की बोतलों से उन्हें ग्लूकोज चढ़ाया जा रहा है. इस फोटो पर कई प्रतिक्रियाएं आई थीं लेकिन हैरानी की बात यह रही कि बजाय मामले की गंभीरता को समझने के, यह कहने वालों की बाढ़ सी आ गई कि कम से कम कोई मरीजों का इलाज तो कर रहा है.
सरकार ने ऐसी घटनाएं रोकने के लिए जिला प्रशासनों से सख्ती बरतने को कहा है लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि झोलाछाप डॉक्टरों और उनके द्वारा इलाज के नाम पर मरीजों से किए जा रहे खिलवाड़ को कई जनप्रतिनिधि भी समर्थन दे रहे हैं. आगर के कांग्रेस विधायक विपिन वानखेड़े ने तो झोलाछाप डॉक्टरों का समर्थन करते हुए जिला कलेक्टर अवधेश शर्मा के नाम एक पत्र जारी किया, जिसमें उन्होंने लिखा कि ऐसे डॉक्टरों को कोरोना से संबंधित इलाज की ट्रेनिंग दी जाए और समयसीमा तय करते हुए उन्हें ग्रामीण क्षेत्र में इलाज की इजाजत मिले. विधायक ने लिखा कि झोलाछाप डॉक्टर पर ग्रामीण जनता का अतिविश्वास है और कोरोना से लड़ने के लिए मरीज में आत्मविश्वास होना अतिआवश्यक है.
रेमडेसिविर इंजेक्शन का मामला तो और भी ज्यादा चौंकाने वाला है. बताया जा रहा है कि ये झोलाछाप डॉक्टर रेमडेसिविर भी लिख रहे हैं. इसी बीच प्रदेश में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन सप्लाय करने का धंधा बड़े पैमाने शुरू हो गया है. हाल ही में मध्यप्रदेश के कई इलाकों से ऐसी खबरें आई हैं जहां मरीजों को नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन लगा दिए गए. मामला उजागर होने के बाद सरकार ने इसकी जांच के आदेश दिए हैं. पता चला है कि इन नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन की सप्लाई गुजरात की एक कंपनी ने की थी. इसने ग्लूकोज और सलाइन वॉटर से तैयार किए गए ऐसे 1200 नकली इंजेक्शन की खेप मध्यप्रदेश भेजी थी जिसमें से 700 इंदौर में और 500 जबलपुर में खपाए गए.
यहां चौकाने वाली बात यह भी है कि नकली इंजेक्शन सप्लाई को लेकर सरकार के प्रतिनिधि तक अजीब बयान दे रहे हैं. प्रदेश के एक मंत्री का बयान मीडिया में प्रकाशित हुआ है जिसमें उनके हवाले से कहा गया है कि नकली रेमडेसिविर लगने के बाद भी लोगों की जान बच रही है. ये बात यह सोचने के लिए बाध्य करती है कि कहीं असली रेमडेसिविर का हाईडोज देने के कारण तो मौतें नहीं हो रहीं? इस बीच शनिवार को एक राष्ट्रीय दैनिक ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें कहा गया है कि नकली रेमडेसिविर कांड की जांच के दौरान पुलिस ने पाया कि ये नकली इंजेक्शन लगवाने वालों में 90 प्रतिशत लोग बच गए. सिर्फ 10 फीसदी की ही मौत हुई. एक तरफ सरकार का यह कहना कि वो नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन के मामले में हत्या का केस दर्ज करने जैसी सख्त कार्रवाई करेगी और दूसरी तरफ जांच एजेंसियों का यह आकलन कि नकली इंजेक्शन से तो उतनी मौतें हुई ही नहीं हैं, मामले को उलझाने वाला है.
शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में प्राइवेट नर्सिंग होम खूब फले-फूले ,आवासीय इलाकों में नियमों को धता बता कर इन नर्सिंग होम का संचालन किया गया और सरकार उन्हें बचाने नियमों में बदलाव करती चली गयी यहाँ तक की एक आवासीय इलाके में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वयं एक सीटी स्कैन सेंटर का उदघाटन किया था , ये नर्सिंग होम सेवा के पेशे में आकर कसाईखाने बन गए ,लाशों पर पैसे कमाना इनका शगल बन गया ,सामान्य रोगी को भर्ती कर इलाज करना,किसी भी रोगी को गहन चिकित्सा इकाई में डाल देना भले ही उसकी जरूरत हो या न हो इनकी परिपाटी बन गयी इन अस्पतालों का सिर्फ एक उद्देश्य बन गया कैसे इलाज महंगा किया जाय और पैसे ज्यादा से ज्यादा वसूले जाएँ ,सरकारों ने भी इन्हें फैलने फूलने का पूरा मौक़ा दिया एवं सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर करने की दिशा में उचित कदम नहीं उठाये जबकि राज्य के नागरिक का अधिकार है की वह सरकार से बेहतर चिकित्सा सुविधाओं की आशा कर सके.शिवराज के इन 18 वर्षों के सुशासन की कलई कोरोना काल ने खोल कर रख दी है,शिवराज के वादे और घोषणाएं धरातल पर थोथी साबित हुई हैं.
कोरोना की दूसरी लहर ने बता दिया की महंगे अस्पताल भी ,ज्यादा धन भी उन पहुँच वालों को बचा न पाया जिन्हें गुमान था की उनके पास पैसा,पावर और आम जन से बेहतर संसाधन हैं जो उन्हें बचा लेंगे लेकिन मौत ने उन्हें भी नहीं बख्शा।आम जनता बीमारी से पीड़ित हो अपनी और सम्बन्धियों की जान बचाने के लिए संघर्ष करती नजर आयी वहीँ कलियुग के नर-पिशाच आपदा को अवसर में भुनाने में लगे नजर आये ,एम्बुलेंस व्यवस्थाएं,अस्पताल,नकली दवाईओं कारोबारी,ब्लैक में दवाईयां बेचने वाले,सत्ता के निकट जुड़े व्यवसायी और श्मशान के कारिंदों ने जम कर मनमानी की इनके सामने प्रशासन पंगु दिखाई दिया आदेश सिर्फ वल्लभ भवन के गलियारों तक ही सीमित दिखे वहां से उतर वे धरा तक नहीं दिखे।
शिवराज सिंह ने डैमेज कंट्रोल के चलते कुछ घोषणाएं कीं हैं जैसे पत्रकारों को फ्रंट लाइन कोरोना वर्कर मानना,पत्रकारों एवं उनके आश्रितों को कोरोना होने पर मुफ्त इलाज की सुविधा देना,आयुष्मान कार्ड धारकों का इलाज मप्र के किसी भी अस्पताल में किया जाना,पीड़ित शासकीय कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकम्पा नियुक्ति देना लेकिन इसमें भी विवाद सामने आ रहे हैं अस्पताल आयुष्मान कार्ड से इलाज मान नहीं रहे हैं उन्हें नोटिस जारी किये जा रहे हैं,पत्रकारों के निशुल्क इलाज का आदेश जनसम्पर्क विभाग तक नहीं पहुंचा है विभाग पत्रकारों को जवाब नहीं दे पा रहा है, अनुकम्पा नियुक्ति का प्रावधान पहले ही था अब उसे मेकअप कर प्रस्तुत किया गया है आखिर जनता कब तक भुलावे में रहेगी ,कांग्रेस सत्ता से हटने से राहत महसूस कर रही होगी और अब इस आपदा के बाद ज्यादा मजबूत स्थिति में सामने आएगी।
सरकार के सामने आर्थिक अव्यवस्था का जीन अब मुंह फाड़ सामने आने वाला है ,केंद्र सरकार स्वयं अक्षम है वह केंद्र के खर्चों को नहीं पूरा कर पा रही है तो राज्यों की सहयाता क्या करेगी ? यदि कुछ दिया भी तो वह ऊँट के मुंह में जीरे के समान ही साबित होगा जिसके आसार कम नजर आते हैं,उद्योग धंधे चौपट पहले ही थे अब दुसरे काल की मार से उनका उठना और मुश्किल हो गया है.
सरकार इस विषम परिस्थिति से जनसहयोग ले कर उबर सकती है लेकिनउसकी नीयत और माद्दा नहीं है,जनता को आर्थिक ढील देनी होगी ,व्यवसायिओं को राहत पॅकेज देना होगा ,जीएसटी के प्रावधानों को सरल करना होगा,निवेश के प्रावधानों को सरल करना होगा,आयात-निर्यात में सरलता लानी होगी,निजीकरण की तरफ से दूर हटना होगा,जनता में विशवास दिलाना होगा की सरकार उनकी शुभचिंतक और पोषक है न की शोषक …….. यदि सत्ता का मानस जनहितकारी नहीं हुआ तो बड़ा उत्प्लावन निश्चित है
अनिल कुमार सिंह “धर्मपथ के लिए”