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 सिंधुवन में बद्री-केदार की महिमा अपार | dharmpath.com

Saturday , 23 November 2024

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सिंधुवन में बद्री-केदार की महिमा अपार

badrinathयमुनानगर जिले के कपाल मोचन से करीब 15 किलोमीटर व बिलासपुर गांव से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर हिमालय की शिवालिक की पहाड़ियों के बीच सिंधुवन में स्थित आदिबद्री नाम से प्रसिद्ध ऐतिहासिक धार्मिक स्थल को भगवान बद्रीनाथ के प्राचीन निवास स्थान और सरस्वती नदी के उद्गम स्थल के रूप में जाना जाता है।

अधिकतर श्रद्धालु मानते हैं कि हिमालय में तपस्या करने से पूर्व भगवान विष्णु ने सिंधुवन में सरस्वती नदी के उद्गम स्थल पर तप किया था। इसीलिए इस स्थान को आदिबद्री नाम से जाना जाता है। यहीं पर भगवान केदारनाथ का मंदिर भी स्थित है जो उत्तराखंड के दुर्गम रास्तों में स्थित बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम की यात्रा करने की तरह पुण्य फल प्रदान करते हैं। चार धामों के रूप में माने जाने वाले इस ऐतिहासिक धार्मिक स्थल पर सरस्वती नदी के उत्तरी तट पर श्री आदिबद्री नारायण नाम से भगवान बद्रीनाथ का प्राचीन मंदिर स्थित है तो दक्षिण दिशा में भगवान केदारनाथ का, पूर्व में माता मंत्रा देवी व पश्चिम में मां सरस्वती कुंड है। प्राकृतिक सौंदर्य से सराबोर यह धार्मिक स्थल अनेक वर्षो से श्रद्धालुओं की आस्था व अटूट विश्वास का प्रतीक बना हुआ है। यहां पर स्थित केदारनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग व मंदिर के बाहर नंदी की प्रतिमा हर श्रद्धालु को आस्थामय कर देते हैं। यहां पर हर रविवार और सावन मास में प्राचीन शिवलिंग के दर्शन कर मन्नतें मांगने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर पूर्णमासी तक और अक्षय तृतीया तक वर्ष में दो बार मेला भी लगता है। हर रविवार को यहां पर भक्तों द्वारा भंडारा भी लगाया जाता है।

यहां पर स्थित केदारनाथ मंदिर के पुजारी कृपा शंकर का कहना है कि इस प्राचीन मंदिर को आदिगुरु शंकराचार्य ने स्थापित किया था। सरस्वती नदी के उत्तरी तट पर स्थित भगवान बद्रीनाथ के श्री आदिबद्री नारायण मंदिर में चार भुजाओं वाली तप की मुद्रा में भगवान विष्णु की प्रतिमा हर श्रद्धालु को सहज ही आकर्षित कर लेती है। आदिबद्री नारायण मंदिर के पुजारी देवकीनंदन शास्त्री का कहना है कि भगवान बद्रीनाथ ने हिमालय प्रस्थान से पहले इसी स्थान पर तप किया था जिस कारण इस स्थान को आदिबद्री नाम से जाना जाता है। पृथ्वी पर भगवान विष्णु के तप करने के दौरान माता लक्ष्मी ने बेरी के पेड़ के रूप में प्रकट रहकर विष्णु को छाया व रक्षा प्रदान की थी। लक्ष्मी बद्री रूप में थी तो यज्ञ की सफलता के लिए उन्होंने मंत्रों से मां मंत्रा को प्रकट किया। श्री आदिबद्री नारायण मंदिर से काफी ऊंचाई पर संपूर्ण विश्व में मंत्रों द्वारा उत्पन्न एकमात्र माता मंत्रा देवी का मंदिर पिंडी रूप में पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। पुजारी का कहना है कि आदिबद्री का अर्थ ही प्राचीन बेरी का पेड़ है जिनको इसी स्थान पर पहाड़ी पर स्थापित किया गया है। करीब तीन किलोमीटर की चढ़ाई के बाद हिमाचल के सिरमौर जिले व यमुनानगर की सीमा रेखा पर स्थित मंत्रा देवी के मंदिर में भी हर श्रद्धालु बड़ी आस्था से पहुंचता है। माना जाता है कि इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने हिमालय प्रस्थान से पहले तप किया था। इसीलिए यमुनानगर के इस आदिबद्री नामक ऐतिहासिक धार्मिक स्थल को बद्रीनाथ धाम से भी प्राचीन माना जाता है। इसी स्थान के पास बाबा गोरखनाथ की इष्ट रणचंडी के रूप में प्रचलित गोशाला भी है जो भक्तों के कष्टों को हर लेती है। यहां पर अष्टबसु धारा से आठ अलग-अलग स्वादों में जल प्रवाहित होता है। भारतवर्ष में प्रथम प्रयोगात्मक वनस्पति यज्ञशाला भी यहां स्थित है। सरस्वती नदी के उद्गम स्थल के दर्शनों के लिए यहां अनेक श्रद्धालु तो आते ही रहते हैं, पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी यहां पर आ चुके हैं। उद्गम स्थल से निकले पुरातन अवशेष भी यहां पर संग्रहीत किए गए हैं। इस सिंधुवन क्षेत्र में भगवान बद्रीनाथ व केदारनाथ की अपार महिमा दिखाई देती है।

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