ऊधमपुर। क्रिमची गांव में बने प्राचीन मंदिर समूह जितने खूबसूरत हैं उससे कहीं ज्यादा ये सरकार व प्रशासन की उपेक्षा का शिकार हैं। पांडवकाल से जुड़े मंदिरों की अनुपम छटा देखते ही बनती है।
यहां तक पहुंचने का रास्ता पथरीला व दुर्गम होने के कारण यह विरासत आज भी गुमनामी में है। पौराणिक महत्व वाली यह विरासत जिला ऊधमपुर मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में क्रिमची गांव की हरी-भरी पहाड़ियों के बीच अवस्थित है। समुद्रतल से 730 मीटर की उंचाई पर कश्मीर राजमार्ग पर बीरूनाला जिसे स्थानीय लोग भूतेश्वरी गंगा कहते हैं के तट पर स्थित चार वृहद व तीन लघु मंदिरों का समूह हैं।
पुरातत्व विभाग इस मंदिर समूह का निर्माण आठवीं से नौवीं शताब्दी में होने की संभावना व्यक्त करता है। इन मंदिरों की निर्माण शैली भुवनेश्वर, चंबा व भरमौर के मंदिरों जैसी है। एक मंदिर को छोड़कर शेष सभी पूर्वाभिमुख हैं। एक मंदिर के अंतराल के सम्मुख मंडप है, जो परवर्तीकालीन निर्माण प्रतीत होता है। यह स्थल आर्केलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा संरक्षित घोषित स्मारकों की सूची में है।
पांच दशक पूर्व पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित कर कब्जे में लिया था। उस समय यह जर्जर था। एक मंदिर को छोड़कर शेष ध्वस्त हो चुके थे, मगर पुरातत्व विभाग के दशकों तक प्रयास, कुशल कारीगरों की मेहनत और करोड़ों के खर्च से पुराना स्वरूप काफी हद तक लौटा है।
खुदाई के दौरान पुरातत्व विभाग को यहां से खड़ी अवस्था में भगवान विष्णु की प्रतिमा, देवी-देवताओं की कुछ विखंडित मूर्तियां, मिट्टी के बर्तन व बहुतायात में सिलबट्टे प्राप्त हुए थे। माना जाता है कि मुगल शासकों के शासनकाल के दौरान इस मंदिर समूह की मूर्तियों को खंडित किया गया है। पांडव मंदिर की इन विखंडित मूर्तियों व खोदाई में मिट्टी के बर्तनों को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित कर मंदिर परिसर में लोहे के जंगले लगाकर एक हॉलनुमा कमरे में सुरक्षित रखा है।
अज्ञातवास में इन मंदिरों में रहे थे पांडव-
किंवदंतियों के अनुसार, क्रिमची नगर को महाभारतकाल में हुए राजा कीचक ने बसाया था। ऐसी भी अवधारणा है कि पांडवों ने एक वर्ष का अज्ञातवास इन मंदिर समूह में व्यतीत किया था। यही वजह है कि ये मंदिर पांडव क्रिमची मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं।
किंवदंतियों के अनुसार, क्रिमची नगर को महाभारतकाल में हुए राजा कीचक ने बसाया था। ऐसी भी अवधारणा है कि पांडवों ने एक वर्ष का अज्ञातवास इन मंदिर समूह में व्यतीत किया था। यही वजह है कि ये मंदिर पांडव क्रिमची मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं।
दुर्गम और कठिन है प्राचीन मंदिरों की डगर-
क्रिमची पांडव मंदिर तक को कोई भी वाहन से पहुंच सकता है, लेकिन इसके आगे करीब एक किलोमीटर मार्ग पत्थरीला व उतार चढ़ाव वाला है। पांडव मंदिर देखने के लिए आने वाले कई पर्यटक तो इस दुर्गम व कच्चे पथरीले रास्ते को देखकर या थोड़ी दूर तक चलकर लौट जाते हैं। ऐसे रास्ते के बावजूद छुट्टी के दिनों में यहां पर करीब सौ या इससे अधिक लोग पहुंच जाते हैं, जिसमें ज्यादातर संख्या स्थानीय लोगों के अलावा पिकनिक के लिए आने वाले स्कूलों की होती है। हर वर्ष ऊधमपुर जिले में होने वाली नेशनल हेरिटेज ट्रैकिंग में हिस्सा लेने वाले ट्रैकर्स को भी इन मंदिरों को दिखाया जाता है। क्त्रिमची पांडव मंदिर तक को कोई भी वाहन से पहुंच सकता है, लेकिन इसके आगे करीब एक किलोमीटर मार्ग पत्थरीला व उतार चढ़ाव वाला है। पांडव मंदिर देखने के लिए आने वाले कई पर्यटक तो इस दुर्गम व कच्चे पथरीले रास्ते को देखकर या थोड़ी दूर तक चलकर लौट जाते हैं। ऐसे रास्ते के बावजूद छुट्टी के दिनों में यहां पर करीब सौ या इससे अधिक लोग पहुंच जाते हैं, जिसमें ज्यादातर संख्या स्थानीय लोगों के अलावा पिकनिक के लिए आने वाले स्कूलों की होती है। हर वर्ष ऊधमपुर जिले में होने वाली नेशनल हेरिटेज ट्रैकिंग में हिस्सा लेने वाले ट्रैकर्स को भी इन मंदिरों को दिखाया जाता है।
लोगों का विरोध बनता रहा सड़क निर्माण में बाधा-
जिला प्रशासन ने क्रिमची मंदिर तक चार साल पूर्व सड़क बनाने का काम शुरू किया था। मंदिर तक करीब एक किलोमीटर सड़क बनाने के लिए 32 रुपये भी प्रशासन के पास पहुंच गए हैं। इसके अलावा जमीन अधिग्रहण करने के लिए भी 15 लाख रुपये आए थे। पहले पुराने रास्ते को पक्का बनाने की योजना थी, लेकिन बाद में ऑर्केलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया ने गूगल मैप पर नया मार्ग अंकित कर उसे बनाने के लिए प्रस्तावित किया था। पुरातत्व विभाग के मुताबिक, मौजूदा पुराना रास्ते से मंदिर के पिछले हिस्से से प्रवेश होता है जबकि नए रास्ते से मंदिर के सामने वाले हिस्से में प्रवेश होगा। यहां पर पार्किग की समुचित व्यवस्था की जा सकती है लेकिन पिछले हिस्से में यह संभव नहीं है। इसके साथ ही नए रास्ते से मंदिर की दूरी आधा किलोमीटर से भी कम रह जाएगी, जबकि मौजूदा पुराने मार्ग से एक किलोमीटर से थोड़ी ज्यादा है। जिला प्रशासन ने क्रिमची मंदिर तक चार साल पूर्व सड़क बनाने का काम शुरू किया था। मंदिर तक करीब एक किलोमीटर सड़क बनाने के लिए 32 रुपये भी प्रशासन के पास पहुंच गए हैं। इसके अलावा जमीन अधिग्रहण करने के लिए भी 15 लाख रुपये आए थे। पहले पुराने रास्ते को पक्का बनाने की योजना थी, लेकिन बाद में ऑर्केलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया ने गूगल मैप पर नया मार्ग अंकित कर उसे बनाने के लिए प्रस्तावित किया था। पुरातत्व विभाग के मुताबिक, मौजूदा पुराना रास्ते से मंदिर के पिछले हिस्से से प्रवेश होता है जबकि नए रास्ते से मंदिर के सामने वाले हिस्से में प्रवेश होगा। यहां पर पार्किग की समुचित व्यवस्था की जा सकती है लेकिन पिछले हिस्से में यह संभव नहीं है। इसके साथ ही नए रास्ते से मंदिर की दूरी आधा किलोमीटर से भी कम रह जाएगी, जबकि मौजूदा पुराने मार्ग से एक किलोमीटर से थोड़ी ज्यादा है।