नई दिल्ली: चार मैचों की श्रंखला में भारतीय टीम आस्ट्रेलिया पर 3-0 की बढ़त बना चुकी है। अब उसकी नजर क्वीनस्वीप पर है। खिलाड़ी इसके लिए कमर कसे हुए हैं लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि इस अभियान में फिरोजशाह कोटला मैदान की पिच भारतीय टीम को किस हद तक मदद पहुंचाती है?
कोटला की पिच ने मंगलवार को ही अपना असल `रंग` दिखा दिया था। पिच पर घास नहीं थी। वह पूरी तरह सूखी हुई दिख रही थी लेकिन उसे अच्छी तरह रोल किया गया था। उसके आसपास काफी हरियाली और नमी मौजूद थी। बुधवार को हुई हल्की बारिश ने इस हरियाली और नमी में इजाफा किया लेकिन कुल मिलाकर इस सूखी हुई सख्त पिच पर क्यूरेटर वेंकट सुंदरम ने परिणाम आने का दावा किया था।
सुंदरम ने गुरुवार को भी इस दावे को दोहराया। सुंदरम ने ज्यादा कुछ बताने से इंकार किया लेकिन इतना जरूर कहा कि पिच ज्यादा उछाल नहीं देगी और वक्त बीतने के साथ यह स्पिनरों के `दोस्त` के रूप में सामने आएगी।
बीसीसीआई की पिच समिति के प्रमुख दलजीत सिंह इसे मंगलवार को ही हरी झंडी दे चुके हैं और इस लिहाज से माना जा रहा है कि 2010 की तरह यह किसी विवाद को जन्म नहीं देगी। 2010 में भारत और श्रीलंका के बीच खेला गया एक दिवसीय मैच पिच खराब होने के कारण रद्द कर दिया गया था और इसके बाद आईसीसी ने कोटला पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह प्रतिबंद विश्व कप से ठीक पहले हटाया गया था।
चेन्नई में खेले गए पहले टेस्ट मैच के दौरान भारतीय टीम का सामना एक ऐसी पिच से हुआ था, जिस पर स्पिनरों ने सभी 20 विकेट झटके थे और फिर उप्पल में खेले गए दूसरे मुकाबले में भी यही हुआ, जहां दो-तिहाई विकेट स्पिनरों के नाम रहे।
मोहाली में स्थिति बदली हुई दिखी और वहां एक ऐसी पिच सामने आई, जिस पर स्पिनरों के साथ-साथ तेज गेंदबाजों के लिए भी काफी कुछ था। दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ के सूत्र बताते हैं कि भारतीय टीम के स्थानीय गेंदबाज इशांत शर्मा और उत्तर प्रदेश के भुवनेश्वर कुमार को ध्यान में रखकर कोटला की पिच को इस तरह बनाया गया है, जहां उनकी गेंदों को जरूरत से अधिक उछाल न मिले और उनके सफल होने की सम्भावना हमेशा बरकरार रहे।
आस्ट्रेलियाई टीम के सलामी बल्लेबाज एड कोवान ने बुधवार को भुवनेश्वर की गेंदबाजी शैली की तारीफ करते हुए कहा था कि उनकी गेंदें उछाल नहीं लेतीं बल्कि पिच पर सरकती हैं, ऐसे में अगर काली मिट्टी से बनी कोटला की पिच पर भुवनेश्वर के साथ-साथ इशांत भी गेंदों को सरकाने में सफल रहे तो फिर मेहमान टीम के वापसी के दावे एक बार फिर फुस्स हो सकते हैं।
वैसे कोटला की पिच को `स्लो टर्नर` कहा जाता है। इसे यह उपाधि इसलिए मिली है क्योंकि यहां शुरू के दो दिन बल्लेबाजों की बल्ले-बल्ले रहती है और फिर तीसरे दिन से यह स्पिनरों की `प्रेयसी` बन जाती है। चौथे और पांचवें दिन तो यह बल्लेबाजों के लिए `कब्रगाह` बन जाती है।
कोटला की पिच पर चौथे और पांचवें दिन बल्लेबाजी करना, खासतौर पर उपमहाद्वीप के बाहर के बल्लेबाजों के लिए महान चुनौती की तरह होती है। वैसे भी अब तक इस श्रृंखला में कोई भी आस्ट्रेलियाई बल्लेबाज स्पिन कला का ठीक से सामना नहीं कर सका है।
ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि भारत अपने तीन स्पिनरों-रविचंद्रन अश्विन, प्रज्ञान ओझा और रवींद्र जडेजा के साथ ही खेलेगा और ये तीनों मेहमानों पर भारी पड़ते हुए अपनी टीम को 81 साल के टेस्ट इतिहास में पहली बार किसी श्रृंखला में 4-0 की जीत में अहम किरदार निभाएंगे।