चातुर्मास में ब्रज का सर्वाधिक धार्मिक महत्व है। इन चार महीनों में सारे देवतीर्थ ब्रज में वास करते हैं। देवताओं के ब्रज में रहने के चलते मांगलिक कार्य रुक जाते हैं और धार्मिक आयोजनों की बहार रहती है। ब्रज में श्रावण मास का हिंडोला इसी का अंग हैं। इसमें ठाकुर जी हिंडोले में झूलते हैं।
मान्यता है कि एक बार भगवान विष्णु ने प्रयागराज को सभी तीर्थों का राजा घोषित कर दिया था। इस पर उनको घमंड हो गया और वे खुद को सर्वोपरि मानने लगे। नारद जी तीर्थराज के पास गए और बोले कि आपको तीर्थराज बना तो दिया है लेकिन आप वास्तव में तीर्थराज नहीं हैं। इस पर तीर्थराज ने सारे तीर्थ देवतीर्थों को अपने यहां आमंत्रित किया। बुलाने पर सारे देवतीर्थ इकट्ठा हुए लेकिन ब्रज से कोई देवतीर्थ नहीं गया।
इस पर तीर्थराज नाराज हो गए और उन्होंने ब्रज पर सभी तीर्थों को लेकर आक्रमण कर दिया। तीर्थराज को हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद तीर्थराज सभी तीर्थों को लेकर भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्मा के पास गए और आप बीती सुनाई। इस पर भगवान विष्णु ने बताया कि ब्रज पर आक्रमण करने वाले की हार होती है।
ब्रज तो हमारा घर है और तुमने हमारे घर पर चढ़ाई की है। इसके पश्चाताप भगवान विष्णु ने सभी देव तीर्थों को चार माह तक ब्रज में रहकर पश्चाताप करने का आदेश दिया। तभी से सारे देव तीर्थ ब्रज में देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी तक ब्रज में वास करते हैं।