अभिनय के चलते-फिरते संस्थान नहीं रहे। बॉलीवुड की पहली सुपरहिट ‘तिकड़ी’ की आखिरी कड़ी टूट गई। इस तिकड़ी का साथ सबसे पहले साढ़े तीन दशक पूर्व शोमैन राज कपूर ने छोड़ा था। १० साल पहले तिकड़ी के दूसरे सदस्य देव आनंद ने भी साथ छोड़ दिया। ऐसे में दिलीप कुमार इस जहां में अकेले हो गए थे। लेकिन कल सुबह मानो इस ‘अभिनय सम्राट’ ने अपनी फिल्म ‘दास्तां’ का गीत गुनगुना दिया, ‘ना तू जमीं के लिए है, न आसमां के लिए, तेरा वजूद है अब सिर्पâ दास्तां के लिए!’
बॉलीवुड के लिए कल की सुबह उदासी भरी साबित हुई। सुबह उठते ही खबर मिली कि दिलीप साहब नहीं रहे। इस ‘व्हॉट्सऐप युग’ में आग की तरह खबर पैâल गई। फिर क्या था बॉलीवुड हस्तियों के कदम पाली हिल की ओर मुड़ गए। वहां दिलीप कुमार चिरनिद्रा में लीन लेटे हुए थे। उनकी अर्धांगिनी सायरा बानो भाव विह्वल नजरों में अपने हमदम के बिछड़ने का गम समेटे हुई थीं। ‘ही मैन’ धर्मेंद्र व ‘महानायक’ अमिताभ बच्चन से लेकर शाहरुख खान तक अपने प्रिय वरिष्ठ अभिनेता के अंतिम दर्शन के लिए पहुंच चुके थे। धर्मेंद्र तो इतने भावुक हुए कि वे इस ‘थेस्पियन’ के सिर के पास बैठकर अपने दोनों हाथों से उनके चेहरे को थाम रोने लगे। रेडियो-टीवी पर ‘ट्रेजिडी किंग’ के कालजयी गीत बजने लगे थे। कहीं से उनकी फिल्म ‘राम और श्याम’ के गीत की आवाज आई, ‘आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले, कल तेरी बज्म से दीवाना चला जाएगा, शम्मा रह जाएगी परवाना चला जाएगा!’
वाकई दिलीप कुमार ने मानों बरसों पूर्व रुपहले पर्दे पर आज के समां को सुरों में ढाल दिया था। दिलीप कुमार का जन्म भले ही पेशावर (विभाजन के बाद पाकिस्तान) में हुआ था, पर उन्हें ऊंचाई बॉलीवुड ने दी। उनके पिता का फलों का कारोबार था पर दिलीप का मन तो अभिनय की ओर खिंचा जा रहा था। पिता अभिनय के खिलाफ थे तो ऐसे में पापाजी पृथ्वीराज कपूर की शरण में दिलीप कुमार गए। पृथ्वीराज तब एक्टिंग की दुनिया में बड़ा नाम थे और पेशावर के पड़ोसी होने के नाते पुरानी पहचान थी। पृथ्वीराज ने यूसुफ खान (दिलीप का यही नाम था) के पिता को समझाया कि बच्चे का दिल न तोड़ो। उसे फिल्मों में जाने दो। पिता ने इजाजत दे दी। इस तरह दिलीप कुमार के अभिनय की दुनिया में कदम रखने का रास्ता साफ हुआ। उन्हें ‘बॉम्बे टॉकिज’ की मालकिन देविका रानी ने फिल्म ‘ज्वार भाटा’ में इस शर्त के साथ ब्रेक दिया कि उन्हें अपना नाम बदलकर दिलीप कुमार करना पड़ेगा। इस तरह १,२५० रुपए महीने की तनख्वाह पर दिलीप कुमार ने बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत की। बाद में फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में इसी दिलीप कुमार का सामना शहंशाह बने अकबर से हुआ था। उस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर इतिहास रच दिया था। पृथ्वीराज अभिनय के विश्वविद्यालय थे। मगर सलीम की भूमिका में दिलीप ने भी दिखा दिया कि वे भी महाविद्यालय बनने का दमखम रखते हैं। आज भी उस फिल्म के बुलंद संवाद सिने प्रेमियों को रोमांचित कर देते हैं। जी हां, हिंदी सिनेमा की दो ही फिल्मों ने अपने संवाद से दर्शकों को दीवाना बनाया है। पहली थी के. आसिफ की ‘मुगल-ए-आजम’ और दूसरी थी रमेश सिप्पी की ‘शोले!’
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