नई दिल्ली:2014 और 2019 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने के लिए इन क्षेत्रीय दलों की जरूरत नहीं थी. लेकिन इस बार भाजपा नहीं चाहेगी कि गठबंधन के प्रमुख घटक दलों में से कोई नाराज हो, खासकर तेदेपा और जदयू. भाजपा के बाद इन्हीं दो दलों के पास सबसे ज्यादा सांसद हैं. दोनों ही दलों का भाजपा के साथ रिश्ता बहुत सहज नहीं रहा है. पुराने सहयोगी होने के बावजूद दोनों दल एनडीए से बाहर रह चुके हैं.
जयंत सिंह की रालोद एनडीए में शामिल होने से पहले ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ थी. जेडीएस भी पिछले साल ही एनडीए में आई है. ऐसे में सरकार चलाने के लिए कि भाजपा को इन दलों की मांगों के सामने झुकना भी पड़ सकता है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भाजपा अपने पास गृह, वित्त, रक्षा और विदेश मंत्रालय रखना चाहेगी.
नीतीश कुमार मंत्रिमंडल में सम्मानजनक प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे हैं.खबरों के मुताबिक, जदयू ने चार मंत्रालयों की मांग रख रही है. इसके अलावा पार्टी अग्निवीर योजना पर पुनर्विचार, देशव्यापी जाति जनगणना, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा और समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर व्यापक चर्चा चाहती है. हालांकि, जदयू नेता केसी त्यागी ने स्पष्ट किया है कि कोई पूर्व शर्त नहीं है, पार्टी ने बिना शर्त समर्थन दिया है.
तेदेपा ने भी आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा मांगा है. नायडू चाहते हैं कि केंद्र सरकार विजयवाड़ा मेट्रो रेल परियोजना पर आने वाले खर्च का 50 प्रतिशत वहन करे, इसके राज्य के सात पिछड़े जिलों के लिए स्पेशल ग्रांट दे. जहां तक मंत्रालयों की बात है तो पार्टी कैबिनेट में अपने लिए पांच सीट और जन सेना पार्टी के लिए दो सीट मांग रही है.
चिराग पासवान ने भी अग्निवीर योजना पर पुनर्विचार की मांग की है. इसके अलावा उन्होंने देशव्यापी जाति जनगणना और बिहार के लिए वित्तीय पैकेज की मांग की है. लोजपा (राम विलास) कैबिनेट में एक सीट चाहती है.
शिवसेना चाहती है कि कैबिनेट में भले ही एक सीट मिले लेकिन इस साल के अंत में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वह 100 सीटों पर चुनाव लड़े.
जयंत चौधरी ने कैबिनेट में एक सीट की मांगी है.
इन सबके अलावा जदयू और रालोद जैसे अन्य सहयोगियों ने सुझाव दिया है कि एनडीए में एक समन्वय समिति हो, जिसका संयोजक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बनाया जाए.