देवघर। साकार व निराकार शक्ति की पूजा करना हिंदू धर्म की प्राचीन अवधारणा रही है। दुनिया में सर्वश्रेष्ठ व सर्व प्राचीन ग्रंथ तो ऋग्वेद ही कसौटी पर है। ऋग्वेद के सूक्तों में शक्ति के विविध रूपों की व्याख्या की गयी है। यह वैदिक वांमय की धरोहर को अक्षुण्ण रखने वाला ग्रंथ है।
उपनिषद् पुन: उत्तरोत्तर ग्रंथ ब्राह्मण व पुराण है। भारतीय हिंदू कालीन अध्याय में रुद्र का शिव के रूप में स्थापित कर पूजा की गयी है। शिव पुराण के 38 वें अध्याय में रुद्र को शिव के रूप में स्थापित कर पूजा की गयी है। कहने का तात्पर्य है कि ऋग्वेदिक देवता रूद्र को पुराणों में शिव, महादेव, बैद्यनाथ, भवानी, शंकर, जटाधारी, त्रिशूलपाणि आदि नामों से संबोधित कर अर्चना की गयी है। शिव पुराण में आख्यान है – बैद्यनाथं चिताभूमो एवं परल्यां बैद्यनाथ
पहले तो बैद्यनाथ महादेव को कुछ मनीषी परलिग्राम परल्यां बैद्यनाथ च स्वीकारते रहे। लेकिन बाद में वाराणसी संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति सूरति नारायण त्रिपाठी व पंडित विष्णुकांत झा द्वारा लिखित पुस्तक बैद्यनाथ शिव प्रशस्ति में स्पष्ट कर दिया गया है कि बाबा बैद्यनाथधाम का महादेव ही द्वादश ज्योतिर्लिगों में श्रेष्ठ है।
श्री बैद्यनाथ सुप्रसिद्धेषु द्वादश च्योतिर्लिग गण्यते।
तन्माहात्म्यत्रय प्राय: पुराणोषु विस्तारेण समुपलभ्यते॥
इन महान देव महादेव की नगरी बाबाधाम/बैद्यनाथधाम की महत्ता आदि काल से रही है। आदि शंकराचार्य ने शिव पुराण में कहा है। पूर्वोत्तर प्रच्जवलिकां निधाने सदा वसंत गिरिजा समेतम
सुरा सुरा अराधित पादपद्यं श्री बैद्यनाथ तमहं नमामि॥
कहने का तात्पर्य है कि देवघर का ही महादेव वैद्यों के नाथ हैं। विश्व के तीर्थो में अग्रणी है बैद्यनाथधाम तीर्थ, जो झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी देवघर में पड़ता है। जसीडीह जंक्शन से सात किलोमीटर की दूरी पर पूवरेत्तर दिशा में बाबा नगरी है। आख्यानों के मुताबिक डेढ़-दो शताब्दी पूर्व बैद्यनाथधाम (देवघर) में घोर अरण्य था। पन्द्रहवीं सदी पूर्व यह हरितकी के वृक्षों से परिपूर्ण था। पुराणों में इसे हरितकी वन की संज्ञा दी गयी है। पद्मपुराण का पाताल खंड देखा जाए तो इसके पहले अध्याय में पूर्व सागर गमिन्या, गंगाया दक्षिणो तटे। हरितकी वने दिव्ये दु:संचारे भयावहे। आधापि वर्तते चंडित बैद्यनाथे महेश्वर:॥ आनंद रामायण में भी श्री राम भगवान जब महर्षि यज्ञ वल्षय ऋषि से शांति के लिए जिज्ञासा करते हैं तो रावण: नर्थितो देव: कामदो हृदयेश्वर:, हरितकी वने..का जिक्त्र किया है। कालातंर में यही हरितकी वन प्रदेश हरिला क्षेत्र या हरिलाजोरी कह कर विख्यात है। यहां र्हे के पौधों की अधिकता थी। जो विभिन्न औषधियों के रूप में प्रयुक्त होता है। शिव पुराण में एक और प्रसंग आया है।
च्योतिर्लिगस्य रूपेण चिता भूमो प्रतिष्ठित-बैद्यनाथधाम चिता भूमि पर अवस्थित है। कहा गया है कि एक बार महान देव शिव के ससुर दक्ष ने शिवजी को यज्ञ में निमंत्रण नहीं दिया था। सती वहां पहुंची और पिता से मिली। पिता ने अपमान किया जिसे बर्दाश्त नहीं कर सकी और आहुति दे दी। महान आराध्य देव ने अपने रौद्र रूप धारण किया और सती को कंधे पर लिए उन्मत हो गये। पूरा विश्व थर्रा उठा। भगवान विष्णु जो विश्व के पालन करने वाले हें। उनके दरबार में देवताओं ने आवाज दी। अपने सुदर्शन चक्त्र को चला कर सती के अंग अंग को खंड-खंड कर डाला। सती का अंग विभिन्न स्थानों पर गिरा और तत्पश्चात इस वसुधा पर 51 शक्ति पीठ की स्थापना हुई। द्वादश च्योतिर्लिग की महत्ता आदि काल से चली आ रही है। ग्रंथों में आया है- झारखंडे बैद्यनाथ, झारखंड में बैद्यनाथ है। बाबा भोलेनाथ को बैद्यनाथ के नाम से संबोधित किया जाता है। शिव पुराण में कई ऐसे आख्यान हैं जो बताते हैं कि वैद्यों के नाथ हैं। कहा गया है कि शिव ने रौद्र रूप धारण कर अपने ससुर दक्ष का सिर त्रिशुल से अलग कर दिया। बाद में जब काफी विनती हुई तो बाबा बैद्यनाथ ने तीनों लोकों में खोजा पर वह मुंड नहीं मिला। इसके बाद एक बकरे का सिर काट कर दक्ष के धड़ पर प्रत्यारोपित कर दिया। इसी के चलते बकरे की ध्वनि – ब.ब.ब. के उच्चरण से महादेव की पूजा करते हैं। इसे गाल बजा कर उक्त ध्वनि को श्रद्धालु बाबा को खुश करते हैं। पौराणिक कथा है कि कैलाश से लाकर भगवान शंकर को पंडित रावण ने स्थापित किया है। इसी के चलते इसे रावणोश्वर बैद्यनाथ कहा जाता है। यहां के दरबार की कथा काफी निराली है।