एक अच्छा जीवन तभी संतुलित विकास कर पाता है जब शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक इन तीनों को संतुलित रूप से विकसित किया जाए। आत्म-चिन्तन पर ध्यान बनाए रखने के लिए जीवन में कुछ मूलभूत परिस्थितियों का वातावरण बनना अत्यन्त आवश्यक है।
इनमें प्रमुख है मन का निर्मल बने रहना, स्वार्थ की भावना समाप्त होना, भौतिकवादी इच्छाओं पर पूर्ण नियंत्रण, अहंकार की भावना से मुक्ति प्राप्त करना, प्रेम, उदारता, त्याग और तपस्या आदि की जीवनशैली का विकास आदि।
सेवा की भावना इन सब परिस्थितियों के निर्माण में सहायता करती हैं। देखने में यह कितना सामान्य कार्य है परन्तु इस सामान्य सेवा कार्य के माध्यम से भी कुछ समय के लिए इन सेवकों का अहंकार भाव तो समाप्त हो ही जाता होगा।
इस प्रकार के सामान्य सेवा कार्यों को भी व्यक्ति यदि जीवन-पर्यन्त करता रहे तो उसका अहं भाव पूर्णतः समाप्त होकर उसके लिए आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर देगा। सेवा कार्यों को करते हुए आध्यात्मिक विकास के लिए अपने आप ही अलौकिक परिस्थितियाँ बनने लगती है।
सेवा करने वाले के रूप में समाज में उत्तम परम्पराओं की स्थापना होती है। एक-दूसरे के प्रति प्रेमभाव से सामाजिक एकता, शान्ति और भाईचारे का आधार बनता है। सेवा कार्यों से उत्तम जीवन मूल्यों की स्थापना होती है।
सच्चे मन से पूर्ण स्वार्थ रहित सेवा करने वाला व्यक्ति सामाजिक जीवन के पांच मुख्य मूल्यों- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का जीवन्त प्रतीक बन जाता है। लगातार पूर्ण निष्ठा से सेवा में लगे व्यक्ति के पुराने पाप कर्मों की सज़ा भी कटने लगती है।