वैवाहिक जीवन में आने वाली परेशानियों से बचने के लिए अक्सर विवाह से पहले माता-पिता बच्चों की कुण्डली मिलवाते हैं। माना जाता है कि जिनके 36 में से 36 गुण मिल जाते हैं वह बड़ी ही अच्छी जोड़ी होती है। लेकिन 36 का यह आंकड़ा वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं होता है।
भगवान राम और देवी सीता के 36 गुण मिले थे लेकिन दोनों सुख में कभी साथ नहीं रहे। इसलिए गुण मिलवाते समय कई बातों का ध्यान रखना चाहिए खास तौर पर यह देखना चाहिए कि पति पत्नी दोनों की नाड़ी एक नहीं हो।
ज्योतिषशास्त्र में तीन नाड़ियों का जिक्र किया है आदि, मध्य और अन्त्य। आचार्य वाराहमिहिर कहते हैं कि यदि वर और कन्या दोनों की नाड़ी आदि होती है तो रिश्ता अधिक समय तक कायम नहीं रह पाता है।
मध्य नाड़ी सबसे खतरनाक होती है इससे पति-पत्नी के जीवन पर संकट के बादल मंडराते हैं जबकि अन्त्य नाड़ी होने पर वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार पति-पत्नी की समान नाड़ी होने पर संतान सुख में बाधा आती है। इनकी होने वाली संतान शारीरिक एवं मानसिक रूप से अस्वस्थ हो सकती है।
नाड़ी दोष का उपचार
जो व्यक्ति नाड़ी मिलने के बाद भी किसी कारण विवाह करना चाहते हैं वह ज्योतिषशास्त्र में बताए गये उपायों को करने बाद विवाह कर सकते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सोने का सांप बनवार उसकी पूजा करें इसके बाद महामृत्युंजय मंत्र का जप करवाएं।
जप पूजा होने के बाद अपनी क्षमता के अनुसार सोना, गाय, वस्त्र अथवा अन्न का दान करना चाहिए। इससे नाड़ी दोष का प्रभाव कम हो जाता है।