द रिपोर्टर्स कलेक्टिव-अल जज़ीरा ने एक रिपोर्ट में बताया था कि बैंक ऑफ बड़ौदा के कर्मचारियों ने ग्राहकों को बैंक के नए मोबाइल बैंकिंग ऐप ‘बॉब वर्ल्ड’ पर रजिस्टर करने के लिए अनाधिकृत मोबाइल नंबरों को उनके खाते से जोड़ा. अब सामने आया है कि इस जुगाड़ के चलते कुछ खातों से कई लाख रुपये चोरी किए गए.
देहरादून: बैंक ऑफ बड़ौदा के आतंरिक पत्राचार और जांच रिपोर्ट्स से पता चलता है कि बैंक से जुड़े लोगों ने ही 362 ग्राहकों के खाते से 22 लाख रुपये की चोरी की है.
बैंक ऑफ बड़ौदा की यह जांच रिपोर्ट द रिपोर्टर्स कलेक्टिव-अल जज़ीरा की उस रिपोर्ट के बाद आई है, जिसमें उन्होंने बताया था कि बैंक के कर्मचारियों ने अनाधिकृत मोबाइल नंबरों को उन ग्राहकों के खातों से जोड़ा था जिनके खाते से मोबाइल नंबर नहीं जुड़े थे. ऐसा इसलिए किया गया था ताकि इन ग्राहकों को बैंक के नए मोबाइल बैंकिंग ऐप ‘बॉब वर्ल्ड’ (BOB World) पर पंजीकृत किया जा सके. ये अनधिकृत मोबाइल नंबर बैंक कर्मचारियों, शाखा प्रबंधकों, गार्डों, उनके रिश्तेदारों और दूरदराज के क्षेत्रों में काम करने वाले बैंक एजेंटों के थे.
रिपोर्टर्स कलेक्टिव की खबर ने चेताया था कि ऐप पर रजिस्ट्रेशन बढ़ाने के दबाव में अपनाऐ गए इस जुगाड़ के चलते ग्राहकों के धन को लेकर गंभीर खतरा पैदा हो सकता है. बैंक ने पिछले साल आतंरिक ईमेल में इस खतरे को स्वीकार किया था. फर्जी मोबाइल नंबरों के विषय से जुड़े कई ईमेल में उल्लेख है कि ‘इससे फ्रॉड की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है.’
अब बैंक के हेड ऑफिस के आतंरिक दस्तावेज स्वीकारते हैं कि धोखा हुआ है और बैंक के एजेंटों (जिन्हें बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट कहा जाता है) ने मोबाइल बैंकिंग का उपयोग करके ग्राहकों के खातों से हजारों रुपये निकाले हैं. छह ग्राहक ऐसे हैं जिनको 1.1 लाख रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है, जबकि एक को लगभग 1.77 लाख रुपये का नुकसान हुआ है. एक एजेंट ने एक ग्राहक के खाते से 3.9 लाख रुपये से ज्यादा रकम की चोरी की है.
बैंक हेड ऑफिस ने संबंधित बैंक मैनजरों से ‘ग्राहक के खातों में धन की रिकवरी और बहाली के लिए जरूरी कार्रवाई शुरू’ करने को कहा है.
देश के केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने द रिपोर्टर्स कलेक्टिव और अल जजीरा की पड़ताल के बाद बैंक को ऑडिट करने का आदेश दिया था. 10 अक्टूबर को रिज़र्व बैंक ने कहा कि उसने अग्रिम सूचना तक बैंक ऑफ बड़ौदा को ‘बॉब वर्ल्ड’ पर नए ग्राहकों को पंजीकृत न करने का आदेश दिया है.
रिज़र्व बैंक के अनुसार इस निर्णय का कारण बॉब वर्ल्ड पर ग्राहकों को जोड़ने की प्रक्रिया में मिली कुछ कमियां थीं.
उक्त ऑडिट में बैंक ऑफ बड़ौदा ने करीब 4.2 लाख खातों के दस्तावेजों का सत्यापन किया. ये वह खाते थे जिन पर संदेह था कि बैंक कर्मचारियों ने गलत तरीके से इन्हें ऐप पर रजिस्टर करवाया. बैंक के शाखा कर्मचारियों ने 29 और 30 जुलाई को देश भर में लगभग 7,000 शाखाओं में फैले इन खातों का ऑडिट किया. जांच के लिए कर्मचारियों को दूसरी शाखाओं में भेजा गया. अंतिम जांच रिपोर्ट्स ने विधिवत तरीके से खामियों को उजागर किया है, जो दर्शाती हैं कि उच्च स्तर पर उचित जांच हुई है, मगर ये रिपोर्ट इंटरनल ऑडिट के निम्न स्तर को भी दर्शाती हैं.
कई बैंक कर्मचारियों ने रिपोर्टर्स कलेक्टिव को बताया कि यह ऑडिट गलत काम का पता लगाने से ज्यादा गलत काम को छिपाने के लिए किया गया था. उन्होंने बताया कि अपने रीजनल ऑफिस के निर्देशों पर उन्होंने ऑडिट के लिए जाली दस्तावेज़ों की व्यवस्था की और जाली दस्तावेज बनाए.
एक कर्मचारी, जिन्होंने खुद ग्राहकों से दस्तावेज़ हासिल किए थे, ने बताया, ‘बैंक जानता है कि वह (बॉब वर्ल्ड एनरोलमेंट को लेकर) गलत है. अब बैंक डैमेज कंट्रोल मोड में चल रहा है.’
बैंक ऑडिटिंग और फॉरेंसिक एकाउंटिंग के विशेषज्ञों का कहना है कि बैंक ऑफ बड़ौदा को ऑडिट करने के लिए अपने शाखा कर्मचारियों को नियुक्त नहीं करना चाहिए था. निष्पक्ष जांच के लिए इस काम को आउटसोर्स किया जाना चाहिए था.
बैंक ने अपने आंतरिक ऑडिटरों को कहा था कि वह मुख्य तौर पर बैंक ऑफ बड़ौदा के उन आवेदन पत्रों (request letter)की जांच करे जो यह दिखाते हैं कि ग्राहकों ने बॉब वर्ल्ड ऐप के लिए आवेदन किया था और उन फॉर्म को जांचे जिन पर ग्राहकों ने अपने खाते से जुड़े मोबाइल नंबर बदलने के लिए हस्ताक्षर किए हैं. इस तरह के फॉर्म की मौजूदगी इस बात का सबूत होगी कि बैंक कर्मचारियों ने फर्जी तरीके से ऐप के रजिस्ट्रेशन को बढ़ाने के लिए धोखाधड़ी का काम नहीं किया.
रिपोर्टर्स कलेक्टिव को मिली ऑडिट रिपोर्ट से पता चलता है कि ज्यादातर मामलों में यह दस्तावेज नहीं मिले.
आठ क्षेत्रों की ऑडिट रिपोर्ट से पता चला कि बमुश्किल एक तिहाई खातों में बॉब वर्ल्ड का आवेदन पत्र था. इन ऑडिट रिपोर्ट ने नोट किया कि कई ऐसे खाते जिन्होंने बॉब वर्ल्ड एप्लिकेशन को साइन अप किया, उनके रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर की जगह पर संबंधित शाखा या शाखा प्रबंधक या बिजनेस एजेंट का नंबर जुड़ा हुआ था.
बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट बैंकों के एजेंट के तौर पर काम करते हैं और कस्टमर सर्विस सेंटर यानि ग्राहक सेवा केंद्रों के जरिये गांव-देहात और दूरदराज के क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएं देने का काम करते हैं.
ऑडिट में पाया गया कि कई खाते अजनबियों के मोबाइल नंबरों से जुड़े थे. बाद में अपने आप ही बैंक ने इन नंबरों को खातों से हटा भी दिया. ऑडिट के बाद बैंक ने शाखाओं को ऐसे खातों पर मोबाइल बैंकिंग को तुरंत ब्लॉक करने का निर्देश दिया है.
ऐसे भी उदाहरण सामने आए जिनमें ग्राहकों ने खाता खोलने के फॉर्म पर जो मोबाइल नंबर दिया था, उस नंबर से अलग नंबर उनके खाते से जुड़ा हुआ था और बॉब वर्ल्ड पर रजिस्टर्ड था.
गौरतलब है कि बैंक की नीति कहती है कि एक मोबाइल नंबर को ज्यादा से ज्यादा आठ बैंक खातों से जोड़ा जा सकता है- वह भी केवल तभी जब सभी खाते एक ही परिवार के हों- पर ऑडिट रिपोर्ट इस नीति के उल्लंघन के कई उदाहरण दर्ज हैं.
ऑडिट रिपोर्ट में कई ऐसे मोबाइल नंबर सामने आए, जिनमें 10-60 खाते जुड़े हुए हैं- ऐसे ज्यादातर खातों को खुलवाने का काम किसी न किसी बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट ने किया था.
एक क्षेत्र की रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि ऑडिट किए गए खातों में से करीब एक चौथाई खातों के मोबाइल नंबरों को अनलिंक कर दिया जाए.
देशभर की शाखाओं को लेकर भी ऑडिट रिपोर्ट में समान चिंता जाहिर की गई है. सभी जोनल और क्षेत्रीय प्रमुखों को 10 अगस्त को भेजे गए एक पत्र में बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ जनरल मैनेजर बी. एलंगो ने लिखा: ‘ऑडिट के नतीजों से पता चला है कि बुनियादी जरूरी दस्तावेजों की उपलब्धता के संबंध में कमियां हैं और हमने जो कमियां देखी हैं, उन्हें जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकते हैं. इन निष्कर्षों की गंभीरता को देखते हुए हमने अनियमितताओं को जल्द से जल्द ठीक करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.’
पत्र में यह भी कहा गया है कि बैंक की शाखाओं को लापता दस्तावेजों को हासिल करने के लिए ग्राहकों से संपर्क करना चाहिए, जिन्हें बड़े कार्यालयों द्वारा सत्यापित किए जाने के बाद सुरक्षित रखा जाना चाहिए.
एक तरफ बैंक ने अनधिकृत डेबिट और गुम दस्तावेजों के मामले को स्वीकार किया है, वहीं कर्मचारियों द्वारा साझा किए गए साक्ष्यों और अनुभवों से पता चलता है कि कुछ क्षेत्रीय कार्यालयों ने अपने जूनियर स्टाफ को फ़र्ज़ी दस्तावेज बनाकर इस स्थिति से निपटने को कहा था.
इस कवर-अप रणनीति में से एक तरीका था कि मोबाइल बैंकिंग सहमति प्रपत्रों (mobile banking consent form) पर बैंक ग्राहकों के हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान को जल्दबाजी में जोड़ना. इनमें से कई दस्तावेज़ों पर पुरानी तारीख डाल दी गई थी. यह सब इसलिए किया गया था ताकि ऑडिटर यह प्रमाणित कर सकें कि सभी दस्तावेज़ सही से मौजूद हैं.
तीन राज्यों के कर्मचारियों ने रिपोर्टर्स कलेक्टिव को बताया कि जिन शाखाओं का उन्होंने निरीक्षण किया या जहां वो काम करते हैं , वहां कई खातों के लिए ये दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं थे. जो उपलब्ध थे, उनमें हेराफेरी की गई थी- कुछ मामलों में हस्ताक्षर जाली थे. अन्य मामलों में ऑडिटिंग से पहले बैंक स्टाफ को हस्ताक्षर लेने के लिए जरूरी कागजात के साथ खाताधारकों के घर पर भेजा गया.
रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने उत्तर प्रदेश और गुजरात राज्यों के कुछ खाताधारकों के लिए बनाए गए ऐसे दस्तावेज़ों की प्रतियां देखी हैं. उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश की एक शाखा के दस्तावेजों में केवल खाताधारक के हस्ताक्षर थे और कोई अन्य विवरण नहीं था. इन फॉर्मों को रिपोर्टर्स कलेक्टिव के साथ साझा करने वाले आंतरिक ऑडिटर ने कहा कि यह शाखा कर्मचारी ही थे जिन्होंने यह विवरण भरे. इन विवरणों में मोबाइल नंबर और आवेदन की तारीख जैसे महत्वपूर्ण बिंदु शामिल थे.
इस ऑडिटर ने बताया कि उनके रीजनल मैनेजर ने एक वीडियो कॉन्फ्रेंस कर सभी ऑडिटरों से शाखा कर्मचारियों के साथ ‘सहयोग’ करने को कहा था और साथ यह प्रमाणित करने की कोशिश करने को भी कि सभी खाते ठीकठाक हैं.
ऑडिटर ने कहा कि ऐसे निर्देशों की वजह से हमने उन फॉर्मों को भी मंजूरी दे दी है जिनके बारे में हमें पता था कि ये नए सिरे से हासिल किए गए हैं.
रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने उत्तर प्रदेश की एक अन्य बैंक शाखा और गुजरात की एक शाखा से मिली ऑडिटेड फॉर्म की प्रतियां देखीं. इन प्रतियों पर ग्राहकों के हस्ताक्षर की बजाय अंगूठे के निशान थे. इन फॉर्मों को साझा करने वाले बैंक कर्मचारियों ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि जो किसान हस्ताक्षर भी नहीं कर सकते, वह मोबाइल बैंकिंग ऐप का उपयोग कैसे कर सकते हैं. कर्मचारियों ने कहा कि ऑडिटिंग से ठीक पहले इन फॉर्मों पर अंगूठे के निशान लिए गए थे और शाखा कर्मचारियों ने ये फॉर्म भरे थे.
रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा देखी गई ऑडिट रिपोर्ट में इस बात को भी रेखांकित किया गया है कि कई ऐसे ग्राहक बॉब वर्ल्ड ऐप पर रजिस्टर्ड थे, जो पढ़े-लिखे नहीं थे. उनमें से कइयों को उनके खाते से जुड़े बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट के मोबाइल नंबर के जरिये बॉब वर्ल्ड पर रजिस्टर किया गया था.
एक ऑडिट रिपोर्ट कहती है कि बिना पढ़े-लिखे ग्राहक ऐप के लिए पात्र नहीं हैं. 15 साल से कम उम्र के बच्चे भी पात्र नहीं हैं, लेकिन ऐप पर कई नाबालिगों के खाते रजिस्टर हैं.
ऐप एनरोलमेंट की वजह से जांच के दायरे में आए कई खाते प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत खोले गए थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई इस योजना का मकसद गरीबों को खाते में न्यूनतम शेष राशि की शर्त को पूरा किए बिना बैंकिंग प्रणाली से जोड़ना है. ऐसा इसलिए है कि गरीबों के पास बैंक खाता हो और सरकार उसमे सब्सिडी दे पाए.
एक बैंक कर्मचारी ने बताया कि उन्होंने और उनके सहकर्मियों ने इन ग्राहकों से फॉर्म पर दस्तखत करवाने के लिए दबाव की रणनीति अपनाई. कर्मचारियों ने ग्राहकों से कहा कि उन्हें खाता विवरण अपडेट करने के लिए दस्तावेजों पर फौरन हस्ताक्षर चाहिए अन्यथा खाते बंद हो जाएंगे या सब्सिडी बंद हो जाएगी. बॉब वर्ल्ड की ऑडिटिंग के बारे में उन्हें कुछ न बताते हुए उन्हें अंधेरे में रखा गया.
इस कर्मचारी ने एक और कमी उजागर की. ऑडिटरों को खाता खोलने के फॉर्म को भी सत्यापित करने के लिए कहा गया था क्योंकि इनमें ग्राहक का मोबाइल नंबर होता है. लेकिन कई खातों के वे फॉर्म नहीं थे जो खाता खोलते समय ग्राहक से भरवाया जाता है. इसलिए अन्य दस्तावेजों के साथ कुछ शाखा कर्मचारियों ने इन फॉर्मों पर भी ग्राहकों के हस्ताक्षर/अंगूठे के निशान प्राप्त किए.
चूंकि इस शाखा के कर्मचारी इन फॉर्मों पर पिछली तारीख डालकर जोखिम उठाना नहीं चाहते थे, उन्होंने या तो तारीख खाली छोड़ दी या कुछ नए फॉर्मों पर जिस दिन ऑडिटिंग की जा रही थी, उस दिन की तारीख दर्ज कर दी. इस तरह से ये खाता खोलने वाले फॉर्म खाता खोलने की तारीख 29 या 30 जुलाई (ऑडिटिंग की तारीखें) दर्शाते हैं, जबकि ये खाते कम से कम से कम कुछ साल पहले खोले गए थे.
रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा देखी गई ऑडिट रिपोर्ट से पता चलता है कि इस जुगाड़ को बेहद सामान्य तरीके से अपनाया गया था. ये रिपोर्ट्स न केवल कमियों को उजागर करती हैं, बल्कि इंटरनल ऑडिट के निम्न स्तर को भी दिखाती हैं.
ग्राहकों के पहचान से जुड़े कई दस्तावेज अधूरे हैं, कइयों पर हस्ताक्षर नहीं है, कहीं तारीख नहीं दर्ज है, कई सत्यापित नहीं है, तो कई दस्तावेज कई तरह के कारणों से अमान्य बन चुके हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि शाखा स्तर पर अगर निष्पक्ष ऑडिट होता तो ऐसे दस्तावेजों को अस्वीकार कर दिया जाता.
भारत में फॉरेंसिक एकाउंटिंग के अगुआ माने जाने वाले सर्टिफाइड बैंक फॉरेंसिक एकाउंटेंट मयूर जोशी ने रिपोर्टर्स कलेक्टिव को बताया कि ऑडिटिंग में जांचकर्ताओं को विसंगतियों पर ध्यान देना चाहिए, जैसे कि पुरानी तारीख वाला ताजा, स्पष्ट फॉर्म; या पुरानी तारीख वाले फॉर्म का एक नया प्रारूप.
उन्होंने कहा कि ऐसी ऑडिटिंग फर्में हैं जो दस्तावेज़ सत्यापन में वैसी विशेषज्ञता रखती हैं, जिसके लिए बैंक ऑफ बड़ौदा ने अपने शाखा कर्मचारियों को नियुक्त किया है. उन्होंने कहा कि बैंक को इस मामले के लिए एक बाहरी ऑडिटर नियुक्त करना चाहिए था.
जोशी ने बताया कि ताजा हासिल किए गए फॉर्म और पिछली तारीख वाले फॉर्म को ऑडिटिंग की दुनिया में चिंता का विषय माना जाता है.
उन्होंने कहा कि बुनियादी दस्तावेजों को नए सिरे से हासिल करने की जरूरत एक गंभीर मुद्दा है. यह दिखाता है कि बैंक के पास ये दस्तावेज नहीं थे. यह आरबीआई के निर्देशों का उल्लंघन है और बैंक पर जुर्माना लग सकता है.
हताश कर्मचारी
बैंक ऑफ बड़ौदा में हुए घोटाले का असर कर्मचारियों पर पड़ा है. उनमें से कई लोगों ने रिपोर्टर्स कलेक्टिव को बताया कि उन्हें दोहरी मार का सामना करना पड़ा है. पहले बैंक ने कर्मचारियों को कहा कि वे किसी भी तरीके से बॉब वर्ल्ड पर ग्राहकों को रजिस्टर करवाएं. फिर बैंक ने कर्मचारियों पर दबाव डाला कि वे उन दस्तावेजों को दिखाएं जो प्रमाणित करते हैं ग्राहकों ने बॉब वर्ल्ड की सेवाओं के लिए अनुरोध किया था.
ऑडिटिंग के दौरान लीपापोती में शामिल बैंक कर्मचारियों ने कहा कि अगर आरबीआई आगे की जांच के लिए उनके फॉर्म की पड़ताल करता है तो वे में मुसीबत में पड़ सकते हैं. लेकिन अगर उन्होंने अपने रीजनल मैनेजर की बात न मानी होती और सच्ची ऑडिट रिपोर्ट तैयार की होती तो वे निश्चित तौर पर मुसीबत में पड़ जाते.
कई कर्मचारियों ने बताया कि कैसे उन पर दबाव बनाया गया. उन्होंने कहा कि उन्हें और उनके सहकर्मियों को शॉर्टकट अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा. उत्तर प्रदेश स्थित एक ग्रामीण शाखा के प्रमुख ने कहा कि जब ग्राहकों के खातों में किसी और का मोबाइल नंबर जोड़कर दबाव में मोबाइल बैंकिंग एक्टिवेट की जाएगी तो सहमति प्रपत्र कैसे उपलब्ध होंगे?
यूपी के ही एक अन्य अधिकारी ने इस रिपोर्टर को ऑडिटिंग के दिन कॉल कर अपना गुस्सा व्यक्त किया. उन्होने कहा कि उनकी शाखा में बेबस कर्मचारी न केवल ग्राहकों के फॉर्म भर रहे थे, बल्कि उन पर ग्राहकों के जाली हस्ताक्षर भी कर रहे थे.
बैंक ऑफ बड़ौदा कर्मचारी संघ (कर्नाटक) ने 30 जुलाई को बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ को भेजे गए अपने पत्र में इन चिंताओं को उठाया था. पत्र में कहा गया था कि यूनियन ने लंबे समय से मोबाइल बैंकिंग और अन्य अनियमितताओं के मुद्दों पर प्रबंधन का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की थी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
एक बैंक कर्मचारी ने कहा, ‘जो लोग इस गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. यहां लंबे समय से तानाशाही चल रही है.’
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने एक ईमेल में आरबीआई से उसकी कार्रवाई के बारे में पूछा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. कलेक्टिव ने आरबीआई के सुपरविज़न विभाग से जेसुदास प्रदीप जी. को कॉल किया मगर उन्होंने इस आधार पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि वह मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं हैं.
बैंक ऑफ बड़ौदा ने भी आंतरिक ऑडिट और उसके निष्कर्षों के बारे में द रिपोर्टर्स कलेक्टिव के सवालों का जवाब नहीं दिया.