कुदरत ने पूरे उत्तराखंड में जो कहर बरपाया है उससे उबरने में न जाने कितना वक्त लगेगा. कुदरत की सबसे ज्यादा मार केदारनाथ झेल रहा है, जहां मंदिर के अलवा दूर-दूर तक कुछ और नजर नहीं आता. कुदरत के कहर से केदारनाथ मंदिर तो बच गया, लेकिन अब न तो यहां कोई पुजारी है और न ही बाबा का कोई भक्त.
इस बीच बाबा केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को गुप्तकाशी के विश्वनाथ मंदिर लाया गया है, जहां से बाबा की प्रतिमा ऊखीमठ पहुंच गई है. वैसे तो बाबा केदारनाथ की उत्सव प्रतिमा सर्दियों में ऊखीमठ लायी जाती है, लेकिन अचानक हुई तबाही के चलते बाबा वक्त से पहले ऊखीमठ पहुंच गए हैं.
उत्तराखंड के खूबसूरत पहाड़ों के बीच भगवान केदारनाथ बसे हैं. यहां आस्था युगों पुरानी हैं और भगवान शिव का मंदिर सदियों पुराना है, लेकिन बादल फटने से मची तबाही ने केदारनाथ की तस्वीर बदल कर रख दी. केदारनाथ धाम समुद्रतट से 3584 मीटर की ऊँचाई पर है. छह महीने यहां जमा देने वाली ठंड पड़ती है, केदारनाथ मंदिर बर्फ से ढक जाता है. इसी के चलते छह महीने भगवान केदारनाथ के कपाट बंद रहते हैं. इस दौरान भगवान केदार ऊखीमठ में विराजते हैं, लेकिन कुदरत ने जो कहर बरपाया उसके चलते वक्त से पहले ही बाबा केदारनाथ को ऊखीमठ लाया जा रहा है.
केदारनाथ की उत्सव प्रतिमा को अप्रैल महीने की अक्षय तृतीया को केदारनाथ लाया जाता है, जिसके बाद मंदिर के कपाट 6 महीनों के लिए आम भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं. कार्तिक पूर्णिमा के दिन कपाट बंद हो जाता है, जिसके बाद छह महीने के लिए केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ‘ऊखीमठ’ में लाया जाता है.
दरअसल, 23 जून की शाम बाबा केदार की उत्सव प्रतिमा गुप्तकाशी के विश्वनाथ मंदिर पहुंची, जहां पूजा के बाद रात भर बाबा केदार की प्रतिमा को मंदिर विश्वनाथ मंदिर में ही रखा गया और तड़के ही बाबा की प्रतिमा को ऊखीमठ ले जाया गया है. वहीं दूसरी ओर केदारनाथ मंदिर परिसर में मलबा काफी मात्रा में भरा हुआ है. मंदिर के ‘गर्भगृह’ तक मलबे का अंबार लगा है. ‘भगवान शिव के स्वयंभू ज्योतिर्लिंग’ तक मलबा आ गया है जिसकी वजह से शिवलिंग का कुछ ही भाग दिखाई दे रहा है.
गुप्काशी में बाबा केदारनाथ की उत्सव प्रतिमा के बारे में पुरोहित जयप्रकाश शुक्ल ने कहा कि जिस देवभूमि में केदारनाथ की महिमा की गूंज कभी बंद नहीं हुई, उस केदारनगरी में पिछले 8 दिनों से महाविनाश और मौत की खामोशी है. पिछले 8 दिनों से न केदारनाथ मंदिर की घंटी बजी, न भोले भंडारी का जयकारा सुनाई दिया. शिव के धाम में अब भी लाशें बिखरी पड़ी हैं. महाविनाश का तांडव हर तरफ दिखाई दे रहा है. केदारनाथ ही नहीं आधा उत्तराखंड इस महाविनाश का शिकार हो गया, लेकिन भगवान केदारनाथ मंदिर का बाल भी बांका नहीं हुआ. इतनी बड़ी विभीषिका झेलने के बाद भी मंदिर आज भी वैसे ही खड़ा है, जैसे सदियों पहले था. लोग जहां इसे स्थापत्य का कमाल कह रहे हैं, वहीं ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो इसे केदारनाथ की महिमा से जोड़कर देख रहे हैं.
केदारनाथ मंदिर सिर्फ हमारी आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि देश के कई सदी के इतिहास का साक्षी भी है. बसना, उजड़ना तो कुदरत का नियम है. केदारनाथ तक पहुंचने के रास्ते बंद हैं, लेकिन श्रद्धा से भरे इस देश में शिवभक्तों की ताकत भी कुछ नहीं. आज नहीं तो कल श्रद्धालुओं के लिए फिर से भगवान केदारनाथ के दर्शनों की राह बन ही जाएगी.