यूं तो रक्षाबंधन भाई-बहन का त्योहार है, भाई-बहन के बीच प्रेमतंतु को निभाने का वचन देने का दिन है, अपने विकारों पर विजय पाने का, विकारों पर नियंत्रण पाने का दिन है एवं बहन के लिए अपने भाई के द्वारा संरक्षण पाने का दिन है लेकिन विशाल अर्थ में आज का दिन शुभ संकल्प करने का दिन है, परमात्मा के सान्निध्य का अनुभव करने का दिन है, ऋषियों को प्रणाम करने का दिन है।
भाई तो हमारी लौकिक संपत्ति का रक्षण करते हैं किंतु संतजन व गुरुजन तो हमारी आध्यात्मिक संपदा का संरक्षण करके साधना की रक्षा करते हैं, कर्म में कुशलता अर्थात् अनासक्ति और समता में स्थिति कराकर कर्मबंधन से हमारी रक्षा करते हैं। उत्तम साधक अपने दिल की शांति और आनंद के अनुभव से ही गुरुओं को मानते हैं।
साधक को जो आध्यात्मिक संस्कारों की संपदा मिली है वह कहीं बिखर न जाय, काम, क्रोध, लोभ आदि लुटेरे कहीं उसे लूट न लें इसलिए साधक गुरुओं से उसकी रक्षा चाहता है। उस रक्षा की याद ताजा करने का दिन है रक्षाबंधन पर्व।
रक्षाबंधन का पर्व विकारों में गिरते अड़ोस-पड़ोस के युवा-युवतियों के लिए एक व्रत है। पड़ोस के भैया की तरफ बुरी नजर जा रही है… कन्या बुद्घिमान थी, सोचा, ‘मेरा मन धोखा न दे’, इसलिए एक धागा ले आई, राखी बांध दी। भैया के मन में हुआ कि ‘अरे, मैं भी तो बुरी नजर से देखता था। बहन ! तुमने मेरा कल्याण कर दिया।’
भाई-बहन का यह पवित्र बंधन युवक और युवतियों को विकारों की खाई में गिरने से बचाने में सक्षम है। भाई-बहन के निर्मल प्रेम के आगे काम शांत हो जाता है, क्रोध ठंडा हो जाता है और समता संयुक्त विचार उदय होने लगता है। यह पर्व समाज के टूटे हुए मनों को जोड़ने का सुंदर अवसर है। इसके आगमन से कुटुम्ब में आपसी कलह समाप्त होने लगती हैं, दूरी मिटने लगती है, सामूहिक संकल्प-शक्ति साकार होने लगती है।
रक्षाबंधन हमें सिखाता है कि ‘जो सांत्वना और स्नेह की आशा से जी रहे हैं, उनको सांत्वना और स्नेह दो। अगर बहन को रक्षा की आवश्यकता है तो उसकी रक्षा करो। अपने चित्त को चैतन्यस्वरूप ईश्वर में लगाओ।’ बहन राखी बांधते-बांधते ‘मेरा भाई तेजस्वी हो, गृहस्थ-जीवन में रहकर भी संयमी, सदाचारी रहे, दैवी संपदा से संपन्न रहे।’ इस प्रकार का संकल्प करके उसके दैवी गुणों की रक्षा की कामना करे। दूर देश में जो भाई हैं उनके लिए शुभकामना करके शुभ संकल्प तो जरूर भेजें।
कुंती ने अपने पौत्र अभिमन्यु को राखी बांधी थी। युद्ध के मैदान में जब तक यह रक्षाकवच था, तब तक कपटयुद्ध करनेवाले इतने सारे योद्धा भी अभिमन्यु को न मार सके। जब वह रक्षा-धागा टूटा उसके बाद वह मरा। ऐसे ही हमारे जो स्नेही हैं, उन्हें अपने विकाररूपी दैत्यों पर विजय पाने के लिए हमारी शुभकामना का कुछ-न-कुछ सहयोग मिले, इस हेतु रक्षाबंधन का त्योहार है।
राखी बांधते समय यह प्रार्थना करना कि ‘हे परमेश्वर! हे महेश्वर! तू कृपा करना कि हमारे भाइयों, मित्रों, कुटुंबियों, पड़ोसियों, देशवासियों का मन तुझमें लग जाए।’ इस दिन ब्राह्मण जनेऊ बदलते हैं। भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को नूतन बनाने का संकल्प करते हैं। तुम्हारे जीवन में ज्ञान, भक्ति, वैराग्य नूतन रहे।
तुम्हारे जीवन में शौर्य, उदारता, श्रद्धा, भक्ति, धैर्य, क्षमा, शुद्घि आदि सद्गुणों का, दैवी संपदा का विकास हो। इस दिन गर्भिणी स्त्री के दाएं हाथ पर कुमकुम-चावल की पोटली बांधी जाती है। एक्युप्रेशर की दृष्टि से देखा जाए तो आदमी चिंतातुर, भयभीत होता है तो दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं। उनको नियंत्रित करने के लिए दाएं हाथ पर बंधा कलावा बड़ा काम करता है। उसमें शुभकामना भी है और एक्युप्रेशर का काम भी है। रक्षासूत्र वर्ष भर आयु, आरोग्य, स्वास्थ्य की रक्षा एवं सच्चरित्रता में मदद करता है।
शांत होकर जब आप संकल्प करते हैं तो ‘मैं’ में से उठा हुआ स्फुरण अकाट्य हो जाता है। बाह्य जगत में बाह्य राखी की आवश्यकता होती है लेकिन भीतर के जगत में तो मन-ही-मन नाते जुड़ जाते हैं। भगवत्प्रीति के लिए, भगवद्-आनंद उभारने के लिए, अपना असली सुख, आत्मप्रकाश जगमगाने के लिए शुभ संकल्प द्वारा ‘परस्परं भावयन्तु’ की सद्भावना को पुष्ट करने के लिए रक्षाबंधन जैसे उत्सवों के माध्यम से निष्काम कर्म करते हैं तो वह कर्म कर्ता को बंधन से छुड़ानेवाला हो जाता है, दिव्य हो जाता है।