अगर आपको अपना व्यक्तित्व निखारना है, अपना प्रभाव विकसित करना है तो जीवन में आठ सद्गुण ले आइये। ये आठ सद्गुण और नौंवी आरोग्यप्रद ‘स्थलबस्ति’ आपके प्रभाव में चार चाँद लगाएंगे। कितना भी साधारण आदमी हो, तुच्छ हो तो भी वह बड़ा प्रभावशाली हो जाएगा।
(1) कला प्रभावोत्पादक मानवीय व्यवहार। पशु जैसा व्यवहार नहीं, छल-कपट, बेईमानी नहीं, अभिमानी जैसा व्यवहार नहीं, मनुष्य को शोभा दे ऐसा व्यवहार करें। कर्मों की गति गहन है, इसलिए ऐसे कर्म करो जिससे भगवान की प्रीति जगे।
(2) दूसरों के महत्त्व को भी स्वीकार करें। दूसरों के अंदर भी गुण हैं। अपने द्वारा उनका विकास हो तो अच्छा है, नहीं तो उनका अंदर से मंगल चाहें। डांटें तो भी मंगल की भावना से।
(3) आनंदित रहें, प्रसन्न रहें, मित्र-भावना से सम्पन्न रहें। आनंदित और प्रसन्न रहने के लिए बैठे-बैठे या लेटे-लेटे दोनों नथुनों से खूब श्वास लें, पेट भर लें, फिर ‘अशांति, खिन्नता और रोग के कण बाहर निकल रहे हैं।’ ऐसी भावना करते हुए मुँह से छोड़ें। इससे निरोगता भी बढ़ेगी और प्रसन्नता भी बढ़ेगी। रोज सुबह 10 से 12 बार ऐसा कर लें।
(4) आत्मसंयम। जो नहीं खाना चाहिए, जो नहीं करना चाहिए, बस उससे अपने को बचाएं तो जो करना चाहिए वह अपने-आप होने लगेगा।
(5) अपना उद्देश्य निश्चित करें कि ‘मुझे अपने आत्मा-परमात्मा को पाना है। जिसको पाना सहज है, अभागा मन, अभागी बुद्घि तू उधर क्यों नहीं चलती! जिसको पाए बिना दुर्भाग्य का अंत नहीं होता और जिसको पाने से कोई कमी नहीं रहती, तू उसको पा ले न!’ – ऐसा अपने मन को समझाएं।
(6) दूसरों के लिए हित की भावना और अपने लिए मितव्यय। अपने लिए ज्यादा ऐश नहीं। अपने लिए ज्यादा खर्च न करें और लोगों के हित का व्यवहार करें। हित, मित और प्रिय वाणी आपके हृदय को उन्नत बना देगी।
(7) संतुलित मनोरंजन। मनोरंजन हो, विनोद हो लेकिन वह भी संतुलित हो, नियंत्रित हो। मनोरंजन की सीमा हो।
(8) आत्मसाक्षात्कार के लिए अमिट उत्साह। जब तक परमात्मा का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब तक आत्मा-परमात्मा को पाने का उत्साह बना रहे। ‘अभी क्यों नहीं हो रहा है? कैसे पाऊँ प्रभु को?’ इस तरह उत्साह से लगे रहें।
ये आठ सद्गुण अपने हृदय में भर लें तो आपका प्रभाव खूब ही हो जाएगा। जिसके जीवन में ये सद्गुण आ गये वह तो धन्य हो गया, उसका कुटुम्ब भी धन्य हो गया और उससे मिलनेवाले भी धनभागी हो जाते हैं।
ये आठ सद्गुण आ गये तो आपको तो ईश्वर मिल जाएंगे, साथ ही आपके पदचिह्नों पर हजारों-लाखों लोग चलेंगे। और इन सद्गुणों को साकार करने में स्थलबस्ति, जो आपको दीक्षा के समय सिखायी जाती है, वह चार चाँद लगाएगी। आरोग्य और प्रभावशाली व्यक्तित्व में, निर्विकारिता में और ईश्वर प्राप्ति में बेजोड़ सहयोग देगी।