भोपाल– शहर में 7 से १६ नवम्बर तक सेना की भर्ती चल रही है ,देश पर मर-मिटने का जज्बा लिए युवा इस भर्ती में अपनी उम्मीदवारी जताने भोपाल शहर में एकत्र हुए है यह ऐसी वेसी भर्ती नहीं है देश के लिए जान लेने और देने का मामला है,लेकिन गूंगे-बहरे प्रशासन को इससे क्या लेना देना ,युवा दूर -दराज के शहरों से आये हैं ,अधिकाँश गरीब और खेतिहर परिवारों से हैं ,ये विश्व-गुरु का स्वरूप इन शहरों को ही मानते हैं,भोपाल के लाल-परेड ग्राउंड पर यह भर्ती है ,युवा दूर के कस्बों से आते हैं और ग्राउंड के समीप ही खुले में जमीन या फुटपाथ पर चादर बिछा या यूँ ही जमीन पर सो जाते हैं ,जाएँ कहाँ न ही स्थानीय प्रशासन ,न सेना और ना किसी स्वयंसेवी संस्था या व्यक्ति ने इसके लिए अस्थायी प्रबंध किया है.
राजधानी और उसके नुमाइंदे इस सुहाने मौसम में भी वातानुकूलित कमरों में विश्राम कर रहे हैं उनमें से कई अपनी दिन-भर की रिश्वतखोरी का हिसाब मिला कर खुश हो रहे होते हैं कई आने वाले अच्छे दिनों की सोच कर .
ये युवा देशभक्ति का जज्बा लिए अपनी सम्मानजनक रोजी-रोटी की आस लिए जान न्योछावर करने आते हैं ,जी हाँ देशभक्ति का जज्बा तो है ही मुख्य यह भी है दो जून की रोटी की कवायद वह भी सम्मान के साथ! लेकिन जिम्मेदार प्रशासन ,नेता और स्वयंसेवियों के लिए इस जज्बे का कोई अर्थ नहीं,सम्मान नहीं ,देशभक्ति के नाम रोने और वोट बटोरने वाले इस जज्बे की हिफाजत भी नहीं कर पाते हैं. इसी तरह हजारो नौजवान रात्री में भारत माता की रक्षा का संकल्प लिए धरती मां की गोद में ही नींद के आगोश में बिना किसी दर्द के पड़े रहते हैं , देश एवं समाज के ठेकेदारों को इनकी तरफ देखने की फुर्सत तक नहीं है .