मानव मन में सहज प्रवृति होती है कि वह किसी चीज को अच्छा कहता तो किसी को बुरा। जबकि संसार में कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं है। हर बात दूसरी किसी बात के परिप्रेक्ष्य में अच्छी या बुरी साबित होती है। किसी एक नजरिये से वही बात बुरी हो जाती है और किसी दूसरे परिप्रेक्ष्य में देखें, तो वही बात अच्छी हो जाती है।
व्यक्ति को यह बात याद रखनी चाहिए कि ‘फलां व्यक्ति अच्छा है या फलां व्यक्ति बुरा’, इस तरह किसी के लिए भी वह टिप्पणी न करें। क्योंकि जिसको आप अच्छा कह रहे हों, वह शायद किसी दूसरे के लिए बुरा भी हो सकता है और जिसको आप बुरा कह रहे हैं वह दूसरे ढ़ंग से बहुत अच्छा हो सकता है।
उदाहरण के लिए चाकू को लीजिए। चाकू अगर किसी के पेट में भोंक दें, तो वह बुरी चीज हो जाएगी। पर इसी चाकू से तुम साग-सब्जी काट कर पका लो और दूसरों को खिलाओ या फल काटकर दूसरों को खिलाओ, तो यही चाकू अच्छी चीज हो जाएगी।
असल में चाकू न अच्छा है और न बुरा। इसी चाकू से तुम किसी की हत्या कर सकते हो और इसी चाकू से एक डॉक्टर सर्जरी भी कर सकता है। असल में किसी के बुरे या अच्छा होने का सिर्फ एक आधार है कि उस वस्तु का प्रयोग किस प्रकार किया जा रहा है। प्रयोग में ही अच्छाई और बुराई निहित है।