भारतीय सेना के प्रमुख रहे जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने अपनी किताब ‘फॉर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’ में बताया की अग्निपथ योजना के तहत वेतन महज 20 हजार रुपये तय की गई थी, लेकिन सेना ने इसका विरोध किया तब इसे बढ़ाया गया।
नई दिल्ली – भारतीय सेना के प्रमुख रहे जनरल एमएम नरवणे ने अग्निपथ योजना को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। उन्होंने अपनी किताब ‘फॉर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’ में बताया है कि यह योजना सेना से राय मशविरा के बगैर लाया गया। बकौल नरवणे यह योजना नौसेना और वायु सेना के लिए तो एक झटके की तरह आई।
जनरल नरवणे ने अपने संस्मरण ‘फॉर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’ में इस योजना के शुरू होने की पूरी कहानी बताई है। थल सेनाध्यक्ष बनने के कुछ हफ्तों बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी एक बैठक हुई थी। इस बैठक में उन्होंने पीएम मोदी को ‘टुअर ऑफ ड्यूटी’ स्कीम का सुझाव दिया था। इसके तहत उन्होंने प्रस्ताव दिया था कि अधिकारियों के लिए शॉर्ट सर्विस कमिशन के तरह ही सीमित संख्या में जवानों को कम अवधि के लिए नामांकित किया जा सकता है।
इस बैठक के कुछ महीने बाद ही PMO ने भारत की तीनों सेनाओं (थल सेना, नौसेना और वायु सेना) में अग्निपथ योजना की घोषणा कर दी और इसके तहत नियुक्त होने वाले जवानों को अग्निवीर कहा गया। इस योजना के तहत 17 से 21 साल के युवकों को 4 सालों के लिए सेना में भर्ती करने का प्रावधान है। इनमें से 25 प्रतिशत कर्मचारियों की नौकरी को अगले 15 साल के लिए बढ़ाया जा सकता है शेष 75 फीसदी को बाहर कर दिया जाएगा।
नरवणे ने कहा कि अग्निपथ योजना की घोषणा थल सेना के लिए हैरान करने वाली थी। लेकिन नौसेना और वायु सेना के लिए तो ये सूचना एक झटके की तरह आई। जनरल नरवणे ने 31 दिसंबर 2019 से 30 अप्रैल 2022 तक सेना के प्रमुख के तौर पर काम किया। जब यह योजना आई तो वह सेना प्रमुख थे। वे कहते हैं कि पीएमओ का निर्णय एकदम चौंकाने वाला था।
नरवणे के मुताबिक सेना का शुरुआती विचार ये था कि इस योजना के तहत भर्ती किए जाने वाले 75 फीसदी कर्मचारियों को सेना में ही नौकरी करते रहना चाहिए। वहीं, 25% कर्मचारियों को अपना कार्यकाल पूरा होने के बाद निकाल दिया जाना चाहिए। हालांकि, केंद्र ने अग्निपथ योजना में ठीक इसके उल्टा किया है। उसमें 25 फीसदी को रखा जाएगा और 75 फीसदी को निकाल दिया जाएगा।
इतना ही नहीं नरवणे ने ये भी बताया कि शुरुआत में अग्निवीरों के लिए पहले साल की सैलरी महज 20 हजार रुपये प्रतिमाह तय की गई थी। उन्हें इसमें अलग से कोई और भुगतान देने का प्रावधान नहीं था। नरवणे कहते हैं कि ये बिल्कुल स्वीकार करने लायक नहीं था। हम एक प्रशिक्षित सैनिक की बात कर रहे थे। उससे उम्मीद की जाती है कि वो देश के लिए अपनी जान दे दे। साफ है कि सैनिकों की तुलना दिहाड़ी मजदूरों से नहीं की जा सकती। हमारी मजबूत सिफारिशों के बाद, उनकी सैलरी को बढ़ाकर 30 हजार रुपये प्रतिमाह किया गया।
जनरल नरवणे के खुलासे के बाद केंद्र की मोदी सरकार की खूब आलोचना हो रही है। रिटायर्ड कर्नल रोहित चौधरी ने ट्विटर पर लिखा है कि, ‘अग्निवीर स्कीम PMO द्वारा देश व सेना के साथ एक धोखा या शायद एक साजिश। PMO (प्रधानमंत्री कार्यालय) ने अग्निपथ स्कीम को भारतीय सेना व तीनों सेना प्रमुखों को बिना बताए व बिना पायलट प्रोजेक्ट किए, क्यों लागू किया? सेना पर ये स्कीम, जो न देशहित में है, न ही युवाओं के हित में है, फिर भी क्यों थोपी गई? क्या ये स्कीम देश की सुरक्षा प्रणाली के साथ खिलवाड़ नहीं है? जब ये स्कीम देश की सुरक्षा, सेना व युवाओं के हित में नहीं है तो इसे क्यों न तुरंत प्रभाव से बंद कर किया जाए।’