आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति से लबालब भरे होना जरूरी है। उसके बिना जिंदगी में कुछ खास हासिल नहीं होता। पर यह हमेशा जरूरी नहीं है। हारने या नाकाम होने का भी मजा है। कमज़ोर इच्छाशक्ति भी कभी कदा फायदेमंद होती है।
जर्मनी में वियना में हुई साइकोलॉजिस्ट कांफ्रेंस में दो मनोविज्ञानी कैथरीन रॉन और कैथलीन वोस ने एक शोधपत्र पढ़ा और कहा कि सुख शांति से रहने के लिए जरूरी है कि यदा कदा अपने आपको ढीला यानी आत्मशक्ति उबारे बिना हालात के हवाले भी छोड़ देना चाहिए।
उदाहरण दे कर उन्होंने कहा कि सभी दवाओं का स्वाद अप्रिय होता है। कुछ दवाएं तो गले ही नहीं उतरती। इसका अर्थ यह भी तो हो सकता है कि वह औषधि आपके शरीर की बनावट से मेल नहीं खा रही। शरीर उसे ग्रहण करने में अपने आपको असमर्थ पा रहा है। शराब या कोई मादक द्रव्य लेते ही उसके प्रति शरीर का प्रतिरोध उसी तरह है जैसे ताकत से ज्यादा श्रम करने पर हाथ पांव फूलने लगते हैं।
उन्होंने कुछ हासिल करने के लिए थका देने वाले श्रम का हवाला देते हुए कहा कि इस कारण होने वाला तनाव उस उपलब्धि को धो पोंछ देता है। दरअसल इच्छा शक्ति का इस्तेमाल एक संसाधन के तौर पर ही होता है ताकि हम वह चीजें कर सकें जो हमें करनी चाहिए।
जो करनी चाहिए वे चीजें तो हमारे लिए अच्छी हैं। पर जो चीजें अच्छी नहीं हैं उनके लिए इच्छा शक्ति का उपयोग थका देता है। इसलिए कई बार इच्छाशक्ति का बेशुमार इस्तेमाल करने के बजाय चीजों को भगवान भरोसे छोड़ देना ज्यादा कारगर रहता है।
वरना जरूरत से ज्यादा संयम या इच्छाशक्ति का उपयोग हानि भी पहुंचा सकता है। क्योंकि वह आखिर एक उपकरण या साधन भी तो है।