राम, श्याम, माधव, गोविंद, अनिमेष आदि में से आपका नाम जो भी हो पर असल नाम कुछ और है। शिकागो स्थित अमेरिकन वैदिक इंस्टीट्यूट के संन्यासी विद्वान स्वामी वेदभिक्षु का कहना है कि अपना वह असली नाम पुकारते ही मनुष्य का तार-तार झंकृत हो जाता है।
अभी तक पढ़ा सुना ही जाता था लेकिन इंस्टीट्यूट के शोध अनुसंधान में साबित हो गया है कि तीन मात्राओं वाले इस संबोधन को पुकारते ही बेहोश आदमी भी चैतन्य होकर उठ बैठता है।
जो संबोधन व्यक्ति की चेतना को झकझोर कर उठ खड़ा कर देता है, उसे भारतीय साधना पंरपरा में ‘ओम’ कहते हैं। ओम, ओंकार, प्रणव, उद्गीथ, आदिनाद जैसे नामों से पुकारे गए इस नाम के अर्थ और उद्बोधन भी अलग अलग हैं पर सभी व्यक्ति के मूल अस्तित्व को पुकारते हैं।
इंस्टीट्यूट में किए गए अध्ययन प्रयोग के अनुसार एक जगह गहरी नींद में सोए सत्तर व्यक्तियों में कुछ लोगों को उनके व्यक्तिगत नाम से पुकारा गया तो वही लोग उठे। फिर ओम नाम से पुकारा गया तो सत्तर में से छियालीस व्यक्ति जाग गए।
इसी श्रृंखला में किए गए कुछ प्रयोगों के अनुसार ओम नाम का स्मरण औऱ उच्चारण व्यक्ति को तुरंत निर्मल और सरल करने लगता है। बारह दिन तक प्रतिदिन हजार बार ओम की ध्वनि सुनने, उच्चारण करने और ध्यान लगाने के बाद व्यक्ति आसपास की स्थितियों से अंसग या निर्लिप्त होने लगता है।
इन निष्कर्षों से आगे शास्त्रों की बात आती है और विवरण लंबे होते जाते हैं जिनमें ओम को ब्रह्म का नाम, नाद, निनाद और मूल ध्वनि जैसी स्थापनाओं का ही विस्तार है।