स्वामी सत्यमित्रनंद गिरी महाराज बाल संन्यासी हैं। उन्होंने वर्ष 1983 में भारत माता मंदिर की स्थापना की थी, जो कि अपनी तरह का विश्व का पहला मंदिर है। विश्व के साठ देशों में भारतीय संस्कृति का जागरण किया, अनेक देशों में उन्हें मिनी विवेकानंद के नाम से भी जाना जाता है।
धर्मनगरी हरिद्वार के नील पर्वत पर स्थित नीलेश्वर महादेव मंदिर का अस्तित्व आदिकाल से माना जाता है। शिव महापुराण में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। नीलेश्वर महादेव मंदिर भी दक्षेश्वर मंदिर के काल से ही यहां स्थित हैं। श्रवण मास में यहां पर विशेष पूजा अर्चना होती है। मंदिर में मौजूद शिवलिंग श्रंगार देखते ही बनता है। मंदिर में उत्तराभिमुख ढाई फीट ऊंचा स्वयंभू शिवलिंग मौजूद है।
शिव महापुराण में वर्णन है कि सती के हवन कुंड में आत्मदाह करने के बाद, शिव ने अपने गणों को दक्ष प्रजापति का यज्ञ नष्ट करने के आदेश दिए थे। मान्यता है कि भगवान शिव ने नील पर्वत पर खड़े होकर दक्ष प्रजापति के यज्ञ विध्वंश को देखा था। नील पर्वत पर होने से यह स्थान नीलेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ और कहा जाता है कि नील धारा के रूप में गंगा भगवान शिव के चरणों को प्रणाम करती है।
हरिद्वार-नजीबाबाद हाईवे पर स्थित नील पर्वत पर नीलेश्वर मंदिर प्रसिद्ध चंडी देवी मंदिर को जाने वाले ट्रॉली व पैदल मार्ग से कुछ ही दूरी पर स्थित है। रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से मंदिर की दूरी पांच किमी के आसपास है। जहां से अपने निजी वाहनों और हरिद्वार में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साधनों से भी पहुंचा जा सकता है। हार्इंवे से मात्र 250 मीटर उपर की ओर स्थित है यह मंदिर।
अध्यात्म तत्व की सहज प्राप्ति कराते हैं शिव-
मानसिक शांति के अन्वेषण में आज के भौतिकवाद की चकाचौंध में भटकता हुआ विश्व का मानव किंकर्तव्यविमूढ़ बना हुआ है। अनेक प्रकार के साधन अपनाता हुआ वह गंतव्य पथ से दूर है। संसार में कोई शांति प्रदान कर सकता है तो वह केवल दैविक तत्व ही जो कि मनुष्य को अध्यात्म मार्ग की ओर अग्रसर करता है। अध्यात्म तत्व की प्राप्ति को भी आज कल अनेक विधाएं हैं। शिव की उपासना वह साधन है जिन की कृपा से मानव मात्र अध्यात्म दर्शन, दैविक चमत्कार एवं भौतिक सुखोपभोग सामग्रियों को सहज प्राप्त कर सकता है। शिव भगवान के नाम भी इस बात के द्योतक हैं जो कि मानव जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम प्रतीत होते हैं। जैसे शिव-कल्याण, शं-शांति, कर-करने वाला, भूतभावन-पंचभौतिक शरीर को स्वस्थ रखने वाले, स्मरहर-प्राणीमात्र को काम शक्ति को नियंत्रित करने वाले महादेव जो सब देवताओं से महान हैं। इस प्रकार परम-प्रभु शिव भगवान के अनेक नाम हैं। इसके अलग सृष्टि का सृजन ब्रह्म और पोषण भगवान विष्णु कर रहे हैं। कल्याण करने वाला विभाग शिव के ही पास है। इस कठिन साध्य संसार से कोई बिरला ही संत्पुरुष जीवन की परमोपलब्धि मोक्ष-प्राप्ति की चरम सीमा को प्राप्त करता है। मोक्ष भी केवल शिव ही प्रदान कर सकते हैं। शिव उपासना के लिए भी सहज मार्ग है, शिव को प्रसन्न करने की बहुत भारी भरकम पूजा या फिर अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं, बल्कि शिव तो ऐसे देव हैं जो केवल एक लोटा जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
तव तत्वं न जानामि, कीदृशोडसि महेश्वर
यादृशोडसि महादेव- तादृशाय- नमो: नम: अर्थात् मैं तुम्हारे तत्व को नहीं जानता, किस प्रकार सोलह उपचार तुम्हारी पूजा करूं, जिस प्रकार भी सोलह उपचार पूजन हो वही स्वीकार करो भगवन।