अनिल सिंह(भोपाल )— देश का तीव्र बुद्धि का बच्चा अधिकारी बन जाता है,शासकीय अधिकारी,तनख्वाह मोटी,गाडी,बंगला सब कुछ मजे की जिंदगी लेकिन काम कितना इसका वैल्यूएशन करें तो यही कहा जाएगा की भाई ये तो लिखवा कर लाये हैं,हाँ साहब की अकड़ इतनी की बाप रे बाप।
सब ऐसे नहीं होते लेकिन अधिकांश अधिकारीयों का यही हाल है अपवाद कुछ ही हैं,यहाँ हम जिक्र कर रहे हैं ऐसे ही एक लाट साहब जो की फार्मेसी कौंसिल मध्यप्रदेश के रजिस्ट्रार हैं इनका पिछला तीन वर्षीय कार्यकाल जो नगर निगम में था,विवादित रहा,भ्रष्टाचार में ये आकंठ डूबे रहे,अब जितना बन पड़ रहा यहाँ फार्मेसी कौंसिल में लूट रहे हैं और फर्जीवाड़ा करने वालों को बचा भी रहे हैं।
ये वर्तमान अधिकारी हैं रजिस्ट्रार अभय बेडेकर मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण संस्था है यह लेकिन ये महाशय कह रहे हैं की हम तो बस तीन सालों का ही जानते हैं आगे पीछे क्या हुआ हमें नहीं पता,अरे भाई यदि आपको पूर्व में हुई गड़बड़ियाँ संज्ञान में लायी जाती हैं तब उसकी जांच और कार्यवाही आप नहीं करेंगे तो क्या कोई दूसरा करेगा पद पर आप हैं ,रुपैय्या आप ले रहे हैं,माल आप कूट रहे हैं ,हम यदि आपके संज्ञान में इस बात को ला रहे हैं तब भी आप अजगर की भाँती पड़े हुए हैं भाईसाब जो रुपईय्या आप जनता का ले कर अपने बाल-बच्चों का पेट भर रहे हैं क्या उनकी ही जान लेंगे आप।
क्या प्रकरण हुआ
हमने 21-2-2103 को सूचना के अधिकार के तहत फार्मासिस्ट क्रमांक 9355 की जानकारी विभाग से मांगी क्योंकि हमें सूचना प्राप्त हुई थी की कोंसिल में कई फर्जी फार्मासिस्टों का पंजीयन रिकॉर्ड जलने के आधार पर फर्जीवाड़ा करके किया गया है।
13 मार्च को विभाग ने पत्र द्वारा सूचना भेजी लेकिन जो दस्तावेज मांगे थे उनका उल्लेख नहीं किया।
13 मार्च को हमने इन्हें पत्र लिखा और जो दस्तावेज हमने मांगे थे उसके संबंद्ध में स्मरण करवाया।
4 अप्रेल को पुनः विभाग ने सूचित किया की शेष जानकारी प्रश्नोत्तरी के रूप में होने से देने में असमर्थ हैं,यदि आपको कोई दस्तावेज या जानकारी चाहिए तो आप कार्यालय में आकर अवलोकन कर सकते हैं।एबं अभिलेख 1989 में जल जाने से देने में असमर्थता जताई।
इसके उपरांत ये हमें आज कल आने को कहते रहे पुनः ४ जून को मौखिक चर्चा के बाद हमने प्रथम अपील प्रस्तुत की उसके उत्तर में 12 जून को प्रथम अपील हेतु हमें बुलाया गया और वहां जाने पर अरविन्द बेडेकर ने कहा की हम आपको दस्तावेज दे देंगे।
इसके उपरांत कई दफे उपस्थित होने पर भी आप बाद में आईये हम दे देंगे कहते रहे।
3 अगस्त को जब मैं अरविन्द बेडेकर के कार्यालय में पुनः गए तो अपने मातहत पाण्डेय से बात करने के उपरान्त पुनः एक हफ्ते बाद आने को कहा,बात-चीत के दौरान बेडेकर ने कहा कि आप एक आदमी के पीछे ही क्यों पड़े हैं आप सभी पर कार्यवाही करवाईये,इस पर हमने कहा की जब एक से कन्फर्म हो जाएँ तभी तो लेकिन आप तीन बोलेंगे साल से बैठे हैं यहाँ आपके संज्ञान में क्यों नहीं आया।
बेडेकर का हम पर आरोप था की आप किस सिध्हांत पर कार्य करते हैं आप क्यों उन सज्जन को ऊँगली कर रहे है यह भाषा थी इन लाट साहब की।
बेडेकर और वहां के स्टाफ का मंतव्य पहले ही स्पष्ट हो गया था की वे भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं क्योकि इनकी कमाई का साधन यही है।यहाँ बेडेकर के ड्राईवर से लेकर पूरा स्टाफ फार्मेसी के बच्चों से वसूली में लगा है ,जो पैसे दे देते हैं उनका पंजीयन तुरंत हो जाता है जो नहीं दे पाते उनका सालों लटका रहता है।
यह कहने पर की आप लोगों पर शिवराज जी का सुशासन चलाने का दायित्व है,लाट साहब अपनी अकड़ में बोले की हम यहाँ के सबकुछ हैं जैसा हम चाहेंगे वाही होगा,मुख्यमंत्री तो आते जाते रहते हैं।
यह एक उदाहरण है की शिवराज के सुशासन की कैसी धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं ,जब हम पत्रकारों को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है तब बाकी मानस का क्या हाल होता होगा।