माना जाता है कि करीब छह सौ साल पहले जम्मू के राजा मालदेव ने इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की थी। इस मंदिर का नाम पंचवक्तर क्यों रखा गया, इसकी पूर्ण जानकारी नहीं मिलती। इसका अर्थ पांच मुख वाला है, लेकिन जो शिवलिंग यहां पर स्थापित है उसके पांच मुख नहीं हैं।
पुराणों के अनुसार जब भगवान शिव के मुंह से पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि और आकाश पांच तत्व निकले तो भगवान शिव का नाम पंच वक्तर पड़ा। लिखित प्रमाण के अनुसार इस मंदिर को राजा रंजीत देव ने बनवाया था। यहां के पंडित पंकज शर्मा के अनुसार इस मंदिर का निर्माण राजा माल देव ने करवाया था। इस स्थान की इसलिए अधिक मान्यता है, क्योंकि यहां से आपशंभू प्रकट हुए थे। राजा मालदेव इस स्थान पर कुछ कार्य करवा रहे थे कि खुदाई के समय एक मजदूर की कुदाल एक पत्थर से टकराई और पत्थर से खून की धारा निकल पड़ी। घटना की सूचना जब राजा को मिली तो उन्होंने वहां थोड़ी और खुदाई करने के लिए कहा। इस खुदाई में वहां से शिवलिंग प्राप्त हुआ। उस स्थान की पवित्रता को समझते हुए राजा मालदेव ने वहां शिवालय बनवाया और उस शिवलिंग की स्थापना करवाई।
माना जाता है कि करीब छह सौ साल पहले जम्मू के राजा मालदेव ने इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की थी। इस मंदिर का नाम पंचवक्तर क्यों रखा गया, इसकी पूर्ण जानकारी नहीं मिलती। इसका अर्थ पांच मुख वाला है, लेकिन जो शिवलिंग यहां पर स्थापित है उसके पांच मुख नहीं हैं। पुराणों के अनुसार जब भगवान शिव के मुंह से पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि और आकाश पांच तत्व निकले तो भगवान शिव का नाम पंच वक्तर पड़ा। लिखित प्रमाण के अनुसार इस मंदिर को राजा रंजीत देव ने बनवाया था। यहां के पंडित पंकज शर्मा के अनुसार इस मंदिर का निर्माण राजा माल देव ने करवाया था। इस स्थान की इसलिए अधिक मान्यता है, क्योंकि यहां से आपशंभू प्रकट हुए थे। राजा मालदेव इस स्थान पर कुछ कार्य करवा रहे थे कि खुदाई के समय एक मजदूर की कुदाल एक पत्थर से टकराई और पत्थर से खून की धारा निकल पड़ी। घटना की सूचना जब राजा को मिली तो उन्होंने वहां थोड़ी और खुदाई करने के लिए कहा। इस खुदाई में वहां से शिवलिंग प्राप्त हुआ। उस स्थान की पवित्रता को समझते हुए राजा मालदेव ने वहां शिवालय बनवाया और उस शिवलिंग की स्थापना करवाई।