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 काशी भी हो जाती है जगन्नाथमय | dharmpath.com

Saturday , 30 November 2024

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काशी भी हो जाती है जगन्नाथमय

12_07_2013-jagannath7शिव की नगरी काशी में भी अस्सी घाट के निकट पुरी की तर्ज पर भगवान जगन्नाथ का मंदिर है। इसकी स्थापना एवं निर्माण 1790 ई. का बताया जाता है। इसी मंदिर में मान्यता के अनुसार, भगवान जगन्नाथ बीमार होकर काढ़ा पीते है और स्वस्थ होकर बेनीमाधव के बगीचे तक की यात्रा करते हैं। वहीं से कृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा के विग्रह (मूर्तियों) को रथ पर सवार कर ‘रथयात्रा’ प्रारंभ की जाती है।

निरंतर तीन दिन तक चलने वाले इस मेले को ‘लक्खी मेला’ कहते है। इसकी व्यवस्था एक ट्रस्ट द्वारा संचालित होती है। बनारस में आयोजित ‘रथयात्रा मेला’ नगर की पहचान बना हुआ है, जिसके पीछे दो जनश्रुतियां प्रचलित हैं। ये बिना हाथ-पैर के अधूरे विग्रहों से जुड़ी हैं। पहली जनश्रुति में गंग नरेश को प्रभु के विग्रह-निर्माण की प्रेरणा, बहते जल से लकड़ी के कुंदों की प्राप्ति तथा मूर्ति निर्माण हेतु स्वयं विश्वकर्मा द्वारा वृद्ध कारीगर के रूप में विग्रह निर्माण की है। कारीगर की शर्त थी कि निर्माण अवधि में द्वार न खोले जाएं, किंतु दयालु रानी ने कारीगर को भूखा-प्यासा समझकर बीच में ही कमरे का पट खोल दिया। कारीगर अंर्तधान हो गया और अधूरी रह गईं काष्ठ निर्मित मूर्ति, जिसे मंदिर में स्थापित कर दिया गया।

दूसरी प्रचलित जनश्रुति में बहन सुभद्रा के आग्रह पर कृष्ण द्वारा भाई (बलभद्र) और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर आरूढ़ होकर नगर की परिक्रमा और नगरवासियों को दर्शन देना है। बनारस में शताब्दियों से आस्था और धर्म से जुड़े मेले (सावन में दुर्गाकुंड-सारनाथ का मेला, लक्ष्मीकुंड का सोरहिया मेला, रामनगर की रामलीला, चेतगंज की नाककटैया, लोलार्क कुंड का मेला, नाटी इमली का भरत मिलाप) आदि की शुरुआत ही आषाढ़ मास में आयोजित रथयात्रा मेले से ही होती है। रथयात्रा मेले की अवधि तीन दिन की होती है। दूर-दूर से श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ के दर्शन और रथ का स्पर्श करने के लिए पहले से ही यहां डेरा जमा लेते हैं।

काशी भी हो जाती है जगन्नाथमय Reviewed by on . शिव की नगरी काशी में भी अस्सी घाट के निकट पुरी की तर्ज पर भगवान जगन्नाथ का मंदिर है। इसकी स्थापना एवं निर्माण 1790 ई. का बताया जाता है। इसी मंदिर में मान्यता के शिव की नगरी काशी में भी अस्सी घाट के निकट पुरी की तर्ज पर भगवान जगन्नाथ का मंदिर है। इसकी स्थापना एवं निर्माण 1790 ई. का बताया जाता है। इसी मंदिर में मान्यता के Rating:
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