अनिल सिंह(भोपाल)– वास्तुविद यह उस नियोजन का नाम है जिस पर जिम्मेदारी होती है इस प्रकृति में मानव आवश्यकताओं के संयोजन हेतु संरचनाओं के निर्माण की अभिकल्पना करना और उसे मूर्त रूप देने में सह्यॊग प्रदान करना।आज एक से एक संस्थान भारत में संचालित हो रहे हैं,योग्यता से परिपूर्ण प्रतिभायें भी सामने आ रही हैं लेकिन ट्रेनिंग के बाद इन योग्यताओं के व्यावसायिक जीवन को संचालित करने हेतु जो कौंसिल बनायी गयी है वह और धूर्त वास्तुविद मिलकर कई प्रतिभाओं को समय से पहले ही ख़त्म कर दे रहे हैं,इस समाज को अच्छी योजनाओं से वंचित रह जाना पद रहा है ……… इस समस्या पर पेश है रिपोर्ट और आगे भी हम इसे उठाते रहेंगे तब तक जब तक इसका योग्य समाधान न निकल जाए—
कौंसिल ऑफ़ आर्किटेक्चर
यह वह संस्था है जिसका मुख्यालय दिल्ली में है और यह देश भर के वास्तुविदों को रजिस्टर्ड कर उन्हें व्यावसायिक प्रैक्टिस के लिए अनुमति देता है एवं अपने नियमों के अंतर्गत कार्य करने को निर्देशित करता है।
क्या नियम हैं कौंसिल ऑफ़ आर्किटेक्चर के
यह संस्था स्नातक वास्तुविदों को अपने यहाँ रजिस्टर्ड करती है और इस आधार पर ये स्नातक देश भर में प्रैक्टिस के लिए योग्य माने जाते हैं।भारत सरकार की तरफ से इस स्वायत्य संस्था ने फीस प्राप्त करने के कुछ मापदंड तय किये हैं,कौंसिल कहता है की कोई भी वास्तुविद निविदा में भाग नहीं ले सकता अपितु डिजाइन प्रस्तुति हेतु कॉम्पटीशन शब्द कहा है ,इसका उद्देश्य यह है की नयी प्रतिभाएं भी आगे आयें और उन्हें भी प्रतियोगिता में भाग लेने का अवसर मिले इस हेतु कार्य के हिसाब से कौंसिल ने फीस तय की है और उसी हिसाब से फीस प्राप्ति हेतु निर्देशित भी किया गया है।
व्यवसाय में जमे हुए वास्तुविद क्या करते हैं
—— कुछ बड़े एवं स्थापित वास्तुविदों ने अपना कार्य निकालने हेतु एवं नयी प्रतिभाएं सामने न आ पायें इस हेतु कौंसिल के नियमों के विरुद्ध कार्य करते हैं ये गठजोड़ करते है विभागीय अधिकारीयों से मिलीभगत कर उन्हें चुप रहने को प्रेरित करते हैं।ये वास्तुविद तय की गयी फीस से भी कम दरों पर कार्य करते है जिससे प्रस्तुत डिजाईन का महत्व समाप्त हो जाता है।
क्या कार्यवाही हो सकती है इन वास्तुविदों पर
—- कौंसिल के नियमों के उल्लंघन पर इन वास्तुविदों को पंजीयन कौंसिल निरस्त कर सकता है एवं ये वास्तुविद वहां जिस जगह कौंसिल से पंजीयन आवश्यक है वहां भाग नहीं ले सकते।
निर्माण विभागों ने कौंसिल से हट कर अपने मापदंड तय किये हुए हैं
— कतिपय विभागों ने इस फर्जीवाड़े में अपना सहयोग मनोयोग से दे रखा है इन्होने फीस के अपने ही मापदंड तय कर लिए है इस हेतु न ही इन्होने कौंसिल से कोई संपर्क किया और दिशा निर्देश प्राप्त किये हाँ यह नियम जरूर दाल देते हैं की प्रतियोगी वास्तुविद को कौंसिल ऑफ़ आर्किटेक्चर से रजिस्टर्ड होना आवश्यक है।
कौंसिल के फीस नियमों में विसंगति है इसका कारण-
— जब कौंसिल ने नियम बनाए थे तब की परिस्थितियां अलग थीं ,ये आज की परिस्थितियों एवं महंगाई से भिन्न थीं तब इतने वास्तुविद भी नहीं थे और न ही इतने निर्माण कार्य होते थे।
कौंसिल को आवश्यकता है अपने फीस नियमों के पुनरीक्षण की
—- कौंसिल ऑफ़ आर्किटेक्चर को जरूरत है की वह विसंगतियों को दूर करने हेतु फीस का निर्धारण नए सिरे से करे ताकि निर्माण विभागों एवं वास्तुविदों को उचित स्थिति कार्य हेतु प्राप्त हो सके।
रोड़ा बनेंगे स्थापित वास्तुविद और सरकारी विभागों में बैठे वास्तुविद अधिकारी
— ऐसा नहीं है की यह समस्या विभागों को पता नहीं है सभी जानते हैं लेकिन कोई कुछ करना ही नहीं चाहता,सभी को अपनी तनख्वाह से मतलब है और कितनी और मोटी यह हो सकती है यह सोचते हैं क्या मतलब नियमों से इन्हें भाड़ में जाए अपना पैसा तो बन रहा है।
कौंसिल के मुखिया गाँधी के बंदरों की तरह व्यवहार करते हैं
—-कौंसिल के मुखिया को कई पत्र लिखे लेकिन वे कोई जवाब नहीं देते,ऐसा लगता है वे जवाब देना भी नहीं चाहते बस मोटे माल से उन्हें मतलब है।
क्या करना होगा
— राज्य स्तर के अधिकारीयों को इसके लिए प्रयास कर कौंसिल से संपर्क में रहकर फीस विसंगतियों को दूर करना होगा।वास्तुविदों की यूनियन को भी सक्रीय होना होगा इस हेतु।सर्वप्रथम वे वास्तुविद जो नियमों को जानते हैं और शासन में उच्च पदों पर हैं उन्हें नियमों के पालन में सख्त होना होगा तब ही वास्तुविद भी चिंतित होंगे एवं कौंसिल पर दबाव बनेगा।उन वास्तुविदों पर कार्यवाही होनी चाहिए जो अभी तक कौंसिल के नियमों को धता बताते हुए फर्जीवाड़े में लगे हुए हैं।