नागपंचमी का त्योहार शनिवार 27 जुलाई को देश के कई भागों में मनाया जाएगा। इस दिन नाग देवता को प्रसन्न करने के लिए श्रद्घालु नाग देवता के मंदिरों में जाकर तथा सांपों की बांबियों पर जाकर दूध और धन का लावा चढ़ाते हैं। इसके पीछे एक रोचक कथा एवं मान्यता है।
कथा उस समय कि है जब समुद्र मंथन का कार्य चल रहा था। समुद्र से श्वेत रंग का अच्चैश्रवा नाम का घोड़ा निकला। गरुड़ की माता विनीता ने अपनी सौतन कद्रू से कहा कि कितना सुंदर श्वेत अश्व है। कद्रू ने कहा कि अश्व पूरी तरह श्वेत नहीं है इसके पूंछ में कुछ बाल काले हैं तथा शरीर पर काली धारियां। विनीता ने कहा ऐसा नहीं है, अश्व पूरी तरह श्वेत है। इस पर कद्रू को अपनी सौतन को नीचा दिखाने का मौका मिल गया।
कद्रू ने विनीता से कहा कि अगर अश्व के पूंछ में काले बाल और पीठ पर काली धारियां हुईं तो तुम मेरी दासी बन जाओगी अन्यथा मैं तुम्हारी दासी बनकर रहूंगी। विनीता और कद्रू में शर्त लग गयी।
कद्रू ने अपने नाग पुत्रों से कहा कि तुम अपना शरीर सूक्षम करके अश्व के पूंछ और शरीर पर चिपक जाओ इससे मैं अपनी सौतन से शर्त जीत जाऊंगी। लेकिन नाग पुत्रों ने कहा कि यह विमाता से छल होगा, यह धर्म विरुद्घ कार्य है अतः हम ऐसा नहीं करेंगे।
नागों की बात सुनकर कद्रू क्रोधित हो गयीं और शाप दिया कि तुम सब जलकर भष्म हो जाओ। माता के श्राप से नाग दुःख हो गये और ब्रह्माजी के पास गये और सब हाल कह सुनाया। ब्रह्माजी ने कहा कि यायावर वंश में आस्तिक नामक एक धर्मात्मा व्यक्ति का जन्म होगा। राजा जनमेजय जब नाग यज्ञ करेंगे और उसमें नाग भष्म होने लगेंगे तब अस्तिक यज्ञ को रोकेगा और नागों की रक्षा करेगा।
जिस दिन ब्रह्मा जी ने नागों को यह बात बतायी थी उस दिन पंचमी तिथि थी तथा जिस दिन आस्तिक मुनि ने जनमेजय के यज्ञ को रोककर नागों की रक्षा की थी उस दिन भी नागपंचमी तिथि थी। यही कारण है कि नागों को पंचमी तिथि प्रिय है। इस दिन नाग लोक में उत्सव मनाया जाता है।
नाग यज्ञ के प्रभाव से नागों का शरीर जलने लगा था और यह मृतप्रय हो गये थे। दूध अर्पित करने से नागों का शरीर शीतल होता और दाह से मुक्ति मिलती है इसलिए दूध अर्पित करने वालों पर नाग देव प्रसन्न होते हैं। यही कारण है कि नागों को दूध अर्पित किया जाता है।