पलवल। क्षेत्र के प्राचीन व एतिहासिक शिव मंदिरों में से एक पलवल के जंगेश्वर मंदिर में श्रावण माह में हर सोमवार को हजारों श्रद्धालु आकर पूजा अर्चना करते हैं। इस मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक है। पुराने शहर में स्थापित यह मंदिर लोगों की आस्था का मुख्य केंद्र माना जाता है। पड़वा से पूनो तक श्रावण माह में विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
पौराणिक व एतिहासिक महत्व-
मंदिर का पौराणिक व एतिहासिक महत्व है। यह इसके नाम से ही पता लगता है। मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। पहले इस मंदिर को विधर्मियों ने तोड़कर इसके ऊपर अन्य निर्माण कर दिए थे। फिर इसे काफी संघर्ष के बाद हासिल किया गया। खुदाई की गई तो प्राचीन शिवालय निकला। सन् 1802 में इस मंदिर का पुन: निर्माण किया गया।
मूर्ति व मंदिर के निर्माण की विशेषता-
मंदिर में स्थापित शिवलिंग पत्थर का है। मौजूदा लोगों में से किसी को नहीं मालूम कि यह कितना पुराना है। मंदिर के पुजारी राम कुमार बताते हैं कि यह कुदरती है। इस शिवालय का मुख्य मुख पूर्व की तरफ है। जबकि इसके दो अन्य दरवाजे पश्चिम व दक्षिण की तरफ खुलते हैं।
मंदिर की स्थापत्य शैली-
जंगेश्वर मंदिर की स्थापत्य शैली अन्य शिव मंदिरों की तरह ही है। इसका निर्माण कखैया ईटों व व चूने से किया गया है। बाद का सारा निर्माण बड़ी ईटों व सीमेंट का है। मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र बने हुए हैं।
-पूजा, दिनचर्या, सामग्री व आराधना-
मंदिर में रोजाना पूजा अर्चना होती है। रोजाना सैकड़ों लोग पूजा अर्चना करते हैं। श्रावण माह में यह संख्या हजारों में पहुंच जाती है। मंदिर में मेले का सा माहौल रहता है। सोमवार को विशेष श्रृंगार किया जाता है। बेल पत्र, आक, धतूरे शिवलिंग पर चढ़ाए जाते हैं। पलवल से बाहर के श्रद्धालु भी पूजा अर्चना के लिए आते हैं।
पुजारी ने कहा-
श्रावण माह में प्रतिदिन शाम को दूध-दही, गंगाजल, शहद आदि से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। हर सोमवार को फूल बंगला सजाया जाता है। ठंडाई व खीर का प्रसाद बांटा जाता है। अब पुराना मंदिर तोड़कर नया मंदिर बनाया गया है। उनके अनुसार शिवलिंग पृथ्वी से निकलकर अपने आप स्थापित हुआ।
-पंडित राम कुमार