कुण्डली में शुक्र की स्थिति दांपत्य जीवन को सुख और दुख दोनों से ही भर सकती है। जीवनसाथी का घर कहे जाने वाले कुण्डली के सातवें घर का स्वामी शुक्र को माना गया है।
इस ग्रह की कुछ ग्रहों से गहरी मित्रता है तो कुछ से गहरी शत्रुता। सूर्य, चंद्र , मंगल , गुरु और राहु से शुक्र की नहीं बनती।
2, 3, 4, 7 एवं 12 वें खाने में शुक्र श्रेष्ठ होता है जबकि 1, 6, 9 वें खाने में मंदा। मीन राशि में यह उच्च होता है और कन्या में नीच, मिथुन राशि में यह योग कारक होता है।
सप्तम भाव में यह जिस ग्रह के साथ संबंध बनाता है उस पर अपना डालता है।
पुरुष की कुण्डली में यह पत्नी और स्त्री की कुण्डली में पति की स्थिति को दर्शाता है।
शरीर में जननांग, वीर्य, नेत्र पर शुक्र का प्रभाव रहता है। यह वासना, मैथुन, सुख, ऐश्वर्य, गायन एवं नृत्य का भी अधिपति है। शुक्र वैवाहिक सुख सहित सम्बन्ध विच्छेद का भी कारक है। शुक्र प्रभावित व्यक्ति आशिक मिजाज होता है और सुन्दरता एवं कला प्रेमी होता है
जिस पुरुष की कुण्डली में शुक्र शुभ और उच्च का होता है वह श्रृंगार प्रिय होता है। इन्हें स्त्रियों का साथ पसंद होता है।
पर जब इस ग्रह की स्थिति अशुभ होती है तो यह चारित्रिक दोष एवं पीड़ा दायक होती है।
सातवें खाने में शुक्र, शनि एवं सूर्य की युति होने पर सूर्य मंदा होता है एवं शुक्र भी अशुभ हो जाता है। इस स्थिति में यह संबधों पर बुरा प्रभाव डालता है।�
शुक्र अशुभ होने पर व्यक्ति में चारित्रिक दोष होता है.मंदा शुक्र पारिवारिक एवं गृहस्थ जीवन में अशांति और कलह पैदा करता है।
उपाय भी हैं
पत्नी का सम्मान , शुक्रवार का व्रत, मन और हृदय पर काबू रखने के उपाय शुक्र की शुभता को साध सकते हैं।
सात प्रकार के अनाज और चरी का दान करने से भी फायदा होता है। चतुर्थ भाव में शुक्र मंदा होने पर पत्नी से ही दो बार शादी करनी चाहिए। इस उपाय से रूठे शुक्र को मनाया जा सकता है।