विधि विधान से किए गए यज्ञ हवन व्यक्ति को प्राणशक्ति से भरपूर कर देते हैं। इस बात का प्रमाण अग्नि के सान्निध्य में होने वाले सात्विक प्रभाव से समझा देखा जा सकता है।
पहला प्रभाव तो यह कि कायदे से किए गए यज्ञ हवन में जो धुंआ उठता है, उससे किसी को परेशानी नहीं होती। आमतौर पर धुंए का प्रभाव खांसी होने और दम घुटने के रूप में दिखाई देती है।
बंगलूर के वैदिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रयोगों के अनुसार हवन के लिए बैठने पर न खांसी होती है न दम घुटता है और न ही आंच लगती है। इंस्टीट्यूट की पत्रिका अग्निधर्मा के अनुसार ऐसा नहीं है कि हवन में प्रयोग की जानी वाली समिधाएं (लकड़ियां) और हवन सामग्री के कारण ऐसा होता है।
बिना मंत्रों के बेतरतीब ढंग से जलाई गई वही सामग्री स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है, जबकि विधि विधान और मंत्रों से किए गए हवन शुभ परिणाम प्रस्तुत करते हैं। वैदिक वांग्मय का आरंभ अग्नि शब्द से होता है। ऋग्वेद की पहली ऋचा के पहले मंत्र का पहला शब्द है अग्नि।
योगी अश्विनी के अनुसार यह शब्द और मंत्र ब्रह्मांड की सूक्ष्म शक्तियों और हवनकर्ता को जोड़ता है। अग्नि में ऊपर उठाने की क्षमता है। यही एक ऐसा तत्व है जो गुरुत्व शक्ति के नियम का अतिक्रम करते हुए ऊपर की ओर जाता है।
अग्नि व्यक्ति के विचारों को शुद्ध रखती और उसका आत्मिक उत्थान करती है। इन दिनों होने वाले हवन में तो चारों तरफ धुंआ भर जाता है। उसमें बैठना भी दूभर हो जाता है। जबकि हवन से वातावरण शांत और निर्मल हो जाना चाहिए।
उसमें किसी भी व्यक्ति को खांसी और बेचैनी नहीं होती। यहां तक कि आहुतियां दिए जाते समय यज्ञशाला में पशु पक्षी भी निस्संकोच आ कर बैठ जाते हैं और अच्छा महसूस करते हैं।