मथुरा। करोड़ों श्रद्धालुओं के आस्था के केंद्र गोवर्धन की सप्तकोसीय परिक्रमा मार्ग में आस्था की लौ हमेशा प्रज्जवलित रहती है। तन झुलसाती धूप हो या हाड़ कंपाती रात,, या फिर घनघोर बरसात, परिक्रमार्थियों के पग किसी बाधा से नहीं घबराते। ‘राधे-श्याम’ की शक्ति पथरीली राह को भी फूलों की सेज सा आनंद देती है।
वैसे तो बारह महीने श्री गिरिराज जी महाराज की परिक्रमा लगाने देश-विदेश के श्रद्धालु आते हैं, लेकिन हर माह शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक परिक्रमार्थियों की संख्या लाखों में पहुंच जाती है। गुरु पूर्णिमा पर तो यहां आने वाले श्रद्धालुओं का आंकड़ा एक करोड़ के करीब पहुंच जाता है। इन महत्वपूर्ण तिथियों पर 21 किलोमीटर लंबे परिक्रमा मार्ग में परिक्रमार्थियों की मानव श्रृंखला नजर आती है। परिक्रमा मार्ग पर रोशनी हो या नहीं, श्रद्धालुओं को इससे फर्क नहीं पड़ता। अधिकतर श्रद्धालु परिक्रमा की शुरुआत दानघाटी मंदिर से और समापन मानसी गंगा के समीप करते हैं। ऐसे में सप्तकोसीय परिक्रमा मार्ग हमेशा गुलजार रहता है। गोवर्धन, जतीपुरा, पूछरी का लौठा, राधा कुंड, गोविंद कुंड समेत पूरे परिक्रमा मार्ग में स्थान-स्थान पर बने मंदिरों में लाउडस्पीकरों से भजन गूंजते रहते हैं। चाय-पानी की दुकानों पर गूंजने वाले भजन श्रद्धालुओं के कानों में राधा-कृष्ण के नाम की मिश्री घोलते रहते हैं। मंदिरों और दुकानों पर रोशनी की सजावट भी कम नहीं होती। लिहाजा, पूरे परिक्रमा मार्ग में कहीं सन्नाटा नजर नहीं आता।
मुड़िया मेले में परिक्रमा लगाते समय गोवर्धन महाराज- गोवर्धन बाबा-गिरिराज धरण। अध्यात्म और धार्मिक महत्ता के वशीभूत आस्था और श्रद्धा के यही बोल होते हैं। दिव्यता की इस विशालता को माप पाना इन्सानी पैमाने के बूते नहीं हो सकता। मगर इसकी बुलंदी को लेकर तरह-तरह के चर्चे होते रहते हैं। धार्मिक मान्यता सुन लोग आश्चर्य में डूब जाते हैं।
जितने लोग, उतनी बातें। मगर कहते हैं पूरी दमदारी से। यमुना जी, गिरिराज पर्वत और गहवरवन की पहाड़ियां ब्रज में भगवान श्रीकृष्ण के काल की गवाह कही जाती हैं। यमुना नदी प्रदूषण की मार से कराह रही है, तो गहवरवन की पहाड़ियां अवैध खनन की शिकार होती रहती हैं। जबकि गोवर्धन में श्री गिरिराज पर्वत शापित होने की वजह से धंसता जा रहा है। आस्थावान कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के समय में श्री गिरिराज पर्वत इतना विशाल था कि इसकी छाया नंदगांव- बरसाना तथा महोली गांव (मधुवन) तक पड़ती थी। आज के दौर में इन स्थलों की गोवर्धन से दूरी करीब 20 किलोमीटर तक है। लेकिन तब से अब तक गुजरे करीब पांच हजार साल में इस पर्वत की ऊंचाई इतनी घट गई कि इसकी छाया अब परिक्त्रमा मार्ग को भी पूरी तरह से नहीं ढक पाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, श्री गिरिराज जी को पुलस्त्य ऋषि द्रोणाचल पर्वत से लेकर कहीं स्थापित करने जा रहे थे। गिरिराज पर्वत ने शर्त रखी कि बीच रास्ते में कहीं बिठाना मत, अगर ऐसा किया तो वहीं स्थापित हो जाऊंगा। पुलस्त्य ऋषि ने इसे स्वीकार लिया। रास्ते में किसी कारण वश ऋषि ने पर्वत को गोवर्धन में बिठा दिया, जब वह लौट कर आए, तो पर्वत ने अपनी शर्त का जिक्त्र करते हुए यहां से जाने से इन्कार कर दिया। निराश पुलस्त्य ऋषि ने तब श्री गिरिराज पर्वत को श्रप दिया कि आज से तुम रोज घटते जाओगे। दूसरी मान्यता यह भी है कि राम सेतु बंध कार्य के दौरान हनुमान जी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे, तभी भविष्यवाणी हुई कि सेतु बंध का कार्य पूर्ण हो गया है, इसे सुन हनुमान जी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर लौट गए।
श्रीकृष्ण कालीन इस पर्वत की छाया कभी नंदगांव-बरसाना और महोली गांव पर पड़ती थी
मान्यता है कि तिल-तिल कर घट रहा है पहाड़ गोवर्धन की सप्तकोसीय परिक्रमा लगाने पूरी दुनिया से कृष्ण भक्त, वैष्णवजन और बल्लभ संप्रदाय के लोग आते हैं।
पूंछरी का लौठा मंदिर में दर्शन करना अनिवार्य
राजस्थान की सीमा में पड़ने वाले परिक्रमा मार्ग में स्थित पूंछरी के लौठा मंदिर में दर्शन करना अनिवार्य बताया गया है। परिक्रमार्थियों के यहां आने से इस बात की पुष्टि मानी जाती है कि वह श्री गिरिराज पर्वत की परिक्रमा लगा रहे हैं।
यह भी है धारणा वैष्णवजन मानते हैं कि गिरिराज पर्वत के ऊपर गोविंद जी का मंदिर है। मान्यता यह है कि भगवान श्रीकृष्ण अब भी यहां शयन करते हैं। मंदिर में उनका शयन कक्ष है। मंदिर में एक गुफा भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह राजस्थान स्थित श्री नाथद्वारा तक जाती है।