अति महत्त्वपूर्ण कार्य करने वाली शरीर की तीन ग्रन्थियां मस्तिष्क में हैं। इसी वजह से चेतना का आसन भी शरीर के सर्वश्रेष्ठ अंग मस्तिष्क में ही है। इसीलिये सद्गुरु के चरणों में दण्डवत् प्रणाम करने की परम्परा चलती आ रही है।
सद्गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण का यह चिंतन है। इसके पीछे यह भी धरणा है कि जब सद्गुरु के चरणों पर सिर रखा जाता है, तो शिष्य को सद्गुरु से आत्मिक उन्नति में सहायक होने वाली बहुत सारी आध्यात्मिक ऊर्जा-तरंगों की प्राप्ति होती है।
हाल ही में एक अनुसंधान का आयोजन किया गया था। इसमें एक व्यक्ति के मस्तिष्क के दाएं हिस्से में चुम्बकीय उत्तेजना दी गयी। अगले एक घंटे तक उस व्यक्ति ने कलात्मक गुणवत्ता के जागरण का अनुभव किया। ऐसी कलात्मक गुणवत्ता उसमें पहले नहीं थी। चुम्बकीय उत्तेजना देने से पहले उसको घोड़े की रेखाकृति बनाने को कहा गया था। उसका घोड़ा न घोड़ा लग रहा था, न गधा और न ही बैल!
उसको एक वाक्य भी पढ़ने को कहा गया था। उस वाक्य में एक शब्द को दो बार लिखा गया था। जब उसने वह वाक्य पढ़ा, तो उसने दो बार लिखा हुआ शब्द एक ही बार पढ़ा। जैसा लिखा था वैसा दो बार नहीं पढ़ा। मतलब लिखे हुए को वह ठीक से पढ़ भी नहीं सकता था। फिर पंद्रह मिनट तक चुम्बकीय उत्तेजना देने के बाद उसे अपने होठों में, ठोढ़ी में, गालों में ज़ोरदार स्पंदन महसूस हुआ।
पंद्रह मिनट के उपचार के बाद चुम्बक हटा लिए गए। अब उसने वही वाक्य सही से पढ़ा। उसने घोड़े की रेखाकृति फिर से बनायी, उसमें भी चेहरे की सारी रेखाएं बिलकुल बारीकी से बनायी। हालांकि इसका असर एक घण्टे तक ही रहा। एक घण्टे बाद वह फिर से अपनी स्वाभाविकता में आ गया। यह इस बात को सूचित करता है कि कुछ ऐसी तंरगें भी होती हैं, जो हमारे मस्तिष्क की कार्यक्षमता को बढ़ा सकती हैं।
अगर दिमाग़ का कार्य ठीक से नहीं चल रहा हो, तो उसे सही किया जा सकता है। कमज़ोर स्मृति को सुधरा जा सकता है। कलात्मक गुणवत्ता का विकास भी मस्तिष्क में किया जा सकता है। जिनमें ऐसी गुणवत्ता की कमी है, उनमें इसका आरोपण भी किया जा सकता हे। वहाँ उन वैज्ञानिकों ने चुम्बकों का इस्तेमाल किया था। परंतु भारतीय परम्परा में हम धरणा और ध्वनि तरंगों के लिए नाद-अनुसन्धन का उपयोग करते हैं।
जब आप खुली या बंद आंख से त्राटक करते हैं तो धरणा और एकाग्रता द्वारा आपका मस्तिष्क चुम्बकीय उत्तेजना द्वारा प्राप्त तरंगों से ज़्यादा बेहतर तंरगों को ग्रहण करता है। इससे यह सूचित होता है कि इन तंत्र-विधियों का नियमित अभ्यास तुम्हारे बौद्घिक सामर्थ्य को बढ़ाता है।
नियमित अभ्यास से किसी मूर्ख को भी विद्वान बनाया जा सकता है। इसलिये अगर किसी को यह लगता है कि वह मूर्ख है, तो इसमें भी परेशान होने वाली कोई बात नहीं है। अपनी इस मूर्खता और जड़ता को दूर करने के लिये उचित आसन और नियमित प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।