वह व्यक्ति जो स्वयं को नहीं पहचानता, वह अपने साथ शत्रु सा व्यवहार करता है। बहुत जन्मों के बीज लेकर आए, हर जन्म में ऐसा ही किया तो कर्मों की श्रृंखला कभी खत्म नहीं होगी। इस जन्म में होशपूर्वक कर्म करते हुए अपने को पावन करने के लिए उस पतित पावन परमात्मा से मन व भावना को जोड़ना है।
जिन्दगी की यात्रा निर्भरता से शुरू होती है, उसके बाद सुख-दुःख फिर परिवार में परस्पर निर्भरता और फिर एक स्थिति आती है जब सबको साथ लेकर चलना होता है, एक दूसरे को परस्पर निर्भरता से जोड़ना और सम्पूर्णता की ओर ले जाना।
जिसे जोड़ना आ जाता है उसमें नेतृत्व का गुण आ जाता है, क्योंकि अकेली उंगली बोझ नहीं उठा सकती, सारी उंगलियां मिल जाएं तो बोझ उठाने में कठिनाई नहीं आती। मिल कर काम करने से सभी सपने साकार हो सकते हैं। व्यक्ति अपनी शक्तियां पहचान लेता है तो विकास होता है।
अपनी शक्तियां नहीं पहचानने का मतलब है आप स्वयं के शत्रु हैं। जो शक्तियां-क्षमताएं पहचानते हैं, वह जीवन में कमाल कर जाते हैं। समस्याएं सब के पास हैं, इनके जालों से बाहर निकलो। आपकी क्षमता से समस्याएं भागने लग जाएंगी। हर व्यक्ति को स्वयं अपना सर्वश्रष्ठ मित्र बनना चाहिए। अपने को शाबासी भी देनी चाहिए, आत्महीनता नहीं आने देनी चाहिए। दीन-हीन बन कर जीवन मत जिओ।
जब स्वयं को नहीं पहचानोगे, दुनिया में दुःख चिन्ताएं, समस्याएं सताएंगी। जब स्वयं की पहचान कर लोगे, चिन्ताएं डरकर दूर भागेगी। साहस रख कर भीड़ से हट कर, लगातार प्रयास द्वारा आप सफलता प्राप्त कर सकते हैं। आप जागरूक हैं तो स्वयं के मित्र हैं, नहीं तो स्वयं के शत्रु हैं। स्वयं के मित्र बनो-शत्रु नहीं।